शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

निःस्वार्थ हो भलाई

                               याकूब फ्लेमिंग नाम का एक किसान स्कॉटलैंड में अपने खेत में काम कर रहा था कि अचानक उसने सहायता के लिए पुकारती एक आवाज सुनी। उसने पास जाकर देखा तो एक छोटा बच्चा कीचड़ में गहरे फंसा हुआ है किसान ने बड़ी मेहनत करके उसे निकाला और फिर अपने काम में जुड़ गया। दूसरे दिन एक अमीर आदमी उसकी झोपड़ी में आया और बोला तुमने मेरे बेटे की जान बचाई है मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूं। किसान ने इनाम लेने से इंकार कर दिया और कहा यह तो मेरा कर्तव्य है तब उस अमीर व्यक्ति ने किसान के पास खड़े उसके फटे हाल बच्चे को देखा और कहा इसकी शिक्षा की जिम्मेदारी मैं उठाता हूं तुम उसे मुझे सौप दो।

         कई वर्षों बाद वही बालक पेनिसिलिन का अविष्कारक और प्रसिद्ध वैज्ञानिक एलेग्जेंडर फ्लेमिंग बना। कुछ समय बाद उस अमीर आदमी का बेटा निमोनिया का  शिकार हो गया इसकी जान उसी पेनिसिलिन की वजह से बची। उस आदमी का नाम था लॉर्ड रेन्डोल्फ  और उसके बेटे का नाम विंस्टन   चर्चिल था।

 यह  सही बात है कि जैसा तुम देते हो वैसा ही तुम्हें वापस मिलता है। थोड़ा वक्त जरूर लगता है पर प्रकृति अपने पास कुछ भी नहीं रखती वह आपको कभी खाली हाथ नहीं रहने देगी आपकी अच्छाई वापस लौटकर आपके पास जरूर आएगी ।

आइए हम भी अपने लिए ना सिर्फ दुआ करें बल्कि इसे अपने जीवन का आदर्श बना ले की नेकी किसी फल के लिए नहीं बल्कि आंतरिक खुशी के लिए करेंगे ।

 भुवनेश्वरी मालोत

बांसवाडा


सोमवार, 7 सितंबर 2020

पहले श्रद्धा दे ,फिर श्राद्ध करें



 हमारी संस्कृति कई रीति-रिवाजों और परंपराओं का समन्वय लिए हुए हैं| हिंदुओं में  श्राद्ध  प्रथा  प्राचीन है जो आज भी अति शुभ मानी जाती है हमारे धर्म शास्त्रों में मृत आत्माओं को उचित गति मिले इसके लिए मरणोत्तर पिंड दान और श्राद्ध तर्पण  व्यवस्था की गई है |श्राद्ध    का अर्थ है श्रद्धा पूर्ण व्यवहार तथा तर्पण का अर्थ है पितरों को तृप्त करने की प्रक्रिया है आश्विन मास में श्राद्ध   पक्ष में पितरों का तर्पण किया जाता है और पितरों की मृत्यु के नियत दिन यथाशक्ति ब्रह्म भोज और दान किया जाता है |शास्त्रों में व  गरुण पुराण में कहा गया है कि संसार में                     श्राद्ध   से बढ़कर और कल्याणप्रद  मार्ग नहीं है| बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्न पूर्वक श्राद्ध   करना चाहिए |पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्य के लिए आयु ,पुत्र, यश, स्वर्ग ,कीर्ति, पुष्टि बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य  देते हैं| अगर हमारे मन में जीवित माता-पिता बुजुर्गों के प्रति श्रद्धा नहीं है तो उनके मरने के बाद उनका श्राद्ध मनाने का औचित्य क्या है| हम श्राद्ध इस डर से मनाते हैं की हमारे पितरों की आत्मा कहीं भटक रही होगी तो हमें कई नुकसान नहीं पहुंचाये|उनका अंतर्मन उन्हें धिक्कार ता है कि हमने अपने मृतक को जीते जी उन्हें बहुत ही तकलीफ पहुंचाई  हैं इसीलिए हम श्राद्ध    पक्ष मना कर अपने पितरों को खुश करने का प्रयास करते हैं जिस काग की साल भर पूछ नहीं होती उन्हें श्राद्ध  पक्ष में कागो  -वा कागो -वा  करके छत की मुंडेर पर बुलाया जाता है और पितरों के नाम से पकवान खिलाया जाते हैं, पानी पिलाया जाता है और खा लेने पर यह सोच कर संतुष्ट हो जाते हैं कि हमारे पितृ हमसे प्रसन्न है |

