सोमवार, 31 दिसंबर 2012

डाॅ.हरीवंष राय बच्चन लिखते हैः-’’वर्ष नव,हर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव,नव तंरग,जीवन का नव प्रंसग,नवल चाह,नवल राह,जीवन का नव प्रवाह,गीत नवल,प्रीति नवल ,जीवन की रीति नवल,जीवन की नीति नवल ,जीवन की जीत नवल।

सभी को नव वर्ष की हार्दिकष्षुभ कामनाए।नया साल नई उंमगो की सुबह लेकर आये। सभी को इंतजार रहता है नये साल का ,सभी अपने -अपने ढग से नये साल के स्वागत के लिए महफिले सजाते है।31 दिसम्बर की षाम को पार्टी का आयोजन करते है। केवल साल बदलने से या नये कंलैडर बदल जाने से या नये साल में एस एम एस करने  ,षुभ कामनाए देने भर से नया साल आ जायेगा अगर आपका यह मानना है तो ंगलत है। 31 दिसम्बर मनाने के बाद सोचते है कल सब नया हो जायगा पर ऐसा कैसे होसकता है आज हम कोई चीज खरीदते है दूसरे दिन वही चीज पुरानी की श्रेणी में आजाती है। नये साल आने से पहले कुछ संकल्प ले कुछ नयी तैयारी करे।ष्एक कवि महोदय ने कहा है कि ’’विगत वर्ष जो छोड गया कुछ कुटिल क्षणों की यादें ,नये साल के ष्षुभ संकल्पों से उन्हें मिटा दे ।

आइये नये साल में कुछ नये संकल्पों के साथ जीवन की ष्षुरूआत करें।रोते हुये को हॅसाने का संकल्प ले ,टूटे रिष्तों को जोडने का संकल्प ले ,किसी के अंधेरे जीवन में रोषनी देने का संकल्प ले स्वस्थरहने का संकल्प ले,खुष रहने और दूसरो को खुषी देने का संकल्प ले। यह सब तभी हो सकता है जब हम अपनी संकीर्ण स्वार्थ की परिधि से बाहर निकल कर दूसरो के लिए जीना सीख लेगे।तभी नया साल नयी खुषीया लेकर आयेगा।

महफिल तो गैर की हो पर बात हो हमारी
,
इंसानियत जहां में आकौत हो हमारी।

जीवन तू देने वाले ऐसी जिन्दगी दे,

आॅसू तो गैर के हों पर आॅख हो हमारी।ेे

                                                                        भुवनेष्वरी मालोत
                                                                        महादेव काॅलोनी
                                                                         ेबाॅसवाडा राज.

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

हवन

                                             हवन

 पंतजलि महिला योग समिति ष्बाॅसवाडा द्धारा बलात्कार से पीडित छात्रा की आत्मा की त्रिभुवन में चिरषांति के लिए दयानंद आश्रम में हवन किया गया।ओम् षांति ,ओम् षांति।

मेरे खून से धरती को न करो लाल
रक्त की हर बॅूद बनेगी तुम्हारा काल,
खुदा नंे दी जिंदगी रहम करो ,
बेटियों के साथ दुराचार करने वालो
ष्षरम करो।
यंे धरती तुम्हें धिक्कार रही है...............
ष्षरम करो दंुराचारियो ं , षरम करो दंुराचारियो , षरम करो दंुराचारियो
                                 भुवनेष्वरी मालोत
                                  जिला संयोजिका
                                  पंतजलि महिला योग समिति            
                                  बाॅसवाडा राज.

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

लक्ष्य पर नजर रखे

एक कहानी आपने सुनी होगी ,मेंढको मे उॅचे पहाड पर चढने के लिए एक दौड प्रतियोगिता रखी गयी ,जिसमें सभी मेंढक दौंडने लगे,चारों और से निराषा व हताषा भरी आवाजे आने लगी कि इन नन्हें मेढको ंके लिए इतनी उॅची चढाई चढना मुष्किल है,असंभव है,ये चढ ही नहीे सकते है,इन्हें दौडना नहीं चाहिये आदि।ऐसी निराषा भरी आवाज से कई मेढक बहोष होकर गिरने लगे,कई मेढको ने बीच में ही दौड रोक दी।लेकिन एक मेढक अपनी धुन में दौडे जा रहा था और उसने पहाड पर चढने में सफलता प्राप्त कर ली। सबको आष्चर्य हुआ यह कैसे संभव हुआ ।जब मेढक से उसकी सफलता का रहस्य पूछा तो मालूम पडा कि वह तो बहरा है उसने तो  निराषा भरी आवाजे सुनी ही नहीं ।वह तो अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर आगे चढता गया,बढता गया और सफलता हासिल कर ली।इसलिये जीवन में हमेषा नकारात्मकता और हताष करने वाली बातों से दूर रहना चाहिये ,ये हमारे लक्ष्य में बाधा उत्पन्न करती है।इसलिए हमेषा अपने लक्ष्य पर ध्यान देते हुए अपना कार्य करते रहना चाहिये।कोई आलोचना करे तो उससे डरे नहीं ,न ही कोई प्रतिक्रिया करे ।प्रतिक्रिया दूसरो के लिये  छोड दे ।आलोचना करने वाला व्यक्ति आलोचना करते करते हुए स्ंवय अपने लक्ष्य को भूल जायेगा और उसका जीवन उदेष्यहीन हो जायेगा।आप अपने लक्ष्य पर दृषिट गढाये रखे ,आपको इसमे सफलता अवष्य मिलेगी।

  भुवनेष्वरी मालोत
 महादेव काॅलोनी
  बाॅसवाडा राज.      

रविवार, 18 नवंबर 2012

गोद भराई..................

हमारे जीवन में संस्कारो का व रीति रिवाजो परम्पराओं का बहुत महत्व हैं।गोद भराई वैवाहिक औरत के जीवन की महत्वपूर्ण घटना है,जो औरतो के द्धारा किया गया गर्भवती औरत के लिए एक बडा उत्सव है।गोद भराई एक हिन्दू संस्कार हैजो देष के अधिकांष भागों मे किया जाता है।बंगाल में यह षाद के रूप में जाना जाता है,केरल में सीमानंधन कहा जाता है,तमिलनाडू में अंसंांचचन हवकीइींतंप कहा जाता है इससे गर्भवती महिला को सांतवे व नंवमे महिने में जब बच्चा सुरक्षित अवस्था में माना जाता है तब भारतीय परम्परा के अनुसार नवजात के आगमन की खुषी में महिला की गोद भराई उपहारो फल,मिठाई,कपडे जैवर से भरी जाती है और आने वाले षिषु व मां की सुरक्षा का आर्षीवाद देते है।


समय और परिस्थितियों के अनुसार यह परम्पराए अच्छी थी।लेकिन आज समय बदल गया है और समय के साथ हमें भी बदलना होगा।कई परम्पराए हमारे विकास के मार्ग रोडा बनती है,समय व पैसो का अपव्यय होता है इसलिए संस्कार को संस्कार रहने देने में ही हमारी भलाई है।रूढि.वादी परम्पराओं का आज की जागरूक महिलाओं को विरोध करना चाहियंे।पेट फुलाकर बैंड-बाजे बजवाना लम्बे चैडे भोज का आयोजन कर कहाॅ की बुद्धिमता है,इन परम्पराओं को बोझ न बनने दे सादगी से निभाये,क्योंकि इन परम्पराओं को निभाने के चक्कर में कर्जा तक लेना पडता है,समाज क्या कहेगा के डर से सुसराल वाले परम्परा निभाकर कर्ज में डूब जाते है।परिवार में तनाव बढता है और व्यक्ति मन ही मन अपने आप को कोसता है।

आइये हम इस गोद भराई की रस्म में जननी स्वस्थ्य रहे व स्वस्थ्य संतान को जन्म दे सके एसे आर्षीवाद से गोद भरे इससे प्रसव के दोैरान न तो खून की कमी होगी और नहीं अन्य जटिलताओं का सामना जननी को व आने वाले बच्चे को करना पडेगा अन्यथा अस्वस्थ्य बच्चा परिवार के लिए हमेषा मुष्किले पैदा करता रहेगा।इसलिए गोद भराई रस्म में प्राथमिकता केवल माॅ व बच्चे के स्वास्थ्य की होनी चाहिये इसकी गोद भराई संस्कार आयरन एवम् फोलिक एसिड की गोलियों से करे,परिजन और रिष्तेदार फल एवम् प्रोटिनयुक्त खाद्य-पदार्थो को भेंट करे यही संस्कार असली गोद भराई संस्कार है जिससे जननी केा सभी तरह की विटामिन आयरन की समुचित मात्रा मिल सके ।हमारे देष की अधिकांष महिलाओ में रक्त की अल्पता है तथा हिमोग्लोबिन का स्तर 7से8 ग्राम ज्यादातर महिलाओं में पाया जाता है।जिसके फलस्वरूप जच्चा बच्चा दोनों का जीवन संकटमय हो सकता है।महिलाओं में प्रसवो उपरांत अत्यधिक खून बह जात है,कई बार हैमरेज से मौत हो जाती है।बच्चों मे गर्भावस्था के दौरान आयरन की कमी से अल्पमंदबुद्धि वाले षिषु का जन्म तथा फाॅलिक एसिड की कमी से न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट वाले षिषु का प्रसव होसकता है।ऐसे में गोद भराई संस्कार एक जननी एवम् षिषु सुरक्षा अभियान बने अतः सभी महिलाए आगे आकर इस संस्कार को सादगी से आगे बढाये।



भुवनेष्वरी मालोत

बाॅसवाडा राज.

सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

झूठी शान शौकत से दूर रहे

मैं अपनी सहेली के वहाॅं उसके पोते की जन्म-दिन पार्टी पर गई थी ।वह बडे उत्साह के साथ अपनी शान-शौकत का बखान कर रही थी और कह रही थी कि मेरा बेटा शासकिय सेवा में होने के कारण उपर की आमदनी अच्छी होती है,इसलिए मेरे बेटे ने बच्चों को सब सुख-सुविधा दे रखी है।मैं यह सोचने पर मजबूर हुई कि अनैतिक तरीके से अर्जित की गई कमाई से क्या बच्चों को अधिक से अधिेक सुविधा उपलब्ध करना अनिवार्य है।


ऐसे बच्चे अपने जीवन की विकट परिस्थितियों का सामना अच्छी तरह से नहीं कर पायगें और अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए भष्ट्र्र्र्र्र तरिको को अपनाने से भी नहीं चुकेगे।हर माता-पिता का कर्तव्य है कि बच्चों को जितनी आवश्यकता है उतनी सुविधा प्रदान कर।ताकि बच्चे हर परिस्थिति में अपने आपको संतुलित रख कर कार्यकर सके ।

श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत

महादेव काॅलोनी

बाॅसवाडा









 

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

ओम् में आलौकिक षक्ति छुपी है


ओम् षब्द सम्पूर्ण ब्राहाण्ड का प्रतीक है,यह मात्र षब्द नहीं है वरन् इसमें सम्पूर्ण ब्राहाण्ड की आलौकिक षक्ति ें छिपी है।इसका संबध किसी जाति धर्म से नहीं है यह अक्षर 3 ध्वनियों अ,उ और अनुस्वार म से बना है इसे लघुतम् मंत्र भी माना जाता है यह ध्वनि स्ंवय में अस्तित्व पूर्ण बहुत्व को मिलाती है व व्यक्ति सता को परम् सता से मिलाती है ।ओम् के उच्चारण से ष्वसन क्रिया व ष्षरीर संचालन में समन्वय आता है।इससे तन व मन के विकार दूर होते है।़ इसकें नियमित उच्चारण से तनाव व डिप्ररेषन से छुटकारा मिलता है मन व मस्तिष्क एकदम ष्षांत होे जाता है। इससे मानव के आभामंडल में वृद्धि होती है।इससे एकाग्रता बढती है।
                                                                                        



                                                                                     


विधि व समयः-ओम् का जाप आॅखे बंदकर के किसी भी एंकात स्थान पर बैठकर सुबह और सांय किसी भी समय आसन पर बैठकर कर सकते है।3से5 सैकण्ड में साॅस को लय के साथ अंदर भरना है ,साॅस को जितना लंबा खींच सके ,खींचे और पवित्र ओम् का विधि पूर्वक उच्चारण तेज आवाज में करतें हुए 5से20 सेकेण्ड में साॅस को बाहर छोडना है।पुनः साॅस भरकर यह क्र्रिया 2से 3मिनट में 5से 7 बार करनी है।असाध्य रोगी व ध्यान की गहराईयो में उतरने के इच्छुक साधक 5से 10 मिनट तक यह प्राएाायाम कर सकते है ,इससे किसी भी प्रकार की हानी की संभावना नहीं है।ष्इसके बाद थोडी देर प्रणव ध्यान करें। ष्

भुवनेष्वरी मालोत

जिला संयोजिका

पंतजलि महिला योग समिति

बाॅसवाडा राज. ष्

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

आगे बढते रहे..........

 निराशा सडक के रोडे की तरह होती है,ये अपनी रफतार थोडी कम जरूर करती है ,पर उसके बाद साफ रास्ता आपको खुषीयों से भर देता है।आप इन रोडों के डर से रूके नहीं ,आगे बढे।

भुवनेष्वरी मालोत


महादेव काॅलोनी

बाॅसवाडा

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

ये दिल,तू जी जमाने के लिए -----


 मार्टिन लूथर किंग कहते हैकि ‘‘अकसर हम उन आसन लेकिन अविष्वसनीय उपहारों को भूल जाते है जो हमें जीवन में मिले है।‘‘
हर व्यक्ति महान हो सकता है क्योकि हर व्यक्ति सेवा कर सकता । सेवा करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि आपके पास कालेज की डिग्री हो या व्याकरण का ज्ञान हो ।सेवा के लिए  आपको सिर्फ दया से भरे दिल की जरूरत है,प्रेम से परिपूर्ण आत्मा की जरूरत है। षरीर से काम कर देने तथा वस्तु का दान दे देने का नाम ही सेवा नही है,सेवा तो हृदय का भाव है जो हर परिस्थितियों में मानव भली प्रकार कर सकता है।सेवा का मूल मंत्र यह है कि जो हमको मिला है वह मेरा नहीं है और मेरे लिए भी नहीं है यहां से सेवा का आंरभ होता है।अपनेे को जो मिला है उसको पर सेवा मे लगा देना सेवा है। सबसे बडी सेवा  है अपने को सदाचारी और संयमी बना लेना है अर्थात किसी का बुरा नही चाहना है अर्थात सुखी को देखकर प्रसन्न व दुखी को देखकर दुखी होना ही सच्ची सेवा है।दूसरे लोगो के होठों पर खुषी लाना ही  सच्ची सेवा है।
सेवा व्यक्तित्व का सच्चा श्रृंगार है,इससे अंतकरण षुद्ध होता है।स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था कि‘‘ देष का प्रत्येक प्राणी  मेरे लिए भगवान है ,व्यक्तित्व  की सेवा साक्षात नारायण की सेवा है।जरूरतमंद की मदद को प्राथमिकता दे सच्चे मन से सेवा का फल सदैव श्रेषठ होता है।विद्यार्थी जीवन से इस गुण क विकास के लिए प्रयास करने चाहिये।‘‘सेवा का भाव जिसके जीवन में प्रवेष कर जाता है,वह स्ंवय की चिन्ता करना छोड देता हेेें। मदर टेरेसा का उदाहरण हमारे सामने है जिसके लिए कोई अपना पराया नहीं रहता ,किसी से कुछ अपेक्षा भी नहीं  रहती है बस देना ही देना है, लेना कुछ नही।।
अपने लिये जीये तो क्या जिए जीना उसी का जो ओरो के लिए जिए फिल्मी गाने की ये पंक्तिया या बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड खजूर का पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।इस दोहे में कोई गूढ रहस्य छिपा है जो हमें परोपकार करने की प्ररेणा देता है।जीवन का आदर्ष बना ले परोपकार किसी फल के लिए नहीं बल्कि आंतरिक खुषी के लिए करेगे।
आजकल आपने यह कहते हुए सुना होगा कि भलाई -वलाई का जमाना नहीं रहा एक तो अपना समय, पैसा और दिमाग खर्च करो और सामने वाला भी इसकी कीमत न समझे ऐसी भलाई संेे क्या फायदा। आजकल लोग  सिर्फ अपने बारे मे ही सोचते है।
what goes around comes around( जैसा तुम देते हो वैसा ही तुम्हें वापिस मिलता हSthll dgk djrs Fks fd’’Happy are those who long to be just &good,for they shall be completely satisfied……don’tell your left hand what your right hand is doing and your father who know all secrets will reward you.’’खुषनसीब है वो लोग,जो न्यायप्रिय और भले रहते है क्योंकि उन्हें पूरी तरह संन्तुषट किया जायगा जब  तुम किसी पर उपकार करो छुप कर करो ।बाॅए  हाथ को भी पता न लगने दो कि दाॅये हाथ ने क्या पुण्य कमाया है।जब तुम्हारा पिता जो सब राजों का राजदार है। तुम्हें अपनी और से दिव्य उपहार देगा।प्रकृति भी आपके हाथ खाली नही रखेगी आपकी अच्छाई लौटकर आपके पास जरूर वापिस आएगी।जैसा तुम देते हो वैसा ही तुम्हें वापिस मिलता है चाहे थोडा वक्त जरूर लगता  है,पर प्रकृति अपने पास कुछ नहीें रखती ब्याज समेत हमें लौटाती है।एक कहानी हमें इस बात की प्रेरणा देती है।
    फंलेमिग नाम का एक किसान स्कांटलैड में अपने खेत में काम कर रहा था कि अचानक उसने सहायता के लिए पुकारती एक आवाज सुनी, उसने पास जाकर देखा तो एक छोटा बच्चा गहरे कीचड मे फॅसा हुआ है उसने बडी मेहनत करके,उसे निकाला और फिर अपने काम में जुट गया। दूसरे दिन उसने देखा एक अमीर आदमी  उसकी झोंपडी में आया ओैर बोला तुमने मेरे बेटे की जान बचायी है मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हुं । किसान ने इनाम लेने से इंनकार कर दिया और कहा की यह तो मेरा कर्तव्य है। उसने किसान के पास खडे उसके  फटेहाल बच्चे को देखा और कहा इसकी शिक्षा जिम्मेदारी में उठाता हुं ,तुम उसे मुझे सौंप दो ।कई वर्षो बाद वही बालक अलेग्जैन्डर फंलेमिंग प्रसिद्व वैज्ञानिक पैनिसिलीन का अविष्कारक बना। कुछ समय बाद उसका बेटा निमोनिया का शिकार हो गया,जिसकी जान पैैनिसिलीन की  वजह से बची। उस आदमी का नाम लार्ड रैन्डोल्फ था और उसके बेटे का नाम सर विन्सटन चर्चिल।
आओ दुआ करे और इसे हम जीवन का आर्दश बना ले कि नेकी किसी फल के लिए नही बल्कि आंतरिक खुशी के लिए करेगें और भूल जायेगे । तभी तो आज की युवा पीढ़ी भी परोपकार की कई जिम्मेदारी को उठाये हुए है लेकिन भलाई स्वकेन्द्रित नहीं यानि दूसरो पर केन्द्रित होनी चाहिये ।यदि परोपकार में लेने का भाव होगा तो वह एक सौदा होगा।इसलिए कहा गया है नैकी कर कुॅए में डाल अर्थात भलाई करके भूल जाओ  कोई उम्मीद मत रखो।
                                                      प्रषेकः-
                                        श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत
                                         महादेव काॅलोनी
                                      बाॅसवाडा                                          

