सोमवार, 25 जून 2012

एक बच्चे की चाहत पारिवारिक रिष्ते को अंसतुलित करती है



आज हम सहेलिया का एक समारोह में मिलना हुआ मेरी एक सहेली को उदास देखकर मैने पूछा क्या हुआ रेखा तु इतनी परेषान क्यो है मेरी सहेली ने कहा क्या बताउ मेरा पोता 6 साल का हो गया है लेकिन मेरी बहु दूसरी संतान के लिए ना कहती है कहती आज के युग मे एक की देखभाल अच्छी तरह कर ले तो ही बहुत है।इसके जबाब से मेरे मन में कई तर्क-वितर्क पैदा कर दीये।



आधुनिक युग में भौतिकवादिता और पाष्चात्यति संस्कृति के प्रभाव के कारण अधिकांष माता-पिता एक ही बच्चे की प्राथमिकता देते है उनका कहना है कि इससे उनकी परवरिष अच्छी होगी।आज पहले की तरह हम दो हमारे दो की मानसिकता के बजाय हम दो हमारा एक की होती जा रही है।यह तर्क दिया जाता हैकि आजकल उच्चस्तरीय जीवन की चाहत में ज्यादा बच्चों की परवरिष कर पाना मुष्किल है। इससे पारिवारिक जिम्मेदारी का बोझ भी कम होजाता है ,बच्चे को सभी सुख सुविधा आराम से दी जासकती है ।आजकल नौकरी -पेषा माता-पिता को जीवन में व्यस्ता अधिक होने से वे दूसरे बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते है।आज की प्रमुख समस्या अनियत्रित जनसंख्या ,सीमित रोजगार के साधन और बढती हुई मंहगाई के जमाने में एक बच्चे का लालन-पालन ही ठीक ढग से किया जा सकता है।आजकल संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है जिसमें नौकरी -पेषा माता पिता एक से अधिक बच्चो की जिम्मेदारी उठाने में अपने को अक्षम पाते है।लेकिन एक बच्चे की अवधारणा से हमारे पारिवारिक सामाजिक ढाॅचे पर कई दुषपरिणाम नजर आने लगे है जिस पर हमें विचार करना होगा।


ऽ एक बच्चे की अवधारणा से हमारे कई महत्वपूर्ण पारिवारिक रिष्ते खत्म होते जा रहे है जैसे एक लडका है तो उसके बच्चो के ना बुआ होगी ना अंकल ,एक लडकी है उसके बच्चो के ना मामा होगा ना मौसी।ये रिष्ते बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।एक बच्चे की चाहत में कई रिष्तो से हमारी भावी पीढी अनभिज्ञ रहेगी।


ऽ बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए भाई-भाई,बहन-बहन,बहन-भाई अर्थात् दो बच्चो का होना जरूरी है।


ऽ एक बच्चा होने से समाज में स्त्री पुरूष का अनुपात गडबडा जायेगा क्योंकि एक अधिंकाष माता-पिता एक बच्चे के रूप में लडके को प्राथमिकता देते है। इससे लडकियोें की संख्या घटेगी और भविष्य में लडके के लिए लडकी मिलना कठिन होजाएगा।


ऽ इससे बच्चों में असुरक्षा की भावना बढेगी क्योंकि अकेला बच्चा अपने आप को असुरक्षित महसूस करता है।


ऽ इससे वंष आगे नहीं बढ पायेगा पारिवारिक और पारिवारिक संगठन घटता चला जायगा।


ऽ अकेला व्यक्ति अवसाद,डिप्रेषन तनाव का ज्यादा षिकार होता है।


ऽ जीवन के दुखद क्षणों में या मुसीबत के समय सहयोग,सहायता और सांत्वना देने वाला कोई नहीं मिलेगा।


ऽ अकेला बच्चा अंर्तमुखी स्वभाव का हो जायेगा और उसकी सोच का दायरा सीमित हो जायगा।


ऽ एक बच्चे का होना मतलब अन्य भाई बहन के साथ खिलौने पैसे या अन्य किसी वस्तु को साझेदारी नही होना है।इससे वह अपनी वस्तू को किसी के साथ जल्दी से साझा नहीं कर पायंेगा।


