मंगलवार, 22 सितंबर 2020

कुसंस्कारो का प्रभाव

                                                                                                                                             

                                    एक फोटोग्राफर के मन में विचार आया कि अपने स्टूडियो मे ंएक सुन्दर व सुसंस्कृत बालक का फोटो लगाये। इसके लिए जगह-जगह घूमने के बाद उसको एक गांव में दस वर्षीय बालक सर्वाधिक सुन्दर लगा।उसने उसके माता -पिता की अनुमति से उसका फाटो लिया और  स्टूडियो में लगा दिया ।20 साल बाद उसके मन मे सबसे कुरूप व्यक्ति का फोटो भी स्टूडियो में लगाने का विचार आया।

          इसके लिये जेलों में जाकर अपराधियो से मिला जो लम्बा कारावास भुगत रहे थे । वहा उसे ऐसा  व्यक्ति मिला जिसके चारो और मक्खिया भिनभिना रही थी और शरीर से बदबू आ रही थी,दिखने में अत्यतं बुढा व कुरूप लग रहा था।उसने सोचा इससे ज्यादा कुरूप व्यक्ति और कोई नही हो सकता ।वह फोटो लेने लगा तो,वह व्यक्ति रो पडा।रोने का कारण पूछा तो वह बोला जब मैं दस वर्ष का बालक था,तब भी एक फोटोग्राफर  ने फोटो लिया था क्योंकि मेैं उस समय उसको सबसे सून्दर व सुसंस्कृत लगा था।किन्तु बाद में  कुसंस्कारों व कुसंगति के प्रभाव से गलत रास्ता पगड लिया और मेरे में कई दुर्गण आगये।जिससे झगडा,चोरी आदि करने लगा और समाज मे भी घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा और इसी कारणआज मेैं यहां इस स्थिति मे पहुच गया हु।यह मेरे कुसंगति व कुसंस्कारो का ही परिणाम है। फोटोग्राफर बिना फोटो लिये ही वापस चला गया।

         इससे पता चलता है कि वातावरण व संगति से व्यक्ति के संस्कार प्रभावित हुए बिना नहीे रह सकते।सुसंस्कारित बालक ही बडा होकर सफल होता है।पारिवारिक जीवन मे स्नेहपूर्ण वातावरण वनाता है,राष्ट् के विकास मे सहायक होता है अतः बच्चोे को सुसंस्काति करने का प्रयत्न करना चाहिये ।




                                           श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत

बुधवार, 16 सितंबर 2020

ताली बजाना -एक योग क्रिया है


ताली बजाईये और रोगो को दूर भगाईये ।यह एक पुरानी कहावत है। आज हम भौतिक सुख सुविधाओ के जाल मे ंइस तरह से फॅसे हुए हैकि हमारा शरीर अनेक प्रकार के रोगो से ग्रस्त होेता जा रहा है।यह सोचने वाली बात हैकि हम सही अंर्थो में स्वस्थ क्यों नहीं रह पा रहे है।क्या हमने शारीरिक श्रम त्याग दिया है?क्या इसके लिए हमारा आहार जिम्मेदार है?काफी हद तक इसके लिए कई कारक जिम्मेदार है जिसमे मुख्य है-अधिक आराम,श्रम का अभाव,बिना विचारे अधिक मात्रा मे अखाद्य पदार्थो का सेवन आदि।

हम ताली बजाकर भी स्वस्थ रह सकते है।प्राचीन काल मे मंदिरो में आरती व संत्सग में सामूहिक ताली बजाया  करते थे।यह शरीर को स्वस्थ रखने का उत्कृषट साधन है।

ताली बजाने से एक अच्छा व्यायाम हो जाता है इससे हमारे शरीर की निष्षक्रियता  समाप्त होकर क्रियाशीलता की वृद्धि होती है।रक्त संचार की रूकावट  दूर होने से हृदय रोग की संभावना कम रहती है।फेफडों की बीमारी दूर होती हैं