बुधवार, 8 अगस्त 2012

अपना घर-वृद्धाश्रम








आज मैं सभी महिलाओ के साथ सेवा के लिए वृद्धाश्रम गयी थी।वहां एक महिला की आपबीति सुनकर मन दुःखी होगया,वह कहने लगी ब्याह से पहले माॅ कहती थी बेटी तेरा घर तो तेरा सुसराल है,यह तो तेरे लिए पराया घर है फिर ब्याह हुआ सुसराल को अपना घर समझने लगी उसे तन मन से सजाया,संवारा कुछ समय बाद अहसास हुआ कि यहां तो पति और सास का आधिपत्य है,मेरा तो कुछ नहीं है,मैं तो यहां भी परायी हू।फिर पति की अकाल म्््ृत्यु ने मुझको एक बार फिर सुसराल में ज्यादा पराया कर दिया।जैसे तेैसे मेहनत-मजदूरी करके बच्चो को पढाया लिखाया,ब्याह किया।बेटो ने अपने घर बनाए,बेटो का अपना परिवार बढा तो उस घर में माॅ के लिए जगह नहीं रही ,एक दिन उन लाडलो ने अपनी माॅ को वृद्धाश्रम छोड दिया ,जहाॅ वह अपनो से दूर रहकर अपने जीवन का अंतिम समय गुजार रही है।यहाॅ आकर मुझे जीवन की सच्चांई का अहसास हुआ कि यही तो मेरा अपना घर जहाॅ सब मेरे अपने है जो अंतिम समय तक मेरे साथ रहेगें।


श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत

बाॅसवाडा राज.।


मंगलवार, 10 जुलाई 2012

बारिश का पानी और आप






वर्षा ऋतु सभी ऋतुओं में हसीन ऋतु है ।इस मौसम में चारों ओर हरियाली, नदी नालों में उफनता हुआ पानी मन को खुशी और आंनद देता है।इस ऋतु के आगमन से जहां एक तरफ गर्मी से राहत मिलती है वहाॅ वर्षा के पानी से गृहणी को कई परेशानीयों का सामना करना पडता है दैनिक उपयोग की कई वस्तुएं नमी व सीलन के कारण खराब हो जाती है अगर गृहणी कुछ सावधानीयां बरते तो इस मौसम का दुगना मजा उठा सकती है।



 बरिश में अकसर चमडे की वस्तुएं पर फूंफद आ जाती उसे फूंफद से बचाने के लिए दूघ में सोडाबाइकार्बोनेट मिलाकर साफ करे और अलसी के तेल में भीगे हुए कपडे से पाॅलिश करे अगर इनका उपयोग इस समय नहीं करना हो तो उन्हें पेपर में लपेट कर अच्छी तरह पाॅलिथीन में पैक कर के रखे ।


 इस मौसम में बच्चों के जूते बैग व महिलाओें केे पर्स पानी के सम्र्पक के कारण इनका चमडा फूल जाता है उसको सूखे कपडें से पौंछ कर उसमें अखबार के कागज भर दे जिससे उसकी नमी दूर हो जाएगी।


 बारिश में खिडकियां व दरवाजें मुश्किल से खुलते व बंद होते है उनमें थोडासा मोम रगड दिया जाय तो वे आसानी से खुलने व बंद होने लगेगेे।लोहे के दरवाजे व खिडकियों पर थोंडा सा गी्रस लगाने से वह जंग लगने से बच सकते है।


 रसोई में दैनिक उपयोग में आने वाली लोहे के चाकू,छूरी ,कैंची आदि को जंग से बचाने के लिए उस पर सरसों का तेल लगा दे।


 बारिश में माचिस अकसर सील जाती है उसे फ्रिज के स्टेबलाइजर के उपर रखेे या चाय पती के डिब्बे में रखे और इस्तेमाल करे ।


 बरसात में कपडों को नमी से बचाने के लिए उसके बीच में चाॅक रख़दे।


 डांइग-रूम में बीछे कालीन को इस मौसम में फोल्ड करके सुरक्षित स्थान पर रख दे।ऐसा नहीं कर सकती तो अखबार की 3-4 परत इसके नीचे बिछा दे इससे कालीन पर नमी और सीलन का असर नहीं होगा।


 बरिश में घर से मक्खी -मच्छर भगाने के लिए पान के पते पर सरसोें का तेल लगाकर बल्ब के नीचे रख दे।कीडें,मक्खी -मच्छर आकर्षित होकर पास आएगे और चिपकर मर जायगे ।


 लाल मिर्च को बारिश की नमी से बचाने के लिए उसमें पीसा नमक डाले।


 ब्रसात में काॅफी को जमने से बचाने के लिए डिब्बे में चावल के दाने डाल दीजिए वह नमी सोख लेगे और काॅफी के ग्रेन्यूल्स ठीक रहगे।


 बरसात में तालों पर भी जंग लग जाता है उन्हें मिट्टी के तेल में डालकर सूखे कपडे से रगड कर पौंछ ले जिससे जंग से सुरक्षित रहगें और यदि जंग लग गया होतो तुंरत उतर जायगा ।


 अकसर धर के फर्नीचर पर बारिश के पानी के धब्बों के निशान हो जाते है।जिसे सिरके से साफ करने से धब्बे साफ हो जायगे और फर्नीचर चमकने लगेगा।


 छतरी पर भी अकसर जंग लग जाता है जिसे पट्ोलियम जैली लगाकर साफ कर सकते है।


 बरिश में हमेशा बाॅल पेन का उपयोग करे विशेषकर पत्र लिखते समय ।लिफाफे पर पता लिखने के बाद मोम घिस ले जिससे पत्र सुरक्षित पहुंच जायगा ।


 बरिश में अकसर घर के आॅगन में जहाॅ गीला रहता है ,वहाॅ फिसलन या काई जम जाती हंै उस पर रातभर सूखा चूना डाले सुबह रगड ले फिसलन व काई दोनो गायब होजायगी ।


 बरिश मेें दाल,राजमा,चने आदि मे कीडे पडने का डर रहता है इससे बचने के लिए इस पर सरसों के तेल की एक परत चढा देना अच्छा होगा।


 इस मौसम में कीडे-मकोडे से छुटकारा पाने के लिए फिनाइल से आॅगन व बाथरूम धोए और पानी में फिटकरी घोलकर पौंछा लगाए।


 इस मौसम में विशेष घ्यान रखा जाय यदि घर में बिजली कटे तार होतो उन्हें ठीक करा ले या टेप चिपकाए ताकि कंरट से बचा जा सके।


 इस मौसम में खान-पान पर विशेष घ्यान रखना चाहिय खाद्य-पदार्थो को ढककर रखना चाहिय। हरी पतेदार सब्जियों के प्रयोग से बचना चाहिए अन्यथा कई बीमारियों की संभावना रहती है।


 जरी गोटे के काम वाली साडिया नमी के कारण काली पड जाती है इन्हें मौसम से पहले अच्छी धूप लगाकर सूती कपडे में बाॅधकर ऐसे सुरक्षित स्थान पर रखे जहाॅ नमी का व हवा का असर न होे।इस मौसम में स्टार्च की हुई सूती साडियो को हैंगर से हटाकर अखबार में लपेटकर पोलिथीन में पैक करके सुरक्षित स्थान पर रखे अन्यथा फूफंद लग सकती है।