                         

आज की युवा- पीढ़ी  श्राद्ध  मनाने के प्रति श्रद्धा भाव खत्म हो गया है| समाज की नजर में प्रशंसा पाने  और दिखावे के लिए लंबे चौड़े भोज का आयोजन करती है| हमें हमारे बुजुर्गों को जीते जी प्यार सम्मान और श्रद्धा देनी होगी मुगल बादशाह शाहजहां ने भी अपने श्राद्ध परंपरा की सराहना की है जब उनके क्रूर पुत्र सम्राट औरंगज़ेब ने उन्हें जेल में बंद कर यातना दे रहा था और पानी के लिए तरसा रहता तब आकिल खा  के ग्रंथ  ''वाकेआतआलमगीरी   में  शाहजहाने ने अपने पुत्र के नाम पत्र में मर्मान्त वाक्य  लिखे थे'' हे पुत्र तू भी विचित्र मुसलमान है जो अपने जीवित पिता को जल के लिए तरसा रहा है शत-शत  प्रशंसनीय है वह हिंदू जो अपने  मृत पिता को भी जल देते हैं |

 श्राद्ध पक्ष हमें अपने पूर्वजों के प्रति अगाध  श्रद्धा  और स्मरण भाव के लिए प्रोत्साहित करता है |हमें इसे मानकर भावी पीढ़ी को भी इससे अनुसरण करने की प्रेरणा मिलेगी|

 भुवनेश्वरी मालोत

बांसवाडा(राज)

शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

दर्पण

                                                                 

एक धनी नौजवान अपने गुरू के पास यह पूछने के लिए गया कि उसे जीवन में क्या करना चाहिये । गुरू उसे खिडकी के पास ले गए और उससे पूछा ’तुम्हें काॅच के परे क्या दिख रहा है़?’सडक पर लोग आ-जा रहे है ओर बेचारा अॅधा व्यक्ति भीख माॅग रहा है।,इसके बाद गुरू ने उसे एक बडा दर्पण दिखाया और पूछा ‘‘अब दर्पण में देखकर बताओ कि क्या देखते हो?इसमें मैं खुद को देख रहा हंू।‘ठीक है! दर्पण में तुम दूसरों को नहीं देख सकते ।तुम जानते हो कि खिडकी में लगा काॅच और यह दर्पण एक ही मूल पदार्थ से बने हैं।‘
तुम स्ंवय की तुलना काॅच के इन दोनों रूपों से करके देखो।जब ये साधरण है तो तुम्हें सब दिखते है और उन्हें देखकर तुम्हारे भीतर करूणा जागती है और जब इस काॅच पर चाॅदी का लेप हो जाता है तो तुम केवल स्वयं को  देखने लगते हो।‘

                                                         

                                   तुम्हारा जीवन भी तभी महत्वपूर्ण बनेगा जब तुम अपने आखो पर लगी चाॅदी की परत को उतार दो ।ऐसा करने के बाद ही तुम अपने लोगो को देख पाओगे और उनसे प्रेम कर  सकोगे

Bhuneshwari Malot
Banswara, Rajasthan, India

रविवार, 30 अगस्त 2020

नकारात्मकता छोड़ें, सकारात्मकता जोड़ें

 

एक बार अंतरराष्ट्रीय केकड़ा सम्मेलन हुआ|  उसमें कई देशों के चुनिंदा केकड़े  सम्मिलित हुए। सभी देश अपने केकड़े को बास्केट में बंद करके लाएं ।इस सम्मेलन में हिंदुस्तान भी अपने खतरनाक  केकड़ा के साथ सम्मिलित हुआ ,लेकिन हिंदुस्तानी का बास्केट खुला था, जिसमें केकड़े चढ़कर बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे ।एक पड़ोसी देश के प्रतिनिधि ने कहा भाई साहब आप अपनी बास्केट बंद कर दे कहीं केकड़े निकलकर काटना लेगे ।हिंदुस्तानी प्रतिनिधि ने कहा भाई साहब यह हिंदुस्तान के केकड़े हैं। जैसे ही एक ऊपर चढ़ने का प्रयास करेगा तो  दूसरा उसकी टांग खींच कर नीचे गिरा देगा । आप निश्चिंत रहें ।

इससे यही शिक्षा मिलती है की समाज व जीवन में कोई व्यक्ति आगे बढ़ता है तो उसकी टांग खींच कर गिराने का प्रयास ना करें| आगे बढ़ने वालों को प्रोत्साहित ना कर सके तो कोई बात नहीं लेकिन उसे हतोत्साहित भी ना करें ।आम  जीवन मे अगर कोई व्यक्ति आगे बढ़ता है तो खुशी की जगह ईर्ष्या  होती है|आज भाई -भाई पड़ोसी -पड़ोसी मित्र -मित्र को आगे बढ़ते हुए नहीं देख सकता ,इसीलिए वह व्यक्ति उसकी आलोचना करता है उसके बारे में जुटी अफवाह फैलाता है इससे उसको आत्म संतुष्टि  जरूर होती है लेकिन इससे आगे बढ़ने वालों को कोई  फर्क नहीं पड़ता| आगे बढ़ने वाला अवश्य ही आगे बढ़ेगा।

 अतः में टांग खींचने की प्रवति का त्याग करना चाहिए ।टांग खींचने वाला हमेशा नीचे ही गिरता है |||नीचे ही जाता है ऊपर कभी नहीं उठ सकता और अलग गति को प्राप्त होता है।इसलिये हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़े 

                                                                                        भुवनेश्वरी मालोत

                                                                                        बाँसवाड़ा


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बुधवार, 26 अगस्त 2020

हमारे बुजुर्ग बोझ नहीं

अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्पति बुश की पत्नि बारबरा बुश ने कहा था कि ‘‘आपके जीवन के अंतिम वर्षो में किसी को इससे कोई मतलब नही है कि आपने कितनी नौकरियों में सफलता हासिल की,कितने काॅन्टृेक्ट पाए आदि।केवल एक ही बात की अहमियत होती है कि आपके आसपास आपके कितने परिजन हैं, वे आपके बारे में क्या सोचते है और आपको कितना प्यार करते''। अपने काम से काम रखे,बुढापे मे भी जीभ का स्वाद नही छुटता ,जल्दी बोलो जो भी बोलना है हमारे पास फालतु की बातों का वक्त नहीं है आदि जमले बुजुर्ग लोगोे को सुनने ही पडते है समय का चक्र निंरतर चलता रहेगा बचपन जवानी और बुढापा।बुढापे से हम सबको गुजरना यह हम क्यों भुल जाते|






मंगलवार, 25 अगस्त 2020

अन्न का सम्मान करे

                                                                                                                                      

