बिना मातृत्व के एक स्त्री को अधूरी माना जाता है,जिस पूर्णता को प्राप्त होने पर जहा उसे आत्म-संतोष का आभास होता है, लेकिन जैसे ही पता पडता है, ये कन्या-भ्रूण है तो वह इसको नष्ट करने के लिए तैयार हो जाती है। कन्या-भ्रूण हत्या के लिए सभी जिम्मेदार है, सबसे पहले इसकी जिम्मेदारी माॅ और उसके परिजनो पर है, एक माॅ परिजनो के दबाब में आकर अपने ही पेट में पल रहे कन्या-भ्रूण की हत्या करने पर उतारू हो जाती है।
इसके लिए सामाजिक जागृति लानी होगी और माॅ व बेटियों के मन में आत्म-विश्वास जागृत करना होगा ताकि साहस पूर्वक इस घिनौने कार्य का विरोध कर सके ।
डाक्टरो के लिए सख्त नियम लागू करके,दोषी डाक्टरो के विरूद्ध सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।
डाक्टर को अपने पेशे के मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए ऐसे कृत करने से मना करना हेागा
गांव-गंाव में लोगो को नाटको व मंचो के द्धारा कन्या के महता को समझाना होगा।
श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
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