इन सावधानियां को अपनाकर गृहणी नमी व सीलन से होने वाली आर्थिक,मानसिक,शारीरिक नुकसान से बच सकती है।










प्रषेकः-


श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत


अस्पताल चैराहा


महादेव कॅंालोनी


बाॅंसवाडा राज







सोमवार, 25 जून 2012

एक बच्चे की चाहत पारिवारिक रिष्ते को अंसतुलित करती है



आज हम सहेलिया का एक समारोह में मिलना हुआ मेरी एक सहेली को उदास देखकर मैने पूछा क्या हुआ रेखा तु इतनी परेषान क्यो है मेरी सहेली ने कहा क्या बताउ मेरा पोता 6 साल का हो गया है लेकिन मेरी बहु दूसरी संतान के लिए ना कहती है कहती आज के युग मे एक की देखभाल अच्छी तरह कर ले तो ही बहुत है।इसके जबाब से मेरे मन में कई तर्क-वितर्क पैदा कर दीये।



आधुनिक युग में भौतिकवादिता और पाष्चात्यति संस्कृति के प्रभाव के कारण अधिकांष माता-पिता एक ही बच्चे की प्राथमिकता देते है उनका कहना है कि इससे उनकी परवरिष अच्छी होगी।आज पहले की तरह हम दो हमारे दो की मानसिकता के बजाय हम दो हमारा एक की होती जा रही है।यह तर्क दिया जाता हैकि आजकल उच्चस्तरीय जीवन की चाहत में ज्यादा बच्चों की परवरिष कर पाना मुष्किल है। इससे पारिवारिक जिम्मेदारी का बोझ भी कम होजाता है ,बच्चे को सभी सुख सुविधा आराम से दी जासकती है ।आजकल नौकरी -पेषा माता-पिता को जीवन में व्यस्ता अधिक होने से वे दूसरे बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते है।आज की प्रमुख समस्या अनियत्रित जनसंख्या ,सीमित रोजगार के साधन और बढती हुई मंहगाई के जमाने में एक बच्चे का लालन-पालन ही ठीक ढग से किया जा सकता है।आजकल संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है जिसमें नौकरी -पेषा माता पिता एक से अधिक बच्चो की जिम्मेदारी उठाने में अपने को अक्षम पाते है।लेकिन एक बच्चे की अवधारणा से हमारे पारिवारिक सामाजिक ढाॅचे पर कई दुषपरिणाम नजर आने लगे है जिस पर हमें विचार करना होगा।


ऽ एक बच्चे की अवधारणा से हमारे कई महत्वपूर्ण पारिवारिक रिष्ते खत्म होते जा रहे है जैसे एक लडका है तो उसके बच्चो के ना बुआ होगी ना अंकल ,एक लडकी है उसके बच्चो के ना मामा होगा ना मौसी।ये रिष्ते बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।एक बच्चे की चाहत में कई रिष्तो से हमारी भावी पीढी अनभिज्ञ रहेगी।


ऽ बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए भाई-भाई,बहन-बहन,बहन-भाई अर्थात् दो बच्चो का होना जरूरी है।


ऽ एक बच्चा होने से समाज में स्त्री पुरूष का अनुपात गडबडा जायेगा क्योंकि एक अधिंकाष माता-पिता एक बच्चे के रूप में लडके को प्राथमिकता देते है। इससे लडकियोें की संख्या घटेगी और भविष्य में लडके के लिए लडकी मिलना कठिन होजाएगा।


ऽ इससे बच्चों में असुरक्षा की भावना बढेगी क्योंकि अकेला बच्चा अपने आप को असुरक्षित महसूस करता है।


ऽ इससे वंष आगे नहीं बढ पायेगा पारिवारिक और पारिवारिक संगठन घटता चला जायगा।


ऽ अकेला व्यक्ति अवसाद,डिप्रेषन तनाव का ज्यादा षिकार होता है।


ऽ जीवन के दुखद क्षणों में या मुसीबत के समय सहयोग,सहायता और सांत्वना देने वाला कोई नहीं मिलेगा।


ऽ अकेला बच्चा अंर्तमुखी स्वभाव का हो जायेगा और उसकी सोच का दायरा सीमित हो जायगा।


ऽ एक बच्चे का होना मतलब अन्य भाई बहन के साथ खिलौने पैसे या अन्य किसी वस्तु को साझेदारी नही होना है।इससे वह अपनी वस्तू को किसी के साथ जल्दी से साझा नहीं कर पायंेगा।


ऽ अत्यघिक ध्यान व देखभाल के कारण एक बच्चे का बर्ताव हानिकारक हो सकता है ,वह जीवन की वास्तविक समस्याओं का सामना करने और उसे सहन करने में सक्षम नही हो सकते है।


ऽ एक बच्चा बडा होने पर घर मे किसी हमउम्र भाई-बहन के न होने से और प्रत्येक पल माता-पिता की भागीदारी से उब जाता है।उसके जीवन में नीरसता आजाती है।


ऽ एक बच्चा होने से वह कई मानवीय गुणों से वंचित रहजायेगा।


श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत


महादेव काॅलोनी


बाॅसवाडा राज

शुक्रवार, 8 जून 2012

सकारात्मक विचारों की सृष्टि करे










चिलम का आकार लेेती हुई मिट्टी को मिटाकर जब कुम्हार ने नया आकार देना षुरू किया तो मिट्टी ने पूछा अब क्या करते हो, तब कुम्हार बोला मैं अब सुराही बना रहा हू तब मिट्टी बोली मेरे सृष्टा तुम्हारा तो विचार बदला है मेरा तो संसार ही बदल गया है ,चिलम का संसार है जलना और जलाना और सुराही का संसार है स्वंय षीतल रहना और दूसरो को भी षीतल करना ।वस्तुतः विचार के बदलने पर ही संसार बदलता है,एक सद्विचार का बीज जब अंकुरित होकर जीवन की धरती पर प्रकट होता हैतो चारांे ओर सुख-षांति के फूलों से मानव जीवन महक उठता है।इसलिए हमेषा सकारात्मक व सद्विचारों की सृष्टि करे ,क्योकिं इसका हमारे जीवन पर भी सकारात्मक प्रभाव पडता ।



श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत

बाॅसवाडा राज.



रविवार, 20 मई 2012

‘हा’ के साथ ‘ना’ कहना सीखिये

                                                                  


                                अकसर महिलाओं के जीवन में कई अवसर ऐसे आते है जिसमें वह इस कशकश में रहती है कि

‘हाॅं’ कहू या ‘ना’ जहाॅं ‘ना’ कहना चाहती है वहा भी हाॅं कर देती है।अकसर महिलाएॅं अपनी आदत के अनुसार पडौसी या रिश्तेदार या सहकर्मी हो किसी को भी किसी कार्य के लिए ‘ना’ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है। क्योंकि रिश्तों की गरिमा आडे आजाती है। महिला कितनी भी व्यस्त क्यों न हो या बच्चों की परीक्षा चल रही हो या पतिदेव के साथ कई जाने का कार्यक्रम हो लेकिन ‘ना’ नही कह सकती । मन मसोज कर उसे हां कहना पडता है। ऐसी स्थिति मे कई बार पतिदेव के गुस्से का शिकार होना पडता है या कई जरूरी कामो को उस समय टालना पडता है। इसे महिला के मन की दुर्बलता कह सकते है । महिला स्ंवय ‘ना’ नहीं कह पाती लेकिन अपने बच्चों को किसी अनुचित मागों को न मानकर ना करने की शिक्षा देती है। इसलिए हाॅं तो आप अकसर कहती है कभी-कभी ना कहना सीखिए। कुछ बातें अपनाकर मन को ना कहने के लिए तैयार करे।
ऽ आप किसी को किसी चीज या कार्य के लिए अपनी सुविधा को देखकर हां कहिए अन्यथा ना कह दे।
ऽ ‘ना’ कहने के लिए किसी बहाने की तलाश करने की जरूरत नहीं है सीधा ना कहिये।
ऽ हाॅं करने से कई बार आपको किसी परेशानी का सामना करना पड सकता है या पारिवारिक तनाव से गुजरना पड सकता है इसलिए ना कहना सीखिए।
ऽ कई बार चालक किस्म के लोग आपकी हाॅं कहने की कमजोरी का नाजायज फायदा उठाते है। इसलिए ना कहना सीखिए।
ऽ प्रश्ंासा पाने या अच्छा कहलाने के चक्कर में हाॅं मत करिए।
ऽ ‘हाॅं’ कहने की आदत के कारण कई बार अपनी प्रिय वस्तु जैसे पुस्तक आदि से हाथ धोना पडता है इसलिए उचित समझे वहाॅं ना कहिय।
ऽ सामने वाले की आदत जैसे समय पर वस्तु न लौटाना या खराब करके लौटाना आदि को जानकर हाॅं या ना में से एक को चुनिए ।
ऽ सामने वाला चालाकी से दबाबपूर्ण तरिके से सहायता की मांग करता है और आप ना कहने का कोई बहाना नहीं बना पाती है ऐसी परिस्थिति में हिम्मत करके ना कह दीजिए और उस पर डटी रहे ।
एक बार ना कहने की हिम्मत जुटा लेगी तो ना कहने में संकोच नही होगा।
लेकिन मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समय पडने पर दूसरो के दुख-दर्द में काम आना चाहिय।
सामने वाले की परेशानी की वास्तविकता को जानकर किसी की सहायता के लिए हाॅं कहना बुरा नहीं है।