ऽ अत्यघिक ध्यान व देखभाल के कारण एक बच्चे का बर्ताव हानिकारक हो सकता है ,वह जीवन की वास्तविक समस्याओं का सामना करने और उसे सहन करने में सक्षम नही हो सकते है।


ऽ एक बच्चा बडा होने पर घर मे किसी हमउम्र भाई-बहन के न होने से और प्रत्येक पल माता-पिता की भागीदारी से उब जाता है।उसके जीवन में नीरसता आजाती है।


ऽ एक बच्चा होने से वह कई मानवीय गुणों से वंचित रहजायेगा।


श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत


महादेव काॅलोनी


बाॅसवाडा राज

शुक्रवार, 8 जून 2012

सकारात्मक विचारों की सृष्टि करे










चिलम का आकार लेेती हुई मिट्टी को मिटाकर जब कुम्हार ने नया आकार देना षुरू किया तो मिट्टी ने पूछा अब क्या करते हो, तब कुम्हार बोला मैं अब सुराही बना रहा हू तब मिट्टी बोली मेरे सृष्टा तुम्हारा तो विचार बदला है मेरा तो संसार ही बदल गया है ,चिलम का संसार है जलना और जलाना और सुराही का संसार है स्वंय षीतल रहना और दूसरो को भी षीतल करना ।वस्तुतः विचार के बदलने पर ही संसार बदलता है,एक सद्विचार का बीज जब अंकुरित होकर जीवन की धरती पर प्रकट होता हैतो चारांे ओर सुख-षांति के फूलों से मानव जीवन महक उठता है।इसलिए हमेषा सकारात्मक व सद्विचारों की सृष्टि करे ,क्योकिं इसका हमारे जीवन पर भी सकारात्मक प्रभाव पडता ।



श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत

बाॅसवाडा राज.



रविवार, 20 मई 2012

‘हा’ के साथ ‘ना’ कहना सीखिये

                                                                  


                                अकसर महिलाओं के जीवन में कई अवसर ऐसे आते है जिसमें वह इस कशकश में रहती है कि

‘हाॅं’ कहू या ‘ना’ जहाॅं ‘ना’ कहना चाहती है वहा भी हाॅं कर देती है।अकसर महिलाएॅं अपनी आदत के अनुसार पडौसी या रिश्तेदार या सहकर्मी हो किसी को भी किसी कार्य के लिए ‘ना’ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है। क्योंकि रिश्तों की गरिमा आडे आजाती है। महिला कितनी भी व्यस्त क्यों न हो या बच्चों की परीक्षा चल रही हो या पतिदेव के साथ कई जाने का कार्यक्रम हो लेकिन ‘ना’ नही कह सकती । मन मसोज कर उसे हां कहना पडता है। ऐसी स्थिति मे कई बार पतिदेव के गुस्से का शिकार होना पडता है या कई जरूरी कामो को उस समय टालना पडता है। इसे महिला के मन की दुर्बलता कह सकते है । महिला स्ंवय ‘ना’ नहीं कह पाती लेकिन अपने बच्चों को किसी अनुचित मागों को न मानकर ना करने की शिक्षा देती है। इसलिए हाॅं तो आप अकसर कहती है कभी-कभी ना कहना सीखिए। कुछ बातें अपनाकर मन को ना कहने के लिए तैयार करे।
ऽ आप किसी को किसी चीज या कार्य के लिए अपनी सुविधा को देखकर हां कहिए अन्यथा ना कह दे।
ऽ ‘ना’ कहने के लिए किसी बहाने की तलाश करने की जरूरत नहीं है सीधा ना कहिये।
ऽ हाॅं करने से कई बार आपको किसी परेशानी का सामना करना पड सकता है या पारिवारिक तनाव से गुजरना पड सकता है इसलिए ना कहना सीखिए।
ऽ कई बार चालक किस्म के लोग आपकी हाॅं कहने की कमजोरी का नाजायज फायदा उठाते है। इसलिए ना कहना सीखिए।
ऽ प्रश्ंासा पाने या अच्छा कहलाने के चक्कर में हाॅं मत करिए।
ऽ ‘हाॅं’ कहने की आदत के कारण कई बार अपनी प्रिय वस्तु जैसे पुस्तक आदि से हाथ धोना पडता है इसलिए उचित समझे वहाॅं ना कहिय।
ऽ सामने वाले की आदत जैसे समय पर वस्तु न लौटाना या खराब करके लौटाना आदि को जानकर हाॅं या ना में से एक को चुनिए ।
ऽ सामने वाला चालाकी से दबाबपूर्ण तरिके से सहायता की मांग करता है और आप ना कहने का कोई बहाना नहीं बना पाती है ऐसी परिस्थिति में हिम्मत करके ना कह दीजिए और उस पर डटी रहे ।
एक बार ना कहने की हिम्मत जुटा लेगी तो ना कहने में संकोच नही होगा।
लेकिन मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समय पडने पर दूसरो के दुख-दर्द में काम आना चाहिय।
सामने वाले की परेशानी की वास्तविकता को जानकर किसी की सहायता के लिए हाॅं कहना बुरा नहीं है।