शरीर मे चुस्ती फुर्ती तथा ताजगी आ जाती है।इससे हमारे शरीर की रोग -प्रतिरोधक क्षमता बहुत बढ जाती है,इससे हमारे हाथों के सभी एक्यूप्रेशर पाॅइट पर अच्छा दबाब पडता है।शरीर  निरोग होने लगता है।

जाने माने स्वास्थ्य चिंतक सम्मानिय अरूण ऋषि के अनुसार 100 ताली बजाइये और स्वस्थ रहिये  की अलख पूरे भारत में जगाये हुए है।उनको साधुवाद।

    आइये ताली बजाइये और निरोग रहिये।

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

निःस्वार्थ हो भलाई

                               याकूब फ्लेमिंग नाम का एक किसान स्कॉटलैंड में अपने खेत में काम कर रहा था कि अचानक उसने सहायता के लिए पुकारती एक आवाज सुनी। उसने पास जाकर देखा तो एक छोटा बच्चा कीचड़ में गहरे फंसा हुआ है किसान ने बड़ी मेहनत करके उसे निकाला और फिर अपने काम में जुड़ गया। दूसरे दिन एक अमीर आदमी उसकी झोपड़ी में आया और बोला तुमने मेरे बेटे की जान बचाई है मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूं। किसान ने इनाम लेने से इंकार कर दिया और कहा यह तो मेरा कर्तव्य है तब उस अमीर व्यक्ति ने किसान के पास खड़े उसके फटे हाल बच्चे को देखा और कहा इसकी शिक्षा की जिम्मेदारी मैं उठाता हूं तुम उसे मुझे सौप दो।

         कई वर्षों बाद वही बालक पेनिसिलिन का अविष्कारक और प्रसिद्ध वैज्ञानिक एलेग्जेंडर फ्लेमिंग बना। कुछ समय बाद उस अमीर आदमी का बेटा निमोनिया का  शिकार हो गया इसकी जान उसी पेनिसिलिन की वजह से बची। उस आदमी का नाम था लॉर्ड रेन्डोल्फ  और उसके बेटे का नाम विंस्टन   चर्चिल था।

 यह  सही बात है कि जैसा तुम देते हो वैसा ही तुम्हें वापस मिलता है। थोड़ा वक्त जरूर लगता है पर प्रकृति अपने पास कुछ भी नहीं रखती वह आपको कभी खाली हाथ नहीं रहने देगी आपकी अच्छाई वापस लौटकर आपके पास जरूर आएगी ।

आइए हम भी अपने लिए ना सिर्फ दुआ करें बल्कि इसे अपने जीवन का आदर्श बना ले की नेकी किसी फल के लिए नहीं बल्कि आंतरिक खुशी के लिए करेंगे ।

 भुवनेश्वरी मालोत

बांसवाडा


सोमवार, 7 सितंबर 2020

पहले श्रद्धा दे ,फिर श्राद्ध करें



 हमारी संस्कृति कई रीति-रिवाजों और परंपराओं का समन्वय लिए हुए हैं| हिंदुओं में  श्राद्ध  प्रथा  प्राचीन है जो आज भी अति शुभ मानी जाती है हमारे धर्म शास्त्रों में मृत आत्माओं को उचित गति मिले इसके लिए मरणोत्तर पिंड दान और श्राद्ध तर्पण  व्यवस्था की गई है |श्राद्ध    का अर्थ है श्रद्धा पूर्ण व्यवहार तथा तर्पण का अर्थ है पितरों को तृप्त करने की प्रक्रिया है आश्विन मास में श्राद्ध   पक्ष में पितरों का तर्पण किया जाता है और पितरों की मृत्यु के नियत दिन यथाशक्ति ब्रह्म भोज और दान किया जाता है |शास्त्रों में व  गरुण पुराण में कहा गया है कि संसार में                     श्राद्ध   से बढ़कर और कल्याणप्रद  मार्ग नहीं है| बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्न पूर्वक श्राद्ध   करना चाहिए |पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्य के लिए आयु ,पुत्र, यश, स्वर्ग ,कीर्ति, पुष्टि बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य  देते हैं| अगर हमारे मन में जीवित माता-पिता बुजुर्गों के प्रति श्रद्धा नहीं है तो उनके मरने के बाद उनका श्राद्ध मनाने का औचित्य क्या है| हम श्राद्ध इस डर से मनाते हैं की हमारे पितरों की आत्मा कहीं भटक रही होगी तो हमें कई नुकसान नहीं पहुंचाये|उनका अंतर्मन उन्हें धिक्कार ता है कि हमने अपने मृतक को जीते जी उन्हें बहुत ही तकलीफ पहुंचाई  हैं इसीलिए हम श्राद्ध    पक्ष मना कर अपने पितरों को खुश करने का प्रयास करते हैं जिस काग की साल भर पूछ नहीं होती उन्हें श्राद्ध  पक्ष में कागो  -वा कागो -वा  करके छत की मुंडेर पर बुलाया जाता है और पितरों के नाम से पकवान खिलाया जाते हैं, पानी पिलाया जाता है और खा लेने पर यह सोच कर संतुष्ट हो जाते हैं कि हमारे पितृ हमसे प्रसन्न है |

