हमारे जीवन में संस्कारो का व रीति रिवाजो परम्पराओं का बहुत महत्व हैं।गोद भराई वैवाहिक औरत के जीवन की महत्वपूर्ण घटना है,जो औरतो के द्धारा किया गया गर्भवती औरत के लिए एक बडा उत्सव है।गोद भराई एक हिन्दू संस्कार हैजो देष के अधिकांष भागों मे किया जाता है।बंगाल में यह षाद के रूप में जाना जाता है,केरल में सीमानंधन कहा जाता है,तमिलनाडू में अंसंांचचन हवकीइींतंप कहा जाता है इससे गर्भवती महिला को सांतवे व नंवमे महिने में जब बच्चा सुरक्षित अवस्था में माना जाता है तब भारतीय परम्परा के अनुसार नवजात के आगमन की खुषी में महिला की गोद भराई उपहारो फल,मिठाई,कपडे जैवर से भरी जाती है और आने वाले षिषु व मां की सुरक्षा का आर्षीवाद देते है।
समय और परिस्थितियों के अनुसार यह परम्पराए अच्छी थी।लेकिन आज समय बदल गया है और समय के साथ हमें भी बदलना होगा।कई परम्पराए हमारे विकास के मार्ग रोडा बनती है,समय व पैसो का अपव्यय होता है इसलिए संस्कार को संस्कार रहने देने में ही हमारी भलाई है।रूढि.वादी परम्पराओं का आज की जागरूक महिलाओं को विरोध करना चाहियंे।पेट फुलाकर बैंड-बाजे बजवाना लम्बे चैडे भोज का आयोजन कर कहाॅ की बुद्धिमता है,इन परम्पराओं को बोझ न बनने दे सादगी से निभाये,क्योंकि इन परम्पराओं को निभाने के चक्कर में कर्जा तक लेना पडता है,समाज क्या कहेगा के डर से सुसराल वाले परम्परा निभाकर कर्ज में डूब जाते है।परिवार में तनाव बढता है और व्यक्ति मन ही मन अपने आप को कोसता है।
आइये हम इस गोद भराई की रस्म में जननी स्वस्थ्य रहे व स्वस्थ्य संतान को जन्म दे सके एसे आर्षीवाद से गोद भरे इससे प्रसव के दोैरान न तो खून की कमी होगी और नहीं अन्य जटिलताओं का सामना जननी को व आने वाले बच्चे को करना पडेगा अन्यथा अस्वस्थ्य बच्चा परिवार के लिए हमेषा मुष्किले पैदा करता रहेगा।इसलिए गोद भराई रस्म में प्राथमिकता केवल माॅ व बच्चे के स्वास्थ्य की होनी चाहिये इसकी गोद भराई संस्कार आयरन एवम् फोलिक एसिड की गोलियों से करे,परिजन और रिष्तेदार फल एवम् प्रोटिनयुक्त खाद्य-पदार्थो को भेंट करे यही संस्कार असली गोद भराई संस्कार है जिससे जननी केा सभी तरह की विटामिन आयरन की समुचित मात्रा मिल सके ।हमारे देष की अधिकांष महिलाओ में रक्त की अल्पता है तथा हिमोग्लोबिन का स्तर 7से8 ग्राम ज्यादातर महिलाओं में पाया जाता है।जिसके फलस्वरूप जच्चा बच्चा दोनों का जीवन संकटमय हो सकता है।महिलाओं में प्रसवो उपरांत अत्यधिक खून बह जात है,कई बार हैमरेज से मौत हो जाती है।बच्चों मे गर्भावस्था के दौरान आयरन की कमी से अल्पमंदबुद्धि वाले षिषु का जन्म तथा फाॅलिक एसिड की कमी से न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट वाले षिषु का प्रसव होसकता है।ऐसे में गोद भराई संस्कार एक जननी एवम् षिषु सुरक्षा अभियान बने अतः सभी महिलाए आगे आकर इस संस्कार को सादगी से आगे बढाये।
भुवनेष्वरी मालोत
बाॅसवाडा राज.
समय और परिस्थितियों के अनुसार यह परम्पराए अच्छी थी।लेकिन आज समय बदल गया है और समय के साथ हमें भी बदलना होगा।कई परम्पराए हमारे विकास के मार्ग रोडा बनती है,समय व पैसो का अपव्यय होता है इसलिए संस्कार को संस्कार रहने देने में ही हमारी भलाई है।रूढि.वादी परम्पराओं का आज की जागरूक महिलाओं को विरोध करना चाहियंे।पेट फुलाकर बैंड-बाजे बजवाना लम्बे चैडे भोज का आयोजन कर कहाॅ की बुद्धिमता है,इन परम्पराओं को बोझ न बनने दे सादगी से निभाये,क्योंकि इन परम्पराओं को निभाने के चक्कर में कर्जा तक लेना पडता है,समाज क्या कहेगा के डर से सुसराल वाले परम्परा निभाकर कर्ज में डूब जाते है।परिवार में तनाव बढता है और व्यक्ति मन ही मन अपने आप को कोसता है।
आइये हम इस गोद भराई की रस्म में जननी स्वस्थ्य रहे व स्वस्थ्य संतान को जन्म दे सके एसे आर्षीवाद से गोद भरे इससे प्रसव के दोैरान न तो खून की कमी होगी और नहीं अन्य जटिलताओं का सामना जननी को व आने वाले बच्चे को करना पडेगा अन्यथा अस्वस्थ्य बच्चा परिवार के लिए हमेषा मुष्किले पैदा करता रहेगा।इसलिए गोद भराई रस्म में प्राथमिकता केवल माॅ व बच्चे के स्वास्थ्य की होनी चाहिये इसकी गोद भराई संस्कार आयरन एवम् फोलिक एसिड की गोलियों से करे,परिजन और रिष्तेदार फल एवम् प्रोटिनयुक्त खाद्य-पदार्थो को भेंट करे यही संस्कार असली गोद भराई संस्कार है जिससे जननी केा सभी तरह की विटामिन आयरन की समुचित मात्रा मिल सके ।हमारे देष की अधिकांष महिलाओ में रक्त की अल्पता है तथा हिमोग्लोबिन का स्तर 7से8 ग्राम ज्यादातर महिलाओं में पाया जाता है।जिसके फलस्वरूप जच्चा बच्चा दोनों का जीवन संकटमय हो सकता है।महिलाओं में प्रसवो उपरांत अत्यधिक खून बह जात है,कई बार हैमरेज से मौत हो जाती है।बच्चों मे गर्भावस्था के दौरान आयरन की कमी से अल्पमंदबुद्धि वाले षिषु का जन्म तथा फाॅलिक एसिड की कमी से न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट वाले षिषु का प्रसव होसकता है।ऐसे में गोद भराई संस्कार एक जननी एवम् षिषु सुरक्षा अभियान बने अतः सभी महिलाए आगे आकर इस संस्कार को सादगी से आगे बढाये।
भुवनेष्वरी मालोत
बाॅसवाडा राज.