  प्रेषकः-
 श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
 अस्पताल चैराहा
महादेव कॅंालोनी
  बाॅंसवाडा राज

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

जल नेति- नाक की एलर्जी का प्राकृतिक उपाय



ऐलर्जी का अर्थ बाहरी वायुमण्डलिय पदार्थो के विरूद्ध हमारे ष्षरीर की असहनषीलता और अति संवेदनषीलता है,बढते प्रदुषण और बाहरी ऐलर्जन कारको से हमारे ष्षरीर में ऐलर्जी के लक्षण पैदा हो जाते है।जिससे वायुमण्डल मे व्याप्त धूल मिट्टी जानवरों के बाल पेड-पौधे और घास के परागकण हानीकारक गैस ,धुअॅा नाक में जाकर एलर्जी के लक्षण पैदा करते है जिससे ंबार- बार छिके आना, नाक से पानी बहना, नाक मे खुजली और कई बार नाक भी बंद हो जाती है,ऐसे में कई बार मुॅह से साॅस लेना होता है,ऐसी स्थिति में रोगी का हाल बेहाल हो जाता हैं।
कई एन्टीऐलर्जीक गोलिया एवमं  नाक में डालने वाली स्प्रे बाजार मे उपलब्ध है लेकिन इसका तत्कालिक लाभ ही है,बार बार छिको से व अन्य लक्षणो से  बचने के लिए हमारी पुरातन चिकित्सा पद्धति जलनेति बहुत ही प्रभावी है।
नेति का अर्थ है नासिका द्धारा भिन्न-भिन्न द्रव्यों को ग्रहण करना नेति कहलाता है।नेति के कई प्रकार है जल नेति,सूत्र नेति,घृत नेति,तेल नेति और दुग्ध नेति।
जलनैती की अवधारणा हाथी द्धारा अपनी नाक रूपी सूॅड मे पानी खिचनेें और फिर उसे छोडने पर आधारित है ।

 प्रातः काल का समय जल नेति  के लिए उपयुक्त है।इस हेतु टोटीदार लोटे में थोडा गुनगुना पानी भरकर उसमे थोडा सा नमक मिलाकर लोटे की नली को दाई नासिका ंमें लगाकर बाई ंऔर की नासिका को थोडा एक ओर झुकाकर रखे मुख को थोडा खोलकर श्रवास प्रष्वास की प्रकिया मुख से ही करे बायी नासिका से जल प्रवाहित होकर  बाहर निकलता है यही प्रकिया दूसरी नाक से भी करनी चाहिये इस प्रकार पानी के साथ नाक में चिपके ऐलर्जन बहकर बाहर आजाते है।कफरोग न हो तो धीरे-धीरे नमक रहित ठंडे जल से नेति क्रिया करनी चाहिये ।जिनको नजला जुकाम हो उनको नमकयुक्त गर्म जल से यह क्रिया करनी चाहिये नेति क्रिया करने से सर्दी जुकाम ठीक हो जाता है पर कुछ लोगो को नेति करने से सर्दी जुकाम हो जाता है इसके बाद नाक में बचे हुए पानी को कपाल भांति या जोरजोर से छीककर बाहर निकाल लेना चाहिए ताकि अन्दर कोटरो में रूका और भर जाने वाला पानी निकल सके ओर सर्दी जुकाम न हो। नेति क्रिया करने से माइग्रेन व सरदर्द से भी राहत मिलती है।  
                                                  श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत
                                                     जिला संयोजिका
                                                     महिला पंतजलि योग समिति
                                                      बाॅसवाडा राज