               अकसर हमारे समाज में शादी हो या जन्म-दिन या अन्य कोई शुभ प्रंसग हो भोज का आयोजन किया जाता है, प्रायः देखने में आता है कि लोग खाते कम है, अन्न की बर्बादी ज्यादा करते हैे।आजकल कई तरह के व्यंजनो के स्टाॅल लगते है जिससे सब का मन ललचा उठता है,और सभी व्यंजनो का स्वाद लेने के चक्कर मे ढेर सारा भोजन प्लेट मेें ले लेते है और पेटभर जाने के कारण अनावश्यक रूप से लिया गया भोजन बच जाता है जिसे कूडे- दान में फेंक दिया जाता है या नाली में बहा दिया जाता है ,लेकिन हम चाहे तो अन्न की बर्बादी को काफी हद तक रोक सकते है,यदि इस भोजन का सद्उपयोग किया जाय तो न जाने कितने भूखे-गरीबोें का पेट भर सकता है। किसी संस्था की मदद से अनाथाश्रम या किसी बस्ती में पहुचाया जा सकता है या अप्रत्यक्ष रूप संे गौ-माता को इस भोजन में सम्मिलित कर अप्रत्यक्ष पुण्य का भागीदार आप बन सकते है गौ-शाला से सम्पर्क करके,फोन द्धारा सूचित करके या स्ंवय गायों तक भोजन पहुचाकर  पुण्य कमा सकते हैैै।    

              यदि व्यंजन पंसद न हो तो पहले से निकाल लेना चाहिये ,जूठा नहीं छोडना चाहिये। अन्न को देवता का दर्जा दिया गया है ,इसलिये अन्न को देवता का रूप समझकर ग्रहण करना चाहिये । मनुस्मृति में कहा गया है कि अन्न ब्रहृा है,रस विष्णु है और खाने वाला महेश्वर है। भोजन के समय प्रसन्नता पूर्वक भोजन की प्रशंसा करते हुये ,बिना झूठा छोडे हुये ग्रहण करना चाहिये । दूसरो के निवाले को हम नाली में बहा कर अन्न देवता का अपमान कर रहे है, जो रूचिकर लगे वही खाये ,पेट को कबाडखाना न बनाये । भोजन को समय पर ग्रहण करके भोजन का सम्मान करे ,मध्य रात्री को पशु भी नहीं खाता है । प्रत्येक स्टाॅल पर विरोधी स्वभाव के भोजन को स्वविवेक के अनुसार ग्रहण करना चाहिये ।।सब का स्वाद ले लू वाली प्रव्रृति का त्याग करे ।

           गाॅॅधी जी ने कहा है कि कम खाने -वाला ज्यादा जीता है,ज्यादा खाने वाला जल्दी मरता है।         


                                      श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत

रविवार, 23 अगस्त 2020

मन की शांति


मन की शांति 

आज मैं जीवन में जो पाना चाहती थी बैठे-बैठे उसकी लिस्ट बनाई इसमें अच्छा घर, स्वास्थ्य, सौंदर्य, समृद्धि, शक्ति, सुपथ, संबल, ऐश्वर्य, अच्छा पति, संस्कार वान बच्चे आदि कई चीजें थी। लेकिन फिर भी कही कुछ कमी रह गई हो ऐसा लगता।यह लिस्ट लेकर मैं अपने गुरु के पास गई मैंने पूछा क्या जीवन की सारी उपलब्धियां इस लिस्ट में है ।गुरु ने धीरे से मुस्कुरा  कहा बेटी वाकई अच्छी लिस्ट है लेकिन लिस्ट में एक चीज लिखना भूल गई हो जिसके  बिना बाकी सब चीजें व्यर्थ हो जाती है जिसका अनुभव उम्र के इस पड़ाव पर ही कर सकोगे। मैं  असमंजस्य में आ गई मैंने सोचा मैंने तो सारी चीजें जो एक नारी चाहती है लिस्ट में लिखिए तो फिर क्या छूट गया है गुरु ने लिस्ट को मुझ से लेकर सबसे अंत में 3 शब्द लिखें वह थे मन की शांति वास्तव में संसार की सभी चीजें इसके बिना व्यर्थ है ।जो अंतिम समय तक नहीं मिल पाती है।  

 

भुवनेश्वरी मालोत