  प्रेषकः-
 श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
 अस्पताल चैराहा
महादेव कॅंालोनी
  बाॅंसवाडा राज

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

जल नेति- नाक की एलर्जी का प्राकृतिक उपाय



ऐलर्जी का अर्थ बाहरी वायुमण्डलिय पदार्थो के विरूद्ध हमारे ष्षरीर की असहनषीलता और अति संवेदनषीलता है,बढते प्रदुषण और बाहरी ऐलर्जन कारको से हमारे ष्षरीर में ऐलर्जी के लक्षण पैदा हो जाते है।जिससे वायुमण्डल मे व्याप्त धूल मिट्टी जानवरों के बाल पेड-पौधे और घास के परागकण हानीकारक गैस ,धुअॅा नाक में जाकर एलर्जी के लक्षण पैदा करते है जिससे ंबार- बार छिके आना, नाक से पानी बहना, नाक मे खुजली और कई बार नाक भी बंद हो जाती है,ऐसे में कई बार मुॅह से साॅस लेना होता है,ऐसी स्थिति में रोगी का हाल बेहाल हो जाता हैं।
कई एन्टीऐलर्जीक गोलिया एवमं  नाक में डालने वाली स्प्रे बाजार मे उपलब्ध है लेकिन इसका तत्कालिक लाभ ही है,बार बार छिको से व अन्य लक्षणो से  बचने के लिए हमारी पुरातन चिकित्सा पद्धति जलनेति बहुत ही प्रभावी है।
नेति का अर्थ है नासिका द्धारा भिन्न-भिन्न द्रव्यों को ग्रहण करना नेति कहलाता है।नेति के कई प्रकार है जल नेति,सूत्र नेति,घृत नेति,तेल नेति और दुग्ध नेति।
जलनैती की अवधारणा हाथी द्धारा अपनी नाक रूपी सूॅड मे पानी खिचनेें और फिर उसे छोडने पर आधारित है ।

 प्रातः काल का समय जल नेति  के लिए उपयुक्त है।इस हेतु टोटीदार लोटे में थोडा गुनगुना पानी भरकर उसमे थोडा सा नमक मिलाकर लोटे की नली को दाई नासिका ंमें लगाकर बाई ंऔर की नासिका को थोडा एक ओर झुकाकर रखे मुख को थोडा खोलकर श्रवास प्रष्वास की प्रकिया मुख से ही करे बायी नासिका से जल प्रवाहित होकर  बाहर निकलता है यही प्रकिया दूसरी नाक से भी करनी चाहिये इस प्रकार पानी के साथ नाक में चिपके ऐलर्जन बहकर बाहर आजाते है।कफरोग न हो तो धीरे-धीरे नमक रहित ठंडे जल से नेति क्रिया करनी चाहिये ।जिनको नजला जुकाम हो उनको नमकयुक्त गर्म जल से यह क्रिया करनी चाहिये नेति क्रिया करने से सर्दी जुकाम ठीक हो जाता है पर कुछ लोगो को नेति करने से सर्दी जुकाम हो जाता है इसके बाद नाक में बचे हुए पानी को कपाल भांति या जोरजोर से छीककर बाहर निकाल लेना चाहिए ताकि अन्दर कोटरो में रूका और भर जाने वाला पानी निकल सके ओर सर्दी जुकाम न हो। नेति क्रिया करने से माइग्रेन व सरदर्द से भी राहत मिलती है।  
                                                  श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत
                                                     जिला संयोजिका
                                                     महिला पंतजलि योग समिति
                                                      बाॅसवाडा राज

शनिवार, 24 मार्च 2012

नीम रस पीयेः निरोगी जीवन जीये

धर्म और स्वास्थ्य सिक्के के दो पहलू है,धर्म मानव का सच्चा मार्गदर्षक है,नववर्ष का आरभ चैत्र नवरात्री से होता है तब हम सब स्वास्थ्य रहे और बीमार न हो तथा तंदुरस्त बने रहे,यह हमारे लिऐ गर्व की बात है कि नीम के अनगिनत गुणों की वजह से अमेरिका ने हमारे नीम को अपने लिए पेटेन्ट करा दिया,निःसन्देह यह भारतीय जीवन षैली और आयुर्वेद की विजय है,नीम हमारे लिए अति पूॅजनीय वृक्ष है।

नीम को संस्कृत में निम्ब,वनस्पति ष्षब्दावली में आजाडिरिक्ता-इण्डिका कहते है।नीम के बारे में हमारे ग्रन्थों में कहा गया है।


 

निम्ब षीतों लघुग्राही कटुकोडग्रि वातनुत।

अध्यःश्रमतुट्कास ज्वरारूचिकृमि प्रणतु।।

नीम ष्षीतल,हल्का,ग्राही पाक मे चरपरा,हृदय को प्रिय,अग्नि,वात ,परिश्रम,तृ्रेषा ,ज्वरअरूचि कृमि,व्रण,कफ,वमन कोढ और विभिन्न प्रमेह को न्रेषट करता है।


नीम में कई तरह लाभदायी पदार्थ होते है।रासायनिक तौर पर मार्गोसिन निम्बडीन एवम निम्बेटेरोल प्रमुख है।नीम के सर्वरोगहारी गुणों से यह हर्बल आर्गेनिक पेस्टीसाइड,साबुन,ऐन्टीसेप्टिक क्रीम,दातुन मधुमेह नाषक चूर्ण,ऐन्टीऐलर्जीक,कोस्मेटिक आदि के रूप में प्रयोग होता है।

नीम कडवा है लेकिन इसके गुण मीठे है,तभी तो नीम के बारे मे कहा जाता हैकि सौ हकीम और एक नीम बराबर है।

चैत्र नवरात्री पर नीम के कोमल पतो को पानी में घोलकर सील बट्टों या मिक्सी में पीसकर इसकी लुगदी तैयार की जाती है,इसमें थोडा नमक और कुछ काली मिर्च डालकर उसे ग्राहय बनाया जाता है।इस लुगदी को कपडे में रखकर पानी मे छाना जाता है,छाना हुआ पानी गाढा या पतला कर प्रातः खाली पेट एक कप से एक गिलास तक सेवन करना चाहिये पूरे नौ दिन इस तरह अनुपात मे लेने से वर्ष भर की स्वास्थ्य गारंटी हो जाती है,सही मायने में चैत्र नवरात्री स्वास्थ्य नवरात्री है,यह रस ऐन्टीसेप्टिक ऐन्टीबेक्टेरियल ऐन्टीवायरल ऐन्टीवर्म ऐन्टीऐलर्जीक ऐन्टीट्यमर आदि गुणो का खजाना है।ऐसे प्राकृतिक सर्वगुण सम्पन्न अनमोल नीम रूपी स्वास्थ्य रस का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिये।यह इन दिनो बच्चों को चेचक से बचायेगा,जीन लोगो को बार बार बुूखार और मलेरिया का संक्रमण होता है,उनके लिए यह रामबाण औषधि है।वैसे तो आप प्रतिदिन पाॅच ताजा नीम की पतियाॅ चबा ले तो अच्छा है,मधुमेह रोगीयो में प्रतिदिन सेवन करने पर रक्त ष्षकर्रा का स्तर कम हो जाता है।

नीम की महता पर एक किवंदती प्रसिद्ध है कि आयुर्वेदाचार्य धन्वतरि एवमृ युनानी हकीम लुकमान समकालिन थे,भारतीय वैघराज की ख्याति उस समय विष्व प्रसिद्ध थी लुकमान हकीम ने उनकी परीक्ष लेने एक व्यक्ति को यह कहकर भेजा कि इमली के पेड के नीचे सोते जाना ,भारत आते आते वह व्यक्ति बीमार पड गया,महर्षि धन्वतरि ने उसे वापस यह कहकर भेज दिया कि रात्री विश्राम नीम के पेड के नीचे करके लौट जाना,वह व्यक्ति पुनः स्वस्थ्य हो गया।

नीम रस कडवा है,लेकिन प्राक्रृतिक पेय है,इस निःषुल्क रस का व्यापक उपयोग जन-साधरण में हो इस हेतु हमें इसकी उपादेयता के बारे में जन मानस को समझाना हेागा नीम जैसे सर्वसुलभ वृक्ष की पतियों के रस के स्टाॅल हमें गली मोहल्लो और काॅलोनियों में लगाने चाहिये ।स्वास्थ्य जागरण में नीम रस जीवनरस बने यही मानवता पर उपकार होगा,आयुर्वेद,धर्म और मानवता की जय होगी तथा रोगों की पराजय होगी तथा पर्यावरण का सही दोहन और संवरण होगा।


