सोमवार, 11 अगस्त 2014

प्रणाम निवेदन या चरण-स्पर्श

प्रणाम निवेदन या चरण-स्पर्श   

                           एक मार्केण्डेय नाम के मुनि थे। उन्हें भगवान शिव की कृपा से एक पुत्र की प्राप्ति हुई, किन्तु वह अल्पायु था। मुनि चिंतित हुए और उन्होंने झट से अपने पुत्र का यज्ञोपवित करा डाला और पुत्र को कहा तुम जिस किसी ब्राहाण,मुनि,पूज्य को देखो उन्हें विनम्र होकर अवश्य प्रणाम करना,आज्ञाकारी पुत्र ने इस अभिवादन व्रत को अपने जीवन में अपना लिया और जो भी मिलता उनके चरणो मे झुक जाते, इस प्रकार ऋषियों ,मुनियोे व पूज्यों से दीर्घायु भवः का आर्शीवाद प्राप्त होता गया और सचमुच वे अश्वथामा,बलि,व्यास ,हनुमान,विभीषण,कृपाचार्य तथा परशुराम इन सातो की तरह वह भी  दीर्घायु व चिंरजीवी होगए।

          महाराज युधिष्ठर ने भी महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह से युद्ध में विजयी होने का आर्शीवाद प्राप्त किया। यह एक संस्कार है,शिष्टाचार का महत्वपूर्ण अंग है,इसमें छोटा बडों को चरण-स्पर्श करता है व समान आयु वर्ग का व्यक्ति नमस्कार करता है।
           अभिवादन शीलस्य नित्यम् वृद्धों वसेविन,
              चत्वारि तस्य वर्धेन्ते आयु विद्या यशो बलम्।
       
        अभिप्राय है कि अभिवादन व चरण-स्पर्श से सभी प्रकार के अभिष्ठ सिद्ध हो सकता है। सुबह उठकर वृद्धजनो व माता-पिता को प्रणाम करने से आयु विद्या यश और बल ये चारो बढते है । कहा गया है कि ‘मातृ देवो भवः पितृ देवो भवः आचार्य देवो भवः।माता-पिता की सेवा पुत्र को सब प्रकार से करनी चाहिये। जो पुत्र माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है एवं उनके चरण-स्पर्श करता है,उसने मानो पृथ्वी भर की परिक्रमा कर ली हो,ये तो घर पर उपलब्ध सबसे बडे तीर्थ हैअन्य तीर्थ तो दूर जाने पर प्राप्त होते है।भगवान गणेश ने माता की परिक्रमा करके सब देवो में सर्व प्रथम पूज्य पद प्राप्त किया ।      
             
            यह क्यों व कैसे करना चाहिये इसका भी वैज्ञानिक स्वरूप है। प्रत्येक मानव पिण्ड में विद्युत आकर्षण शक्ति रहती है,ये शक्ति  भी ऋणात्मक व धनात्मक दो प्रकार की होती है इसलिए दाये हाथ से दाये व बाये हाथ से बाये पैर को स्पर्श करने का विधान है इसप्रकार स्पर्श करने से प्रणम्य एवं प्रणामकर्ता दोनो पिण्डो की नेगेटिव एवं पाॅजिटिव दोनो धाराएं समान रूप से मिलती है जैसे विद्युत उत्पादक यंत्र में प्रवाहित संचित विद्युत अपने सम्पर्क में आने वाले दूसरे यंत्र मे ंप्रवाहित हो उठती है वैसे ही प्रणाम करने पर गुरूजन व श्रेष्ठजन के सद्गुण अपने में आजाते है,सिर पर हाथ रखने से शक्ति मिलती है। एक दीपक से दूसरा दीपक जल जाता है और पहले दीपक मे ंकोई न्यूनता नही आती है इसी प्रकार प्रणाम करने से आयु विद्या यश बल सब प्राप्त हो जाता है।आज इसकी उपेक्षा एवं अस्वीकृती के कारण  परिवार समाज और राष्ट् की सारी व्यवस्था बिगड गयी है अभिवादन जीवन के प्रांरभ का मूल संस्कार है अतः इसे प्रयत्न पूर्वक अपने जीवन मे अवश्य उतारना चाहिये।
                 
                     प्रेषकः-
                       श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
                         अस्पताल चैराहा
                         महादेव कॅंालोनी
                         बाॅसवाडा राज