आज की युवा- पीढ़ी श्राद्ध मनाने के प्रति श्रद्धा भाव खत्म हो गया है| समाज की नजर में प्रशंसा पाने और दिखावे के लिए लंबे चौड़े भोज का आयोजन करती है| हमें हमारे बुजुर्गों को जीते जी प्यार सम्मान और श्रद्धा देनी होगी मुगल बादशाह शाहजहां ने भी अपने श्राद्ध परंपरा की सराहना की है जब उनके क्रूर पुत्र सम्राट औरंगज़ेब ने उन्हें जेल में बंद कर यातना दे रहा था और पानी के लिए तरसा रहता तब आकिल खा के ग्रंथ ''वाकेआतआलमगीरी में शाहजहाने ने अपने पुत्र के नाम पत्र में मर्मान्त वाक्य लिखे थे'' हे पुत्र तू भी विचित्र मुसलमान है जो अपने जीवित पिता को जल के लिए तरसा रहा है शत-शत प्रशंसनीय है वह हिंदू जो अपने मृत पिता को भी जल देते हैं |
श्राद्ध पक्ष हमें अपने पूर्वजों के प्रति अगाध श्रद्धा और स्मरण भाव के लिए प्रोत्साहित करता है |हमें इसे मानकर भावी पीढ़ी को भी इससे अनुसरण करने की प्रेरणा मिलेगी|
भुवनेश्वरी मालोत
बांसवाडा(राज)