शनिवार, 21 जनवरी 2012

बेटी-माॅ का प्रतिबिंब है

                  बेटी किसी भी समाज व परिवार की धरोहर है ,कहा जाता है कि अगर किसी भवन की नींव मजबूत होगी तो भवन भी मजबूत होगा।माॅ बेटी का रिश्ता एक नाजुक स्नेहिल रिश्ता है। प्राचीन काल में धार्मिक मान्यताओं अनुसार बेटी के जन्म पर कहा जाता था कि लक्ष्मी घर आई है,साथ ही बेटी के जन्म को कई पूण्यों का फल माना जाता था ।
             मोरारी बापू ने अपने प्रवचन में  बेटी को माता-पिता की आत्मा और  बेटे को हृदय की संज्ञा दी हेै। हृदय की धडकन तो कभी भी बंद हो सकती है लेकिन बेटी व आत्मा का संबध जन्मजंमातर का रहता है वह कभी  अलग नहीं हो सकती है
               यद्यपि आधुनिक युग में माता-पिता के लिए बेटा-बेटी दोनो समान है,लेकिन कुछ रूढिवादी प्रथाओं,अशिक्षा,अज्ञानता व सामाजिक बुराइयों के कारण इसे अनचाही संतान माना जाने लगा है और बेटे और बेटी को समान दर्जा नही दे पाते है। कुछ लोग अपनी कुठित मानसिकता के कारण   बेटा स्वर्ग का सौपान और कन्या को नरक का द्धार मानते है   बेटी परिवार के स्नेह का केन्द्र बिन्दु और कई रिश्तो का मूल होती है।माॅ-बेटी का रिश्ता पारिवारिक रिश्तो की दुनिया मे एक महत्वपूर्ण रिश्ता है क्योंकि माॅ-बेटी का संबध दूध और रक्त दानों का होता है। माॅ ही बेटी की प्रथम गुरू होती है ।माॅ ही बचपन  मे अपनी लाड प्यार ममत्व रूपी खाद से बेटी रूपी पौधे को सींचने,तराशने व संवारने का कार्य करती है।एक माॅ का खजाना है उसकी बेटी ,एक माॅ की उम्मीद है उसकी बेटी, एक माॅ का भविष्य है उसकी बेटी, ,एक माॅ का हौसला है उसकी बेटी और  एक माॅ का अंतिम सहारा है उसकी बेटी ।                                                                                
             भाई और बहन के प्यार की गहरी जडे भी कभी दुश्मनी मे बदल सकती है,पति-पत्नि के प्यार डगमगाने लगते है,लेकिन एक माॅ का प्यार बेटी के लिए मजबूत दीवार होता है क्योंकि उसकी जडे बहुत गहरी होती है। माॅ-बेटी एक दूसरे के दिल की धडकन होती हैं।विष्वास, कार्यकुषलता, उदारता ,खुली सोच,समझदारी आदि केवल माॅ ही बेटी को उसकी सच्ची सहेली बनकर दे सकती है जो उसके भावी जीवन के लिए उत्रदायी है।