शनिवार, 24 मार्च 2012

नीम रस पीयेः निरोगी जीवन जीये

धर्म और स्वास्थ्य सिक्के के दो पहलू है,धर्म मानव का सच्चा मार्गदर्षक है,नववर्ष का आरभ चैत्र नवरात्री से होता है तब हम सब स्वास्थ्य रहे और बीमार न हो तथा तंदुरस्त बने रहे,यह हमारे लिऐ गर्व की बात है कि नीम के अनगिनत गुणों की वजह से अमेरिका ने हमारे नीम को अपने लिए पेटेन्ट करा दिया,निःसन्देह यह भारतीय जीवन षैली और आयुर्वेद की विजय है,नीम हमारे लिए अति पूॅजनीय वृक्ष है।

नीम को संस्कृत में निम्ब,वनस्पति ष्षब्दावली में आजाडिरिक्ता-इण्डिका कहते है।नीम के बारे में हमारे ग्रन्थों में कहा गया है।


 

निम्ब षीतों लघुग्राही कटुकोडग्रि वातनुत।

अध्यःश्रमतुट्कास ज्वरारूचिकृमि प्रणतु।।

नीम ष्षीतल,हल्का,ग्राही पाक मे चरपरा,हृदय को प्रिय,अग्नि,वात ,परिश्रम,तृ्रेषा ,ज्वरअरूचि कृमि,व्रण,कफ,वमन कोढ और विभिन्न प्रमेह को न्रेषट करता है।


नीम में कई तरह लाभदायी पदार्थ होते है।रासायनिक तौर पर मार्गोसिन निम्बडीन एवम निम्बेटेरोल प्रमुख है।नीम के सर्वरोगहारी गुणों से यह हर्बल आर्गेनिक पेस्टीसाइड,साबुन,ऐन्टीसेप्टिक क्रीम,दातुन मधुमेह नाषक चूर्ण,ऐन्टीऐलर्जीक,कोस्मेटिक आदि के रूप में प्रयोग होता है।

नीम कडवा है लेकिन इसके गुण मीठे है,तभी तो नीम के बारे मे कहा जाता हैकि सौ हकीम और एक नीम बराबर है।

चैत्र नवरात्री पर नीम के कोमल पतो को पानी में घोलकर सील बट्टों या मिक्सी में पीसकर इसकी लुगदी तैयार की जाती है,इसमें थोडा नमक और कुछ काली मिर्च डालकर उसे ग्राहय बनाया जाता है।इस लुगदी को कपडे में रखकर पानी मे छाना जाता है,छाना हुआ पानी गाढा या पतला कर प्रातः खाली पेट एक कप से एक गिलास तक सेवन करना चाहिये पूरे नौ दिन इस तरह अनुपात मे लेने से वर्ष भर की स्वास्थ्य गारंटी हो जाती है,सही मायने में चैत्र नवरात्री स्वास्थ्य नवरात्री है,यह रस ऐन्टीसेप्टिक ऐन्टीबेक्टेरियल ऐन्टीवायरल ऐन्टीवर्म ऐन्टीऐलर्जीक ऐन्टीट्यमर आदि गुणो का खजाना है।ऐसे प्राकृतिक सर्वगुण सम्पन्न अनमोल नीम रूपी स्वास्थ्य रस का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिये।यह इन दिनो बच्चों को चेचक से बचायेगा,जीन लोगो को बार बार बुूखार और मलेरिया का संक्रमण होता है,उनके लिए यह रामबाण औषधि है।वैसे तो आप प्रतिदिन पाॅच ताजा नीम की पतियाॅ चबा ले तो अच्छा है,मधुमेह रोगीयो में प्रतिदिन सेवन करने पर रक्त ष्षकर्रा का स्तर कम हो जाता है।

