आज मैं सभी महिलाओ के साथ सेवा के लिए वृद्धाश्रम गयी थी।वहां एक महिला की आपबीति सुनकर मन दुःखी होगया,वह कहने लगी ब्याह से पहले माॅ कहती थी बेटी तेरा घर तो तेरा सुसराल है,यह तो तेरे लिए पराया घर है फिर ब्याह हुआ सुसराल को अपना घर समझने लगी उसे तन मन से सजाया,संवारा कुछ समय बाद अहसास हुआ कि यहां तो पति और सास का आधिपत्य है,मेरा तो कुछ नहीं है,मैं तो यहां भी परायी हू।फिर पति की अकाल म्््ृत्यु ने मुझको एक बार फिर सुसराल में ज्यादा पराया कर दिया।जैसे तेैसे मेहनत-मजदूरी करके बच्चो को पढाया लिखाया,ब्याह किया।बेटो ने अपने घर बनाए,बेटो का अपना परिवार बढा तो उस घर में माॅ के लिए जगह नहीं रही ,एक दिन उन लाडलो ने अपनी माॅ को वृद्धाश्रम छोड दिया ,जहाॅ वह अपनो से दूर रहकर अपने जीवन का अंतिम समय गुजार रही है।यहाॅ आकर मुझे जीवन की सच्चांई का अहसास हुआ कि यही तो मेरा अपना घर जहाॅ सब मेरे अपने है जो अंतिम समय तक मेरे साथ रहेगें।
श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत
बाॅसवाडा राज.।
sateek v sarthak lekhan .aabhar
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सब उम्रदराज लोगों की कहानी ।
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