 आज बेटियो ने चारो दिषाओे  में अपनी उपस्थित दर्ज करा चुकी है इसमे एक माॅ का त्याग,समर्पण लाड दुलार व सख्ती ही जो बेटी के हौसलो को उडान मिल सकी है। एक माॅ बेटी में अपना प्रतिबिंब तलाषती है,एक माॅ चाहती है कि बेटी उसी की तरह संस्कारो व परम्पराआंे को आगे बढाने में उसकी सहयोगी, हमदर्द सखी सब कुछ बने ।एक माॅ बेटी की सच्ची सहेली की भूमिका को निभाते हुए उसके दिल की गहराई तक पहुचकर उसकी सहयोगी,विष्वासी बनकर उसका वर्तमान व भविष्य का जीवन संवारती है।माॅ अपनी बेटियो को आधुनिक व पुरातन में समन्वय रखते हुये खुला आकाष देती है ताकि वह अपने पंखो को फैलाकर सफलता की नयी उॅचाईयों को छू सके ।बेटी में कार्यकुश्षलता का बीजारोपण एक माॅ अच्छी तरह कर सकती है।वह उसे स्ंवय की,घर की स्वच्छता ,घर की सजावट,रसोई व खानपान की जानकारी परिवार की  परम्पराओ व रीति रिवाजो पारिवारिक रिश्ष्तो की   अहमियत ,आचरण व षालीनता आदि का ज्ञान देती है।
       माॅ बेटी को भावी जीवन में आने वाली समस्याओं के बारे में बताती है सुसराल वालो व पति के साथ अपने दायित्वों को निभाने हुये परिवार मे समन्वय स्थापित करने के लिए प्रेरित करती है।
       इसी तरह बचपन में एक बेटी अपनी मम्मी की तरह ही दिखना चाहती है उसकी मम्मी की तरह साडी पहनती है माॅ की आदतो की नकल करती है। लेेकिन जैसे-जैसे बडी  होती है उसे लगने लगता है माॅ उसकी भावनाऔ को नही समझ रही है।लेकिन एक माॅ अपनी बडी होती बेटी के रक्षात्मक रवैया अपनाती है क्योंकि लेखिका सलुजा ने कहा है कि चिडियो  और लडकियो की प्रकृति बडी सौम्य,सरल और निष्छल प्राणी की होती है ये अपनी सरलता व भोलेपन के कारण ही प्रायः अन्याय और षोषण का षिकार  हो जाती है। इसलिये बेटी को भी हमेषा अपनी माॅ से खुले रूप से बात करनी चाहिये अपनी पढाई अपने दोस्तो के बारे में ताकि एक माॅ समय के अनुसार बदलकर बेटी को आजादी दे सके,उस पर विष्वास कर सके ।


                     श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत    
 

सोमवार, 16 जनवरी 2012

दांपत्य में अल्पविराम के बाद...


                                                                
                                                        

          हिन्दुओ में विवाह को एक ऐसा संस्कार माना गया है जिससे कई महत्वपूर्ण संस्कार छुपे हुए
है यह जन्म जन्मान्तर का अथार्त सात जन्मों का नाता है। विवाह से पहले प्यार प्रथम होता है ,विवाह के बाद प्राथमिकताए बदल जाती है। पति-पत्नि मन-प्राण से दूध में पानी की तरह घुल जाते है। धीरे -धीरे इस संबधो में परिपक्वता आ जाती है। पति-पत्नि नौकरी पेशा है तो दोनों इतने व्यस्त हो जाते है कि उन्हें अपने वैवाहिक संबधों कंे बारे में सोचने का समय ही नहीं मिलता ,लेकिन इन संबधो को मजबूत बनाने के लिए निरतंर कोशिश करने की आवश्यकता है।
विवाह के बाद जिंदगी में जब अल्पविराम आ जाये तो  इन नुस्खो को अपनाकर दांपत्य जीवन में इन्द्रधनुषी रंग भर सकते है।


ऽ आपसी विश्वास ही विवाह की सफलता  की कुंजी है,इस रिश्ते में गर्माहट आपसी समझदारी व विश्वास के बल पर आ सकती है।

ऽ दोनो एक दूसरे  को उसके नजरिये से समझे इससे टकराव व विरोध की स्थिति पैदा नही होगी ।


ऽ एक दूसरे की भावनाओं को समझने में दांपत्य की सफलता छिपी है ,एक दूसरे की खुशी को अहमियत दे,एक दूसरे को दुख न पहुचे ,छोटी -छोटी बातो को तुल न दे वरन दोस्त बनकर एक दूसरे का सहयोग करे ।


ऽ एक दूसरे के व्यक्तित्व को उसकी खुबियो व खामियो के साथ स्वीकार करे ,सराहना व सम्मान करे क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता है ।