 

प्रे्षकः-भुवनेष्वरी मालोत

अध्यक्ष

वीरा-विंग

महावीर इंटरनेषनल

महादेव काॅलोनी

बाॅसवाडा


 

बुधवार, 21 मार्च 2012

‘सिंहासन से चेहरा निखारे’

  
                                                        
                                                   
                               योग जीवन जीने की कला है।योग च्रित की वृतियों का निरोध है।योगासन के द्धारा भी स्त्री सुलभ चेहरे के सौदर्य को बरकरार रखा जा सकता है।सुन्दर व्यक्तित्व के लिए सुन्दर चेहरा महत्वपूर्ण मानदंड है।चेहरा मन का दर्पण होता है चेहरे के हाव भाव से ही व्यक्ति की मानसिक स्थिति का पता चल जाता हैे।आमधारणा है कि सुन्दर चेहरा पैदा नहीं होता है बल्कि बनाया जाता है। हमारे चेहरे पर 72 माॅसपेषिया होती है।चेहरे की पेषिया बहुत जटिल होती है और बहुत ही भिन्न -भिन्न दिषाओं की जाती है।चेहरे को निखारने के लिए रोज चेहरे की कसरत जरूरी है।



ष्योगासन मे ंिसंहासन भी एक ऐसा आसान है जिससे चेहरे की सुन्दरता में चार चाॅद लगाये जा सकते है। इसमें संभव हो तो सूर्याभिमुख करके व्रजासन में बैठकर,दोनो पैरो के घुटने बीच थोडा फासला रखकर दांेनो हाथो के पंजो को पीछे की ओर कर के हाथों को सीधा रखे व एक साथ साॅस भरकर ,जीभ को अधिक से अधिक बाहर की ओर निकालते हूए भूमध्य मेें देखते हुएष्ष्वास को बाहर निकालते हुए जोर से सिंह की तरह गर्जना करनी है ऐसा करते समय कमर सीधी हो ।यह क्रिया तीन बार दोहराये ,ऐसा करने के बाद गले की दोनों हाथों से मालिष करे और लार को अन्दर निगल ले। इससे गले की खराष की समस्या से भी निजात पा सकते है।


इस आसन से चेहरे की माॅसपेषिया सक्रिय हो जाती है।इस आसन से चेहरे व सिर के भाग की माॅसपेषिया का रक्त संचार बढता हैैे।उदर भाग की माॅसपेषिया का अधिक प्रयोग होने से फेफडो और गले के भाग का अधिक व्यायाम होता है।चेहरे पर चमक आती है व झुरियो से भी बचाव हो सकता है इससे तनाव दूर होता है चेहरा प्रफुल्लित लगने लगता है।साथ ही इस आसन से टाॅसिल,थायरायड,अस्पष्ट उच्चारण कान के रोग,साथ ही जो बच्चे तुतलाकर बोलते है,उनके लिए भी महत्वपूर्ण है।


महषि पंतजलि ‘नियमित रूप से योगासन कर अप्सराए और गंधर्व कन्याए अपना त्रिभुवन मोहक रूप यौवन बनाये रखती है।’ इसमें सिंहासन का भी प्रमुख स्थान है।क्योंकि स्त्री के लिए सिंहासन एक वरदान है इसको नियमित रूप से करने से चेहरे पर अर्पूव सौंदर्य लाया जा सकता है।

                                                                                                      श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत


                                                                                                           जिला संयोजिका

                                                                                                           पंतजलि महिला योग समिति


                                                                                                            बाॅसवाडा राज0





शुक्रवार, 16 मार्च 2012

ऐलोवेरा स्वास्थ्य व सौदर्य का रक्षक है


aloe vera
                                                                    




          घी के समान तापच्छिल पीत मज्जा होने से इसे घृत कुमारी अथवा घीकुंआर कहा जाता है।एलोवेरा भारत में ग्वारपाटा या धृतकुमारी हरी सब्जी के नाम से जाना जाने वाला काॅटेदार पतियों वाला पौधा,जिसमें कई रोगों के निवारण के गुण कूट-कूट कर भरे हुए है।आयुर्वेद में इसे महाराजा और संजीवनी की संज्ञा दी गयी है।इसमें 18 धातु,15 एमीनो एसीड और 12 विटामिन होते है।यह खून की कमी को दूर करता है,षरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है,इसे त्वचा पर भी लगाना भी लाभदायक है ।इसे 3से4 चम्मच रस सुबह खाली पेट लेने से दिनभर षरीर में ष्षक्ति व चुस्ती-स्फूति बनी रहती है साथ ही यह जोडो की सूजन में व माॅस पेषियों को सक्रिय बनाये रखने के लिए सहायक है।

 जलने पर,अंग के कही से कटने पर,अदरूनी चोटो पर इसे लगाने से घाव जल्दी भर जाता है क्योंकि इसमें एंटी बैक्टेरिया और एंटी फॅगल के गुण होते है।मधुमेह आदि के इलाज में भी इसकी उपयोगिता साबित हो चुकी है क्योंकि एलोवेरा रक्त मे ष्षर्करा की मात्रा को भी नियत्रिंत करता है।बवासीर ,,गर्भाषय के रोग, पेट की खराबी,जोडो का दर्द, त्वचा का रूखापन,मुहाॅसे,धूप से झूलसी त्वचा,झुरियों चेहरे के दाग धब्बों,आॅखों के नीचे के काले घेरो, फटी एडियो के लिए लाभप्रद है। इसका गुदा या जैल बालों की जडो में लगाने से बाल काले घने लंबे एंव मजबूत होगेे।एलोवेरा के कण-कण मे सुंदर एंव स्वस्थ्य होने के राज छुपे है।इसे कम से कम जगह मे छोटे-छोटे गमलों में आसानी से उगाया जा सकता है।



स्वास्थ्य का महत्व हमें उसी समय ज्ञात होता है जब हम बीमार होते है इसलिए क्यों न हम एलोवेरा को दैनिक जीवन का अंग बना ले। यह संपूर्ण ष्षरीर का काया कल्प करता है बस जरूरत है सभी को अपनी रोजमर्रा की व्यस्तम् जिंदगी से थोडा सा समय अपने लिए चुराकर इसे अपनाने की।
 प्रेषकः-


भुवनेष्वरी मालोत


जिला संयोजिका


महिला पंतजलि योग समिति


बाॅसवाडा राज

गुरुवार, 8 मार्च 2012

महिला दिवस पर सभी मातृ षक्ति को नमन्




सदियो से पुरूष प्रधान समाज में नारी को पुरूषों के स्वामित्व में रहना पड रहा है।भारत में एक लडकी को युवास्था में पिता पर निर्भर रहती है,षादि के बाद पति पर और बूढी होने पर बेटे पर । डर षब्द तो नारी के साथ जन्म से मृत्यु तक साथ रहता है पैदा होने से पहले ही गर्भ में मार देने का डर बचपन मे षिक्षा से वंचित होने का डर ,बाल विवाह का डर ,जवान होने पर गिद्ध की तरह घूरती हुई नजरो का डर, षादि पर दहेज का ,दहेज न देने पर जलाकर मारदेने का डर, लेकिन फिर भी पाष्चात्य संस्कृति के प्रभाव व षिक्षा के कारण आज की नारी उन्मुक्त आसमान में मुक्त साॅस लेने के लिए लालायित है। नारी के बारे समय-समय विभिन्न दृषिटकोण विद्धवानों द्धारा रखे गये है । कहा गया हैकि नारी


‘‘ कार्येषु मंत्री, करमेषु दासी भोज्येषु माता षयेनषु रम्भा ।

धर्मानुकूल क्षमया धरित्री वाड्गुणयुक्ता सुलभा च नारी।‘‘

एक तरफ जयषंकरप्रसाद कहते है‘‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो,विष्वास रजत नभ तल मे ,पीयुष स्त्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में ।

आर्किमिडीज के अनुसार‘‘नारी बादाम का मासुम फूल है,खजूर का कच्चा फल है,चेरी की रंगत है, गुलाब का नषा है, उसे जिसने समझा वही ठगा गया। लेकिन वास्तव में नारी किसी भी घर की,परिवार की, समाज की धूरी होती है ऐसे में उसका सषक्त होना जरूरी है।नारी के जितने नाम है उतने ही रूप है,एक पुरूष को कदम-कदम पर माॅ ,बहन,प्रेयसी,पत्नि व सहचरी के रूप में स्नेह,प्यार,ममत्व देने वाली नारी ही तो हैै।आज कई क्षेत्रो में नारी ने अपने हौसलों के बल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है आज कई राज्यों में महिला मुख्य मंत्री है,महिला राषट््पति है।आज वह चूल्हे चैके से बाहर निकलकर चंदा तक पहुॅच चुकी है,वह घर-गृहस्थी के साथ आॅफीस की भी दोहरी जिम्मेदारी को बखूबी से निभा रही है,साथ ही वह अपने व बच्चों के भविषय के लिए एक सजग प्रहरी की तरह हमेषा तैयार रहती है।आज की नारी हर क्षैत्र में स्मार्ट बनकर जीना चाहती है क्योंकि वह इस सच्चाई को समझ गयी है कि आज का पुरूष स्र्माट वाइफ चाहता है,बेटा स्र्माट माॅम चाहता है,साॅस स्र्माट बहू चाहती है।इसलिए आज की नारी पुरूष के समकक्ष है और पुरूष के नजरिये में भी परिवर्तन आया है,वह भी सहयोग के लिए तत्पर नजर आता है,आज साॅस-बहू के संबधो मे भी अच्छा साॅमजस्य देखने मिलता है। नारी नारी की दुष्मन न बने बल्कि उसकी सहयोगी बने।नारी समय के विकास के साथ कदमताल अवष्य करे किंतु अपने भीतर की नारी को,अपने भीतर की माॅ को, अपनी भारतीय संस्कृति को हमेषा जागृत रखे। साथ ही समाज को भी नारी के प्रति अपने नजरिये में परिवर्तन लाना होगा। इस दिवस की सार्थकता तभी होगी,जब हम अपनी बेटी,बहन बहू को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प ले ताकि उनका जीवन सुंदर व भविषय सुखद बन सके।आज हम सभी बहने अपनी अपनी षक्तियों को एक जगह संगठित करके माॅ दुर्गा की तरह समाज मे व्याप्त महिषासुरी समस्याये जैसे कन्या-भूण हत्या ,दहेज के लिए बहू की हत्या,षिक्षा के अधिकार से वंचित करना घरेलू ंिहंसा जैसी समस्या से लडने के लिए एक जूट हो जाये,अपने अधिकार के साथ अपने कर्तव्य को समझे गलत परम्पराओं का विरोध करे।

मैं अंत में अपनी बहनों से कहना चाहूगी कि ‘‘कोमल है कमजोर नही,षक्ति का नाम ही नारी है,सबको जीवन देने वाली,मौत भी तुझसे हारी है।इन्ही षुभकामनाओं के साथ,

श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

अन्न का सम्मान करे

   
                                         

             अकसर हमारे समाज में शादी हो या जन्म-दिन या अन्य कोई शुभ प्रंसग हो भोज का आयोजन किया जाता है, प्रायः देखने में आता है कि लोग खाते कम है, अन्न की बर्बादी ज्यादा करते है आजकल कई तरह के व्यंजनो के स्टाॅल लगते है जिससे सब का मन ललचा उठता है,और सभी व्यंजनो का स्वाद लेने के चक्कर मे ढेर सारा भोजन प्लेट में ले लेते है और पेटभर जाने के कारण अनावश्यक रूप से लिया गया भोजन बच जाता है जिसे कूडे- दान में फेंक दिया जाता है या नाली में बहा दिया जाता है ,लेकिन हम चाहे तो अन्न की बर्बादी को काफी हद तक रोक सकते है,यदि इस भोजन का सद्उपयोग किया जाय तो न जाने कितने भूखे-गरीबोे पेट भर सकता है। किसी संस्था की मदद से अनाथाश्रम या किसी बस्ती में पहुचाया जा सकता है या अप्रत्यक्ष रूप सं गौ-माता को इस भोजन में सम्मिलित कर अप्रत्यक्ष पुण्य का भागीदार आप बन सकते है गौ-शाला से सम्पर्क करके,फोन द्धारा सूचित करके या स्ंवय गायों तक भोजन पहुचाकर  पुण्य कमा सकते है      

                                                                                                             

        यदि व्यंजन पंसद न हो तो पहले से निकाल लेना चाहिये ,जूठा नहीं छोडना चाहिये। अन्न को देवता का दर्जा दिया गया है ,इसलिये अन्न को देवता का रूप समझकर ग्रहण करना चाहिये । मनुस्मृति में कहा गया है कि अन्न ब्रहृा है,रस विष्णु है और खाने वाला महेश्वर है। भोजन के समय प्रसन्नता पूर्वक भोजन की पं्रशसा करते हुये ,बिना झूठा छोडे हुये ग्रहण करना चाहिये । दूसरो के निवाले को हम नाली में बहा कर अन्न देवता का अपमान कर रहे है, जो रूचिकर लगे वही खाये ,पेट को कबाडखाना न बनाये । भांेजन को समय पर ग्रहण करके भोजन का सम्मान करे ,मध्य रात्री को पशु भी नहीं खाता है । प्रत्येक स्टाॅल पर विरोधी स्वभाव के भोजन को स्वविवेक के अनुसार ग्रहण करना चाहिये ।।सब का स्वाद ले लू वाली प्रव्रृति का त्याग करे ।

           गाॅॅधी जी ने कहा है कि कम खाने -वाला ज्यादा जीता है,ज्यादा खाने वाला जल्दी मरता है।  

                                           श्रीमति भुवनेश्वरी   मालोत 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

कन्या-भ्रूण हत्या को रोकने के उपाय

                                                                           
      बिना मातृत्व के एक स्त्री को अधूरी माना जाता है,जिस पूर्णता को प्राप्त होने पर जहा उसे आत्म-संतोष का आभास होता है, लेकिन जैसे ही पता पडता है, ये कन्या-भ्रूण है तो वह इसको नष्ट करने के लिए तैयार हो जाती है। कन्या-भ्रूण हत्या के लिए सभी जिम्मेदार है, सबसे पहले इसकी जिम्मेदारी माॅ और उसके परिजनो पर है, एक माॅ परिजनो के दबाब में आकर अपने ही  पेट में पल रहे कन्या-भ्रूण की हत्या करने पर उतारू हो जाती है।

    इसके लिए सामाजिक जागृति लानी होगी और माॅ व बेटियों के मन में आत्म-विश्वास जागृत करना होगा ताकि साहस पूर्वक इस घिनौने कार्य का विरोध कर सके ।  
   

डाक्टरो के लिए सख्त नियम लागू करके,दोषी डाक्टरो के विरूद्ध सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।



डाक्टर को अपने पेशे के मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए ऐसे कृत करने से मना करना हेागा 


 गांव-गंाव में लोगो को नाटको व मंचो के द्धारा कन्या के महता को समझाना होगा।

  


श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत


शनिवार, 21 जनवरी 2012

बेटी-माॅ का प्रतिबिंब है

                  बेटी किसी भी समाज व परिवार की धरोहर है ,कहा जाता है कि अगर किसी भवन की नींव मजबूत होगी तो भवन भी मजबूत होगा।माॅ बेटी का रिश्ता एक नाजुक स्नेहिल रिश्ता है। प्राचीन काल में धार्मिक मान्यताओं अनुसार बेटी के जन्म पर कहा जाता था कि लक्ष्मी घर आई है,साथ ही बेटी के जन्म को कई पूण्यों का फल माना जाता था ।
             मोरारी बापू ने अपने प्रवचन में  बेटी को माता-पिता की आत्मा और  बेटे को हृदय की संज्ञा दी हेै। हृदय की धडकन तो कभी भी बंद हो सकती है लेकिन बेटी व आत्मा का संबध जन्मजंमातर का रहता है वह कभी  अलग नहीं हो सकती है
               यद्यपि आधुनिक युग में माता-पिता के लिए बेटा-बेटी दोनो समान है,लेकिन कुछ रूढिवादी प्रथाओं,अशिक्षा,अज्ञानता व सामाजिक बुराइयों के कारण इसे अनचाही संतान माना जाने लगा है और बेटे और बेटी को समान दर्जा नही दे पाते है। कुछ लोग अपनी कुठित मानसिकता के कारण   बेटा स्वर्ग का सौपान और कन्या को नरक का द्धार मानते है   बेटी परिवार के स्नेह का केन्द्र बिन्दु और कई रिश्तो का मूल होती है।माॅ-बेटी का रिश्ता पारिवारिक रिश्तो की दुनिया मे एक महत्वपूर्ण रिश्ता है क्योंकि माॅ-बेटी का संबध दूध और रक्त दानों का होता है। माॅ ही बेटी की प्रथम गुरू होती है ।माॅ ही बचपन  मे अपनी लाड प्यार ममत्व रूपी खाद से बेटी रूपी पौधे को सींचने,तराशने व संवारने का कार्य करती है।एक माॅ का खजाना है उसकी बेटी ,एक माॅ की उम्मीद है उसकी बेटी, एक माॅ का भविष्य है उसकी बेटी, ,एक माॅ का हौसला है उसकी बेटी और  एक माॅ का अंतिम सहारा है उसकी बेटी ।                                                                                
             भाई और बहन के प्यार की गहरी जडे भी कभी दुश्मनी मे बदल सकती है,पति-पत्नि के प्यार डगमगाने लगते है,लेकिन एक माॅ का प्यार बेटी के लिए मजबूत दीवार होता है क्योंकि उसकी जडे बहुत गहरी होती है। माॅ-बेटी एक दूसरे के दिल की धडकन होती हैं।विष्वास, कार्यकुषलता, उदारता ,खुली सोच,समझदारी आदि केवल माॅ ही बेटी को उसकी सच्ची सहेली बनकर दे सकती है जो उसके भावी जीवन के लिए उत्रदायी है।