नीम की महता पर एक किवंदती प्रसिद्ध है कि आयुर्वेदाचार्य धन्वतरि एवमृ युनानी हकीम लुकमान समकालिन थे,भारतीय वैघराज की ख्याति उस समय विष्व प्रसिद्ध थी लुकमान हकीम ने उनकी परीक्ष लेने एक व्यक्ति को यह कहकर भेजा कि इमली के पेड के नीचे सोते जाना ,भारत आते आते वह व्यक्ति बीमार पड गया,महर्षि धन्वतरि ने उसे वापस यह कहकर भेज दिया कि रात्री विश्राम नीम के पेड के नीचे करके लौट जाना,वह व्यक्ति पुनः स्वस्थ्य हो गया।

नीम रस कडवा है,लेकिन प्राक्रृतिक पेय है,इस निःषुल्क रस का व्यापक उपयोग जन-साधरण में हो इस हेतु हमें इसकी उपादेयता के बारे में जन मानस को समझाना हेागा नीम जैसे सर्वसुलभ वृक्ष की पतियों के रस के स्टाॅल हमें गली मोहल्लो और काॅलोनियों में लगाने चाहिये ।स्वास्थ्य जागरण में नीम रस जीवनरस बने यही मानवता पर उपकार होगा,आयुर्वेद,धर्म और मानवता की जय होगी तथा रोगों की पराजय होगी तथा पर्यावरण का सही दोहन और संवरण होगा।


 

प्रे्षकः-भुवनेष्वरी मालोत

अध्यक्ष

वीरा-विंग

महावीर इंटरनेषनल

महादेव काॅलोनी

बाॅसवाडा


 

बुधवार, 21 मार्च 2012

‘सिंहासन से चेहरा निखारे’

  
                                                        
                                                   
                               योग जीवन जीने की कला है।योग च्रित की वृतियों का निरोध है।योगासन के द्धारा भी स्त्री सुलभ चेहरे के सौदर्य को बरकरार रखा जा सकता है।सुन्दर व्यक्तित्व के लिए सुन्दर चेहरा महत्वपूर्ण मानदंड है।चेहरा मन का दर्पण होता है चेहरे के हाव भाव से ही व्यक्ति की मानसिक स्थिति का पता चल जाता हैे।आमधारणा है कि सुन्दर चेहरा पैदा नहीं होता है बल्कि बनाया जाता है। हमारे चेहरे पर 72 माॅसपेषिया होती है।चेहरे की पेषिया बहुत जटिल होती है और बहुत ही भिन्न -भिन्न दिषाओं की जाती है।चेहरे को निखारने के लिए रोज चेहरे की कसरत जरूरी है।



ष्योगासन मे ंिसंहासन भी एक ऐसा आसान है जिससे चेहरे की सुन्दरता में चार चाॅद लगाये जा सकते है। इसमें संभव हो तो सूर्याभिमुख करके व्रजासन में बैठकर,दोनो पैरो के घुटने बीच थोडा फासला रखकर दांेनो हाथो के पंजो को पीछे की ओर कर के हाथों को सीधा रखे व एक साथ साॅस भरकर ,जीभ को अधिक से अधिक बाहर की ओर निकालते हूए भूमध्य मेें देखते हुएष्ष्वास को बाहर निकालते हुए जोर से सिंह की तरह गर्जना करनी है ऐसा करते समय कमर सीधी हो ।यह क्रिया तीन बार दोहराये ,ऐसा करने के बाद गले की दोनों हाथों से मालिष करे और लार को अन्दर निगल ले। इससे गले की खराष की समस्या से भी निजात पा सकते है।


इस आसन से चेहरे की माॅसपेषिया सक्रिय हो जाती है।इस आसन से चेहरे व सिर के भाग की माॅसपेषिया का रक्त संचार बढता हैैे।उदर भाग की माॅसपेषिया का अधिक प्रयोग होने से फेफडो और गले के भाग का अधिक व्यायाम होता है।चेहरे पर चमक आती है व झुरियो से भी बचाव हो सकता है इससे तनाव दूर होता है चेहरा प्रफुल्लित लगने लगता है।साथ ही इस आसन से टाॅसिल,थायरायड,अस्पष्ट उच्चारण कान के रोग,साथ ही जो बच्चे तुतलाकर बोलते है,उनके लिए भी महत्वपूर्ण है।


महषि पंतजलि ‘नियमित रूप से योगासन कर अप्सराए और गंधर्व कन्याए अपना त्रिभुवन मोहक रूप यौवन बनाये रखती है।’ इसमें सिंहासन का भी प्रमुख स्थान है।क्योंकि स्त्री के लिए सिंहासन एक वरदान है इसको नियमित रूप से करने से चेहरे पर अर्पूव सौंदर्य लाया जा सकता है।

                                                                                                      श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत


                                                                                                           जिला संयोजिका

                                                                                                           पंतजलि महिला योग समिति


                                                                                                            बाॅसवाडा राज0





शुक्रवार, 16 मार्च 2012

ऐलोवेरा स्वास्थ्य व सौदर्य का रक्षक है


aloe vera
                                                                    




          घी के समान तापच्छिल पीत मज्जा होने से इसे घृत कुमारी अथवा घीकुंआर कहा जाता है।एलोवेरा भारत में ग्वारपाटा या धृतकुमारी हरी सब्जी के नाम से जाना जाने वाला काॅटेदार पतियों वाला पौधा,जिसमें कई रोगों के निवारण के गुण कूट-कूट कर भरे हुए है।आयुर्वेद में इसे महाराजा और संजीवनी की संज्ञा दी गयी है।इसमें 18 धातु,15 एमीनो एसीड और 12 विटामिन होते है।यह खून की कमी को दूर करता है,षरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है,इसे त्वचा पर भी लगाना भी लाभदायक है ।इसे 3से4 चम्मच रस सुबह खाली पेट लेने से दिनभर षरीर में ष्षक्ति व चुस्ती-स्फूति बनी रहती है साथ ही यह जोडो की सूजन में व माॅस पेषियों को सक्रिय बनाये रखने के लिए सहायक है।

 जलने पर,अंग के कही से कटने पर,अदरूनी चोटो पर इसे लगाने से घाव जल्दी भर जाता है क्योंकि इसमें एंटी बैक्टेरिया और एंटी फॅगल के गुण होते है।मधुमेह आदि के इलाज में भी इसकी उपयोगिता साबित हो चुकी है क्योंकि एलोवेरा रक्त मे ष्षर्करा की मात्रा को भी नियत्रिंत करता है।बवासीर ,,गर्भाषय के रोग, पेट की खराबी,जोडो का दर्द, त्वचा का रूखापन,मुहाॅसे,धूप से झूलसी त्वचा,झुरियों चेहरे के दाग धब्बों,आॅखों के नीचे के काले घेरो, फटी एडियो के लिए लाभप्रद है। इसका गुदा या जैल बालों की जडो में लगाने से बाल काले घने लंबे एंव मजबूत होगेे।एलोवेरा के कण-कण मे सुंदर एंव स्वस्थ्य होने के राज छुपे है।इसे कम से कम जगह मे छोटे-छोटे गमलों में आसानी से उगाया जा सकता है।



स्वास्थ्य का महत्व हमें उसी समय ज्ञात होता है जब हम बीमार होते है इसलिए क्यों न हम एलोवेरा को दैनिक जीवन का अंग बना ले। यह संपूर्ण ष्षरीर का काया कल्प करता है बस जरूरत है सभी को अपनी रोजमर्रा की व्यस्तम् जिंदगी से थोडा सा समय अपने लिए चुराकर इसे अपनाने की।
 प्रेषकः-


भुवनेष्वरी मालोत


जिला संयोजिका


महिला पंतजलि योग समिति


बाॅसवाडा राज