ऽ शिकायतो से दांपत्य जीवन में कडवाहट घुलती है ,इसलिए हमेशा जीवन साथी की प्रंशसा के अवसर तलाशिये ।

ऽ दोनो एक दूसरे के परिवार को अपना समझकर अपनत्व व सम्मान दे ।

ऽ जीवन साथी के आत्म-सम्मान को बढाने की कोशिश करे, न की ठेस पहुचाने की ।

ऽ दोनो एक दूसरे की रूचियों को समान महत्व देते हुए उसे प्रोत्साहित करे ।

ऽ यदि नौकरी पेशा दंपती है तो घरेलु व अन्य कार्यो में एक दूसरे का सहयोग करे ।

ऽ दोनो परिवार की समस्या को आपसी विचार विर्मश के द्धारा समाधान करने की कोशिश करे ।

ऽ भावुकता में बहकर भूलकर भी अपने शादी के पूर्व संबधों की चर्चा न करे ।कभी -कभी ईमानदारी से सब कुछ बता देने का परिणाम बहुत बुरा हो सकता है।

ऽ नौकरी पैशा दंपती अपने पुरूष या महिला कर्मियो से अपने जीवन साथी से शालीनता पूर्वक मिलाए व संबधो में मर्यादा बनाए रखे।

ऽ तृप्त यौन कुदरत की सर्वाधिक आंनदायी क्रिया व सुखी दांपत्य की कुंजी है, इसे नजरअंदाज करना दांपत्य संबधो को कमजोर करने जैसा है। दांपत्य को पुरा समय दे ताकि एक दूसरे प्रति विवाह के बाद भी शारीरिक आकर्षण बना रहे ।

ऽ झगडे या बहस की स्थिति मे गलती का अहसास होने पर साॅरी प्यार की अभिव्यक्ति के साथ कहिये ।

ऽ दांपत्य की सफलता के लिए हर पल इस रिश्ते को नवीनता के साथ जीये और अपने साथी को सरप्राइज दे। जैसे खान-पान ,पहनावा ,सौदर्य, घर की सजावट, घूमने का कार्यक्रम बनाके,बचत करक, उपहार देके ।

ऽ एक दूसरे को जन्मदिन,शादि की वर्षगांठ या अन्य सफलता के अवसर पर तोहफा या प्यार भरी बधाई देने में कंजूसी न दिखाये ।

ऽ संवादहीनता दांपत्य जीवन को नीरस बना देती है इसलिए दोनो उन सार्थक मुद्दों घर,समाज राजनीति पर जिनसे आप जुडे है विचार विर्मश करे ।


ऽ शक्की मिजाज दांपत्य में दरार पैदा कर सकता है,इसलिए छोटी-छोटी बातो में शक को बीच में न आने दे ।

ऽ बहुत ज्यादा नजदीकी दूरी पैदा कर सकती है,इसलिए दांपत्य को आंनद-दायक व सुखी बनाने के लिए समय समय पर कुछ दिनों के लिए एक दूसरे से दूर रहे ,लेकिन दूरी इतनी लम्बी न करे की वियोग का मारा साथी आपको छोड कही और भटक जाय।

ऽ दांपत्य में लज्जा अथवा संकोच ,दुराव को कोई स्थान नहीं होना चाहियं।

           प्यार के धरातल से विवाह की सीढीया चढने में वक्त लग सकता है,लेकिन वैवाहिक बंधन की पवित्र उॅचाई से तलाक की गहरी खाई मे कूदने में जराभी वक्त नहीें लगता है, इसलिए रिश्ते में हम दो होते हुए भी हम एक है,इस बात को हमेशा दिमाग में रखनी चाहिए क्योंकि दांपत्य का रिश्ता सृष्टि का संुदरतम् रिश्ता है ,छोट-मोटी  समस्या तो हर वैवाहिक जीवन में आती है इन समस्याओं से निकलना ही जिंदगी है, हमेशा इस रिश्ते में प्यार, सम्मान, गरिमा व भरोसे की मजबूत दीवार को कायम रखे ।










    श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत