सोमवार, 25 जुलाई 2011

बुर्जग घर की रौनक है

           

       बुर्जग शब्द दिमाग में आते ही उम्र व विचारों से परिपक्व व्यक्ति की छबि सामने आती है। बुर्जग अनुभवो का वह खजाना है जो हमें जीवन पथ के कठिन मोड पर उचित दिशा निर्देश करते है।परिवार के बुर्जग लोगो में नाना-नानी,दादा-दादी मॉं-बाप,सास-सुसर आदि आते   बुर्जग घर का   मुखिया होता है इस कारण वह बच्चों,बहुओं,बेटे-बेटी को कोई गलत कार्य या बात करते हुए देखते है तो उन्हें सहन नहीं कर पाते है और उनके कार्यो में हस्तक्षेप करते है जिसे वो पसंद नहीं करते है।वे या तो उनकी बातों को अनदेखा कर देते है या उलटकर जबाब देते है। जिस बुर्जग ने अपनी परिवार रूपी बगिया के पौधों को अपने खून पसीने रूपी खाद से सींच कर पल्लवित किया है, उनके इस व्यवहार से उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुची है। 




  एक समय था जब बुर्जग को परिवार पर बोझ  नहीं बल्कि मार्ग-दर्शक समझा जाता था। आधुनिक जीवन शैली,पीढीयों में अन्तर ,आर्थिक-पहलू ,विचारों में भिन्नता आदि के कारण आजकल की युवा पीढी निष्ठुर और कर्तव्यहीन होगई है।जिसका खाम्याना बुर्जग को भुगतना पडता है। बुर्जगों का जीवन अनुभवों से भरा पडा है, उन्होंने अपने जीवन में कई धूप-छॉंव देखे है जितना उनके अनुभवो का लाभ मिल सके लेना चाहिए। गृह-कार्य संचालन में मितव्यता रखना, खान-पान सबंधित वस्तुओं का भंडारण, उन्हे अपव्यय से रोकना आदि के संबध में उनके अनुभवों को जीवन में अपनाना चाहिए जिससे वे खुश होते है और अपना सम्मान समझते है।  


  बुर्जग के घर में रहने से नौेकरी पेशा माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल व सुरक्षा के प्रति निश्चिंत रहते है।उनके बच्चों में बुर्जग के सानिध्य में रहने से अच्छे  संस्कार पल्लवित होते है। 

 बुर्जगोें को भी उनकी  निजी जिंदगी में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिया। उनके रहन-सहन, खान-पान, घूमने-फिरने आदि पर रोक-टोक नहीं होनी चाहिए। तभी वे शांतिपूर्ण व सम्मानपूर्ण जीवन जी सकते है। बुर्जगों में चिडचिडाहट उनकी उम्र का तकाजा है। वे गलत बात बर्दाश्त नही कर पाते ह,ै इसलिए परिवार के सदस्यों को उनकी भावनाओं व आवश्यकता को समझकर ठडे दिमाग से उनकी बात सुननी चाहिए। कोई बात नहीं माननी हो तो, मौका देखकर उन्हें इस बात के लिए मना लेना चाहिए कि, यह बात उचित नहीं है। सदस्यों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई ऐसी बात न करे जो उन्हें बुरी लगे ।बुर्जगों के साथ दुव्यवहार करने से घर में अशांति बनी रहती है। इस जीवन संध्या में उन्हें आदर व अपनेपन की जरूरत है। इनकी छत्रछाया से हमारी सभ्यता व संस्कृति जीवित रह सकती है। बच्चों को अच्छे संस्कार व स्नेह मिलता है।

बालगंगाधर तिलक ने एक बार कहा था कि‘तुम्हें कब क्या करना है यह बताना बुद्धि का काम है,पर कैसे करना है यह अनुभव ही बता सकता है।’

अंत में ‘फल न देगा न सही,  
              छाव तो देगा तुमको 
पेड बुढा ही सही   
 आंगन में लगा रहने दो।
नोटः-यह आर्टिकल जतन से ओठी चदरिया जिसके संपादक डॉ0ए0 कीर्तिव़र्द्धन  ने अंतर्राष्ट्ीय वृद्ध वर्ष 2009पर वृद्ध भारत का साक्ष्य है में छप चुका है।