रविवार, 21 अगस्त 2011

आधुनिक और पुरातन में समन्वय - नारी कैसे करे


                                                                

        
भारतीय संस्कृति की सर्वोपरि विषेषता समन्वय रखना है। भारतीय नारी संस्कृति के इसी गुण को अपना कर आधुनिक व पुरातन संस्कृति के बीच समन्वय बीठा सकती है। समन्वय आधुनिक व पुरातन संस्कृति के बीच आवश्यक है, संस्कृति चेतन है, जड़ नही। भारतीय संस्कृति में नारी को दुर्गा, लक्ष्मी व सरस्वती के रूप में दर्शाया गया है। गणेश जी के लिए कहा जाता है कि वे सरस्वती के लिपिक रहे है। इसी से यह प्रदशित होता है कि नारी का प्रभाव किसी भी प्रकार से पुरूष से कम नहीं है।



                    सदियों से नारी के कार्य क्षेत्र को परिवार तक सीमित रखकर उसे परिवार की इच्छाओं व आंकाक्षाओं के लिए हर पल त्याग की उम्मीद की जाती है। घर की धूरी मानी जाने वाली नारी को हर क्षेत्र में अपने आप को आधुनिक कहलाने के लिए भी तैयार रहना पड़ता है।  आधुनिक शिक्षा ने नारी को महत्वकांक्षी बना दिया है। प्रतिर्स्पद्वा की दौड़ में वह अपने परिवार व बच्चों को भूल कर पुरूषों से आगे निकल जाना चाहती है, लेकिन अपनी संस्कृति को कायम रखने की उम्मीद नारी से ही की जाती है। आज की नारी कुछ बातों को ध्यान में रखकर दोनों में सांमजस्य स्थापित कर सकती है।



 सर्वप्रथम नारी को शिक्षित हो कर आत्म निर्भर होना होगा। महात्मा गांधी का कथन है कि ‘‘एक शिक्षित नारी सारे परिवार को षिक्षित कर सकती है’’। इसी लिए षिक्षित नारी ही आधुनिकता व अपनी संस्कृति में सांमजस्य अच्छी तरह बनाए रख सकती है।



 नारी का सर्वश्रेष्ठ रूप माता का है। वह बालक की गुरू, मित्र, सहयोगी बन कर उसमें अच्छे संस्कारों को पल्लवित कर सकती है। आधुनिकता की अन्धी दौड हमे किस ओर ले जायेगी, किस सीमा तक इसकी अच्छाइयों को अपनाना है, यह माता ही बता सकती है। हमारी संस्कृति के आर्दषों को बालक के अधखिले मन पर अंकुरित कर सकती है। अधिकांष महापुरूष अपनी माता द्वारा षिक्षित और प्रेरित हो कर ही महापुरूष बने है।


ऽ आधुनिक नारी को आज हर क्षेत्र में पुरूष के साथ कदम से कदम मिला कर चलने को  तैयार रहना है। ऐसी स्थिति में अन्धप्रतिर्स्पद्वा का त्याग कर के परिवार के प्रति अपने  कर्तव्य को प्राथमिकता दें।


ऽ अतिव्यस्त जीवन व टी वी संस्कृति से आपसी रिष्तों में दूरिया पैदा कर दी है। नारी अपने  विवेक से कई रीति-रिवाजों को अपना कर विभिन्न रिष्तों में सांमजस्य पैदा कर सकती है।

ऽ आज की नारी को कुरीतियों और अन्धविष्वासों को त्यागकर के व अपने आप को समाज के खौखले आर्दषों से मुक्त कर के समाज में अपना स्थान बनाना होगा ताकि उस पर आधुनिक सुसंस्कृत नारी का लेबल लग सकें।




ऽ आधुनिक नारी मिनी-स्कर्ट व जीन्स पहन कर क्लब, किटी पार्टीयों में जाकर अपने आपको आधुनिकता के भ्रम जाल में फंसा रही है। वह यह भुल रही है कि यह उसे अपनी संस्कृति से  दूर कर पतन की ओर ले जा रहा है। भड़कीली वेषभूषा पर व्यय करना उचित नहीं है। नारी हमारी संस्कृति के अनुरूप पोषाक पहनकर व मर्यादा में रह कर समन्वय रख सकती  है।


ऽ मिथ्या प्रदर्षन की भावना, फैषन की सनक, झूठी षान व अनावष्यक तृष्णा में नारी उलझी हुई है। नारी को आध्ुानिकता की इस मृग तष्णा के जाल से बाहर निकलकर हमारी संस्कृति के आर्दषों को अपनाना होगा।

ऽ टेलीविजन संस्कृति जो परिवार में आवष्यकता से अधिक पनप रही है, इसका प्रयोग सीमित करना होगा।





ऽ  आज की नारी को परिवार में आधुनिकता के साथ आध्यात्मिक व नैतिकता का वातावरण पैदा करना होगा क्योंकि आध्यात्मिक, नैतिक षिक्षा व संस्कार की जननी नारी है।

ऽ आज के युग में नारी को जो समानता का अधिकार दिया है उसको कायम रखना है। संयुक्त परिवार की रक्षा नारी कर सकती है। नारी को अपनी षक्ति को प्रयोग कर पुरू ष को व्यसनों से दूर रखना होगा। उदाहरण के तोर पर दक्षिण में महिलाओं ने षराब बन्दी आंदोलन अपने हाथो में लिया जिसका असर वहा दिखने लगा है।

ऽ नारी को वर्तमान आय के साधनों को बढ़ाने में पति का साथ देने के साथ गृहस्थ जीवन को समुचित ढ़ंग से चलाना होता है। गृहस्थ जीवन तभी सुखी रह सकता है जब परिवार के प्रति नारी अपना दायित्व समझे। हमारी संस्कृति में पत्नी व्रत व पति व्रत ग्रहस्थ जीवन के मुख्य अंग है उनका पालन करना आवष्यक है। नारी को घर चलाना होेता है इसके लिए घर का बजट आय के स्त्रोतों को देखकर बनाना चाहिए।





 इन बातों को अपने जीवन में अपना कर आधुनिक सुसंस्कारित आर्दश समाज की स्थापना में नारी अपना अमुल्य योगदान दे सकती है।  










 
  लेखिकाः-

श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत



नोटः- यह आर्टिकल जगमग दीप ज्योति पत्रिका के बाल विषेंषाक फरवरी 2010 में छप चुका है।



                

                              






                                                      

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