अकसर महिलाओं के जीवन में कई अवसर ऐसे आते है जिसमें वह इस कशकश में रहती है कि
‘हाॅं’ कहू या ‘ना’ जहाॅं ‘ना’ कहना चाहती है वहा भी हाॅं कर देती है।अकसर महिलाएॅं अपनी आदत के अनुसार पडौसी या रिश्तेदार या सहकर्मी हो किसी को भी किसी कार्य के लिए ‘ना’ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है। क्योंकि रिश्तों की गरिमा आडे आजाती है। महिला कितनी भी व्यस्त क्यों न हो या बच्चों की परीक्षा चल रही हो या पतिदेव के साथ कई जाने का कार्यक्रम हो लेकिन ‘ना’ नही कह सकती । मन मसोज कर उसे हां कहना पडता है। ऐसी स्थिति मे कई बार पतिदेव के गुस्से का शिकार होना पडता है या कई जरूरी कामो को उस समय टालना पडता है। इसे महिला के मन की दुर्बलता कह सकते है । महिला स्ंवय ‘ना’ नहीं कह पाती लेकिन अपने बच्चों को किसी अनुचित मागों को न मानकर ना करने की शिक्षा देती है। इसलिए हाॅं तो आप अकसर कहती है कभी-कभी ना कहना सीखिए। कुछ बातें अपनाकर मन को ना कहने के लिए तैयार करे।
ऽ ‘ना’ कहने के लिए किसी बहाने की तलाश करने की जरूरत नहीं है सीधा ना कहिये।
ऽ हाॅं करने से कई बार आपको किसी परेशानी का सामना करना पड सकता है या पारिवारिक तनाव से गुजरना पड सकता है इसलिए ना कहना सीखिए।
ऽ कई बार चालक किस्म के लोग आपकी हाॅं कहने की कमजोरी का नाजायज फायदा उठाते है। इसलिए ना कहना सीखिए।
ऽ प्रश्ंासा पाने या अच्छा कहलाने के चक्कर में हाॅं मत करिए।
ऽ ‘हाॅं’ कहने की आदत के कारण कई बार अपनी प्रिय वस्तु जैसे पुस्तक आदि से हाथ धोना पडता है इसलिए उचित समझे वहाॅं ना कहिय।
ऽ सामने वाले की आदत जैसे समय पर वस्तु न लौटाना या खराब करके लौटाना आदि को जानकर हाॅं या ना में से एक को चुनिए ।
ऽ सामने वाला चालाकी से दबाबपूर्ण तरिके से सहायता की मांग करता है और आप ना कहने का कोई बहाना नहीं बना पाती है ऐसी परिस्थिति में हिम्मत करके ना कह दीजिए और उस पर डटी रहे ।
एक बार ना कहने की हिम्मत जुटा लेगी तो ना कहने में संकोच नही होगा।
लेकिन मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समय पडने पर दूसरो के दुख-दर्द में काम आना चाहिय।
सामने वाले की परेशानी की वास्तविकता को जानकर किसी की सहायता के लिए हाॅं कहना बुरा नहीं है।
प्रेषकः-
श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
महादेव कॅंालोनी
बाॅंसवाडा राज
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