                         

आज की युवा- पीढ़ी  श्राद्ध  मनाने के प्रति श्रद्धा भाव खत्म हो गया है| समाज की नजर में प्रशंसा पाने  और दिखावे के लिए लंबे चौड़े भोज का आयोजन करती है| हमें हमारे बुजुर्गों को जीते जी प्यार सम्मान और श्रद्धा देनी होगी मुगल बादशाह शाहजहां ने भी अपने श्राद्ध परंपरा की सराहना की है जब उनके क्रूर पुत्र सम्राट औरंगज़ेब ने उन्हें जेल में बंद कर यातना दे रहा था और पानी के लिए तरसा रहता तब आकिल खा  के ग्रंथ  ''वाकेआतआलमगीरी   में  शाहजहाने ने अपने पुत्र के नाम पत्र में मर्मान्त वाक्य  लिखे थे'' हे पुत्र तू भी विचित्र मुसलमान है जो अपने जीवित पिता को जल के लिए तरसा रहा है शत-शत  प्रशंसनीय है वह हिंदू जो अपने  मृत पिता को भी जल देते हैं |

 श्राद्ध पक्ष हमें अपने पूर्वजों के प्रति अगाध  श्रद्धा  और स्मरण भाव के लिए प्रोत्साहित करता है |हमें इसे मानकर भावी पीढ़ी को भी इससे अनुसरण करने की प्रेरणा मिलेगी|

 भुवनेश्वरी मालोत

बांसवाडा(राज)

शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

दर्पण

                                                                 

एक धनी नौजवान अपने गुरू के पास यह पूछने के लिए गया कि उसे जीवन में क्या करना चाहिये । गुरू उसे खिडकी के पास ले गए और उससे पूछा ’तुम्हें काॅच के परे क्या दिख रहा है़?’सडक पर लोग आ-जा रहे है ओर बेचारा अॅधा व्यक्ति भीख माॅग रहा है।,इसके बाद गुरू ने उसे एक बडा दर्पण दिखाया और पूछा ‘‘अब दर्पण में देखकर बताओ कि क्या देखते हो?इसमें मैं खुद को देख रहा हंू।‘ठीक है! दर्पण में तुम दूसरों को नहीं देख सकते ।तुम जानते हो कि खिडकी में लगा काॅच और यह दर्पण एक ही मूल पदार्थ से बने हैं।‘
तुम स्ंवय की तुलना काॅच के इन दोनों रूपों से करके देखो।जब ये साधरण है तो तुम्हें सब दिखते है और उन्हें देखकर तुम्हारे भीतर करूणा जागती है और जब इस काॅच पर चाॅदी का लेप हो जाता है तो तुम केवल स्वयं को  देखने लगते हो।‘

                                                         

                                   तुम्हारा जीवन भी तभी महत्वपूर्ण बनेगा जब तुम अपने आखो पर लगी चाॅदी की परत को उतार दो ।ऐसा करने के बाद ही तुम अपने लोगो को देख पाओगे और उनसे प्रेम कर  सकोगे

Bhuneshwari Malot
Banswara, Rajasthan, India