एक फोटोग्राफर के मन में विचार आया कि अपने स्टूडियो मे ंएक सुन्दर व सुसंस्कृत बालक का फोटो लगाये। इसके लिए जगह-जगह घूमने के बाद उसको एक गांव में दस वर्षीय बालक सर्वाधिक सुन्दर लगा।उसने उसके माता -पिता की अनुमति से उसका फाटो लिया और स्टूडियो में लगा दिया ।20 साल बाद उसके मन मे सबसे कुरूप व्यक्ति का फोटो भी स्टूडियो में लगाने का विचार आया।
इसके लिये जेलों में जाकर अपराधियो से मिला जो लम्बा कारावास भुगत रहे थे । वहा उसे ऐसा व्यक्ति मिला जिसके चारो और मक्खिया भिनभिना रही थी और शरीर से बदबू आ रही थी,दिखने में अत्यतं बुढा व कुरूप लग रहा था।उसने सोचा इससे ज्यादा कुरूप व्यक्ति और कोई नही हो सकता ।वह फोटो लेने लगा तो,वह व्यक्ति रो पडा।रोने का कारण पूछा तो वह बोला जब मैं दस वर्ष का बालक था,तब भी एक फोटोग्राफर ने फोटो लिया था क्योंकि मेैं उस समय उसको सबसे सून्दर व सुसंस्कृत लगा था।किन्तु बाद में कुसंस्कारों व कुसंगति के प्रभाव से गलत रास्ता पगड लिया और मेरे में कई दुर्गण आगये।जिससे झगडा,चोरी आदि करने लगा और समाज मे भी घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा और इसी कारणआज मेैं यहां इस स्थिति मे पहुच गया हु।यह मेरे कुसंगति व कुसंस्कारो का ही परिणाम है। फोटोग्राफर बिना फोटो लिये ही वापस चला गया।
इससे पता चलता है कि वातावरण व संगति से व्यक्ति के संस्कार प्रभावित हुए बिना नहीे रह सकते।सुसंस्कारित बालक ही बडा होकर सफल होता है।पारिवारिक जीवन मे स्नेहपूर्ण वातावरण वनाता है,राष्ट् के विकास मे सहायक होता है अतः बच्चोे को सुसंस्काति करने का प्रयत्न करना चाहिये ।
श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
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