 आज बेटियो ने चारो दिषाओे  में अपनी उपस्थित दर्ज करा चुकी है इसमे एक माॅ का त्याग,समर्पण लाड दुलार व सख्ती ही जो बेटी के हौसलो को उडान मिल सकी है। एक माॅ बेटी में अपना प्रतिबिंब तलाषती है,एक माॅ चाहती है कि बेटी उसी की तरह संस्कारो व परम्पराआंे को आगे बढाने में उसकी सहयोगी, हमदर्द सखी सब कुछ बने ।एक माॅ बेटी की सच्ची सहेली की भूमिका को निभाते हुए उसके दिल की गहराई तक पहुचकर उसकी सहयोगी,विष्वासी बनकर उसका वर्तमान व भविष्य का जीवन संवारती है।माॅ अपनी बेटियो को आधुनिक व पुरातन में समन्वय रखते हुये खुला आकाष देती है ताकि वह अपने पंखो को फैलाकर सफलता की नयी उॅचाईयों को छू सके ।बेटी में कार्यकुश्षलता का बीजारोपण एक माॅ अच्छी तरह कर सकती है।वह उसे स्ंवय की,घर की स्वच्छता ,घर की सजावट,रसोई व खानपान की जानकारी परिवार की  परम्पराओ व रीति रिवाजो पारिवारिक रिश्ष्तो की   अहमियत ,आचरण व षालीनता आदि का ज्ञान देती है।
       माॅ बेटी को भावी जीवन में आने वाली समस्याओं के बारे में बताती है सुसराल वालो व पति के साथ अपने दायित्वों को निभाने हुये परिवार मे समन्वय स्थापित करने के लिए प्रेरित करती है।
       इसी तरह बचपन में एक बेटी अपनी मम्मी की तरह ही दिखना चाहती है उसकी मम्मी की तरह साडी पहनती है माॅ की आदतो की नकल करती है। लेेकिन जैसे-जैसे बडी  होती है उसे लगने लगता है माॅ उसकी भावनाऔ को नही समझ रही है।लेकिन एक माॅ अपनी बडी होती बेटी के रक्षात्मक रवैया अपनाती है क्योंकि लेखिका सलुजा ने कहा है कि चिडियो  और लडकियो की प्रकृति बडी सौम्य,सरल और निष्छल प्राणी की होती है ये अपनी सरलता व भोलेपन के कारण ही प्रायः अन्याय और षोषण का षिकार  हो जाती है। इसलिये बेटी को भी हमेषा अपनी माॅ से खुले रूप से बात करनी चाहिये अपनी पढाई अपने दोस्तो के बारे में ताकि एक माॅ समय के अनुसार बदलकर बेटी को आजादी दे सके,उस पर विष्वास कर सके ।


                     श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत    
 

सोमवार, 16 जनवरी 2012

दांपत्य में अल्पविराम के बाद...


                                                                
                                                        

          हिन्दुओ में विवाह को एक ऐसा संस्कार माना गया है जिससे कई महत्वपूर्ण संस्कार छुपे हुए
है यह जन्म जन्मान्तर का अथार्त सात जन्मों का नाता है। विवाह से पहले प्यार प्रथम होता है ,विवाह के बाद प्राथमिकताए बदल जाती है। पति-पत्नि मन-प्राण से दूध में पानी की तरह घुल जाते है। धीरे -धीरे इस संबधो में परिपक्वता आ जाती है। पति-पत्नि नौकरी पेशा है तो दोनों इतने व्यस्त हो जाते है कि उन्हें अपने वैवाहिक संबधों कंे बारे में सोचने का समय ही नहीं मिलता ,लेकिन इन संबधो को मजबूत बनाने के लिए निरतंर कोशिश करने की आवश्यकता है।
विवाह के बाद जिंदगी में जब अल्पविराम आ जाये तो  इन नुस्खो को अपनाकर दांपत्य जीवन में इन्द्रधनुषी रंग भर सकते है।


ऽ आपसी विश्वास ही विवाह की सफलता  की कुंजी है,इस रिश्ते में गर्माहट आपसी समझदारी व विश्वास के बल पर आ सकती है।

ऽ दोनो एक दूसरे  को उसके नजरिये से समझे इससे टकराव व विरोध की स्थिति पैदा नही होगी ।


ऽ एक दूसरे की भावनाओं को समझने में दांपत्य की सफलता छिपी है ,एक दूसरे की खुशी को अहमियत दे,एक दूसरे को दुख न पहुचे ,छोटी -छोटी बातो को तुल न दे वरन दोस्त बनकर एक दूसरे का सहयोग करे ।


ऽ एक दूसरे के व्यक्तित्व को उसकी खुबियो व खामियो के साथ स्वीकार करे ,सराहना व सम्मान करे क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता है ।


ऽ शिकायतो से दांपत्य जीवन में कडवाहट घुलती है ,इसलिए हमेशा जीवन साथी की प्रंशसा के अवसर तलाशिये ।

ऽ दोनो एक दूसरे के परिवार को अपना समझकर अपनत्व व सम्मान दे ।

ऽ जीवन साथी के आत्म-सम्मान को बढाने की कोशिश करे, न की ठेस पहुचाने की ।

ऽ दोनो एक दूसरे की रूचियों को समान महत्व देते हुए उसे प्रोत्साहित करे ।

ऽ यदि नौकरी पेशा दंपती है तो घरेलु व अन्य कार्यो में एक दूसरे का सहयोग करे ।

ऽ दोनो परिवार की समस्या को आपसी विचार विर्मश के द्धारा समाधान करने की कोशिश करे ।

ऽ भावुकता में बहकर भूलकर भी अपने शादी के पूर्व संबधों की चर्चा न करे ।कभी -कभी ईमानदारी से सब कुछ बता देने का परिणाम बहुत बुरा हो सकता है।

ऽ नौकरी पैशा दंपती अपने पुरूष या महिला कर्मियो से अपने जीवन साथी से शालीनता पूर्वक मिलाए व संबधो में मर्यादा बनाए रखे।

ऽ तृप्त यौन कुदरत की सर्वाधिक आंनदायी क्रिया व सुखी दांपत्य की कुंजी है, इसे नजरअंदाज करना दांपत्य संबधो को कमजोर करने जैसा है। दांपत्य को पुरा समय दे ताकि एक दूसरे प्रति विवाह के बाद भी शारीरिक आकर्षण बना रहे ।

ऽ झगडे या बहस की स्थिति मे गलती का अहसास होने पर साॅरी प्यार की अभिव्यक्ति के साथ कहिये ।

ऽ दांपत्य की सफलता के लिए हर पल इस रिश्ते को नवीनता के साथ जीये और अपने साथी को सरप्राइज दे। जैसे खान-पान ,पहनावा ,सौदर्य, घर की सजावट, घूमने का कार्यक्रम बनाके,बचत करक, उपहार देके ।

ऽ एक दूसरे को जन्मदिन,शादि की वर्षगांठ या अन्य सफलता के अवसर पर तोहफा या प्यार भरी बधाई देने में कंजूसी न दिखाये ।

ऽ संवादहीनता दांपत्य जीवन को नीरस बना देती है इसलिए दोनो उन सार्थक मुद्दों घर,समाज राजनीति पर जिनसे आप जुडे है विचार विर्मश करे ।


ऽ शक्की मिजाज दांपत्य में दरार पैदा कर सकता है,इसलिए छोटी-छोटी बातो में शक को बीच में न आने दे ।

ऽ बहुत ज्यादा नजदीकी दूरी पैदा कर सकती है,इसलिए दांपत्य को आंनद-दायक व सुखी बनाने के लिए समय समय पर कुछ दिनों के लिए एक दूसरे से दूर रहे ,लेकिन दूरी इतनी लम्बी न करे की वियोग का मारा साथी आपको छोड कही और भटक जाय।

ऽ दांपत्य में लज्जा अथवा संकोच ,दुराव को कोई स्थान नहीं होना चाहियं।

           प्यार के धरातल से विवाह की सीढीया चढने में वक्त लग सकता है,लेकिन वैवाहिक बंधन की पवित्र उॅचाई से तलाक की गहरी खाई मे कूदने में जराभी वक्त नहीें लगता है, इसलिए रिश्ते में हम दो होते हुए भी हम एक है,इस बात को हमेशा दिमाग में रखनी चाहिए क्योंकि दांपत्य का रिश्ता सृष्टि का संुदरतम् रिश्ता है ,छोट-मोटी  समस्या तो हर वैवाहिक जीवन में आती है इन समस्याओं से निकलना ही जिंदगी है, हमेशा इस रिश्ते में प्यार, सम्मान, गरिमा व भरोसे की मजबूत दीवार को कायम रखे ।










    श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत