बुधवार, 21 मार्च 2012

‘सिंहासन से चेहरा निखारे’

  
                                                        
                                                   
                               योग जीवन जीने की कला है।योग च्रित की वृतियों का निरोध है।योगासन के द्धारा भी स्त्री सुलभ चेहरे के सौदर्य को बरकरार रखा जा सकता है।सुन्दर व्यक्तित्व के लिए सुन्दर चेहरा महत्वपूर्ण मानदंड है।चेहरा मन का दर्पण होता है चेहरे के हाव भाव से ही व्यक्ति की मानसिक स्थिति का पता चल जाता हैे।आमधारणा है कि सुन्दर चेहरा पैदा नहीं होता है बल्कि बनाया जाता है। हमारे चेहरे पर 72 माॅसपेषिया होती है।चेहरे की पेषिया बहुत जटिल होती है और बहुत ही भिन्न -भिन्न दिषाओं की जाती है।चेहरे को निखारने के लिए रोज चेहरे की कसरत जरूरी है।



ष्योगासन मे ंिसंहासन भी एक ऐसा आसान है जिससे चेहरे की सुन्दरता में चार चाॅद लगाये जा सकते है। इसमें संभव हो तो सूर्याभिमुख करके व्रजासन में बैठकर,दोनो पैरो के घुटने बीच थोडा फासला रखकर दांेनो हाथो के पंजो को पीछे की ओर कर के हाथों को सीधा रखे व एक साथ साॅस भरकर ,जीभ को अधिक से अधिक बाहर की ओर निकालते हूए भूमध्य मेें देखते हुएष्ष्वास को बाहर निकालते हुए जोर से सिंह की तरह गर्जना करनी है ऐसा करते समय कमर सीधी हो ।यह क्रिया तीन बार दोहराये ,ऐसा करने के बाद गले की दोनों हाथों से मालिष करे और लार को अन्दर निगल ले। इससे गले की खराष की समस्या से भी निजात पा सकते है।


इस आसन से चेहरे की माॅसपेषिया सक्रिय हो जाती है।इस आसन से चेहरे व सिर के भाग की माॅसपेषिया का रक्त संचार बढता हैैे।उदर भाग की माॅसपेषिया का अधिक प्रयोग होने से फेफडो और गले के भाग का अधिक व्यायाम होता है।चेहरे पर चमक आती है व झुरियो से भी बचाव हो सकता है इससे तनाव दूर होता है चेहरा प्रफुल्लित लगने लगता है।साथ ही इस आसन से टाॅसिल,थायरायड,अस्पष्ट उच्चारण कान के रोग,साथ ही जो बच्चे तुतलाकर बोलते है,उनके लिए भी महत्वपूर्ण है।


महषि पंतजलि ‘नियमित रूप से योगासन कर अप्सराए और गंधर्व कन्याए अपना त्रिभुवन मोहक रूप यौवन बनाये रखती है।’ इसमें सिंहासन का भी प्रमुख स्थान है।क्योंकि स्त्री के लिए सिंहासन एक वरदान है इसको नियमित रूप से करने से चेहरे पर अर्पूव सौंदर्य लाया जा सकता है।

                                                                                                      श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत


                                                                                                           जिला संयोजिका

                                                                                                           पंतजलि महिला योग समिति


                                                                                                            बाॅसवाडा राज0





शुक्रवार, 16 मार्च 2012

ऐलोवेरा स्वास्थ्य व सौदर्य का रक्षक है


aloe vera
                                                                    




          घी के समान तापच्छिल पीत मज्जा होने से इसे घृत कुमारी अथवा घीकुंआर कहा जाता है।एलोवेरा भारत में ग्वारपाटा या धृतकुमारी हरी सब्जी के नाम से जाना जाने वाला काॅटेदार पतियों वाला पौधा,जिसमें कई रोगों के निवारण के गुण कूट-कूट कर भरे हुए है।आयुर्वेद में इसे महाराजा और संजीवनी की संज्ञा दी गयी है।इसमें 18 धातु,15 एमीनो एसीड और 12 विटामिन होते है।यह खून की कमी को दूर करता है,षरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है,इसे त्वचा पर भी लगाना भी लाभदायक है ।इसे 3से4 चम्मच रस सुबह खाली पेट लेने से दिनभर षरीर में ष्षक्ति व चुस्ती-स्फूति बनी रहती है साथ ही यह जोडो की सूजन में व माॅस पेषियों को सक्रिय बनाये रखने के लिए सहायक है।

 जलने पर,अंग के कही से कटने पर,अदरूनी चोटो पर इसे लगाने से घाव जल्दी भर जाता है क्योंकि इसमें एंटी बैक्टेरिया और एंटी फॅगल के गुण होते है।मधुमेह आदि के इलाज में भी इसकी उपयोगिता साबित हो चुकी है क्योंकि एलोवेरा रक्त मे ष्षर्करा की मात्रा को भी नियत्रिंत करता है।बवासीर ,,गर्भाषय के रोग, पेट की खराबी,जोडो का दर्द, त्वचा का रूखापन,मुहाॅसे,धूप से झूलसी त्वचा,झुरियों चेहरे के दाग धब्बों,आॅखों के नीचे के काले घेरो, फटी एडियो के लिए लाभप्रद है। इसका गुदा या जैल बालों की जडो में लगाने से बाल काले घने लंबे एंव मजबूत होगेे।एलोवेरा के कण-कण मे सुंदर एंव स्वस्थ्य होने के राज छुपे है।इसे कम से कम जगह मे छोटे-छोटे गमलों में आसानी से उगाया जा सकता है।



स्वास्थ्य का महत्व हमें उसी समय ज्ञात होता है जब हम बीमार होते है इसलिए क्यों न हम एलोवेरा को दैनिक जीवन का अंग बना ले। यह संपूर्ण ष्षरीर का काया कल्प करता है बस जरूरत है सभी को अपनी रोजमर्रा की व्यस्तम् जिंदगी से थोडा सा समय अपने लिए चुराकर इसे अपनाने की।
 प्रेषकः-


भुवनेष्वरी मालोत


जिला संयोजिका


महिला पंतजलि योग समिति


बाॅसवाडा राज

गुरुवार, 8 मार्च 2012

महिला दिवस पर सभी मातृ षक्ति को नमन्




सदियो से पुरूष प्रधान समाज में नारी को पुरूषों के स्वामित्व में रहना पड रहा है।भारत में एक लडकी को युवास्था में पिता पर निर्भर रहती है,षादि के बाद पति पर और बूढी होने पर बेटे पर । डर षब्द तो नारी के साथ जन्म से मृत्यु तक साथ रहता है पैदा होने से पहले ही गर्भ में मार देने का डर बचपन मे षिक्षा से वंचित होने का डर ,बाल विवाह का डर ,जवान होने पर गिद्ध की तरह घूरती हुई नजरो का डर, षादि पर दहेज का ,दहेज न देने पर जलाकर मारदेने का डर, लेकिन फिर भी पाष्चात्य संस्कृति के प्रभाव व षिक्षा के कारण आज की नारी उन्मुक्त आसमान में मुक्त साॅस लेने के लिए लालायित है। नारी के बारे समय-समय विभिन्न दृषिटकोण विद्धवानों द्धारा रखे गये है । कहा गया हैकि नारी


‘‘ कार्येषु मंत्री, करमेषु दासी भोज्येषु माता षयेनषु रम्भा ।

धर्मानुकूल क्षमया धरित्री वाड्गुणयुक्ता सुलभा च नारी।‘‘

एक तरफ जयषंकरप्रसाद कहते है‘‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो,विष्वास रजत नभ तल मे ,पीयुष स्त्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में ।

आर्किमिडीज के अनुसार‘‘नारी बादाम का मासुम फूल है,खजूर का कच्चा फल है,चेरी की रंगत है, गुलाब का नषा है, उसे जिसने समझा वही ठगा गया। लेकिन वास्तव में नारी किसी भी घर की,परिवार की, समाज की धूरी होती है ऐसे में उसका सषक्त होना जरूरी है।नारी के जितने नाम है उतने ही रूप है,एक पुरूष को कदम-कदम पर माॅ ,बहन,प्रेयसी,पत्नि व सहचरी के रूप में स्नेह,प्यार,ममत्व देने वाली नारी ही तो हैै।आज कई क्षेत्रो में नारी ने अपने हौसलों के बल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है आज कई राज्यों में महिला मुख्य मंत्री है,महिला राषट््पति है।आज वह चूल्हे चैके से बाहर निकलकर चंदा तक पहुॅच चुकी है,वह घर-गृहस्थी के साथ आॅफीस की भी दोहरी जिम्मेदारी को बखूबी से निभा रही है,साथ ही वह अपने व बच्चों के भविषय के लिए एक सजग प्रहरी की तरह हमेषा तैयार रहती है।आज की नारी हर क्षैत्र में स्मार्ट बनकर जीना चाहती है क्योंकि वह इस सच्चाई को समझ गयी है कि आज का पुरूष स्र्माट वाइफ चाहता है,बेटा स्र्माट माॅम चाहता है,साॅस स्र्माट बहू चाहती है।इसलिए आज की नारी पुरूष के समकक्ष है और पुरूष के नजरिये में भी परिवर्तन आया है,वह भी सहयोग के लिए तत्पर नजर आता है,आज साॅस-बहू के संबधो मे भी अच्छा साॅमजस्य देखने मिलता है। नारी नारी की दुष्मन न बने बल्कि उसकी सहयोगी बने।नारी समय के विकास के साथ कदमताल अवष्य करे किंतु अपने भीतर की नारी को,अपने भीतर की माॅ को, अपनी भारतीय संस्कृति को हमेषा जागृत रखे। साथ ही समाज को भी नारी के प्रति अपने नजरिये में परिवर्तन लाना होगा। इस दिवस की सार्थकता तभी होगी,जब हम अपनी बेटी,बहन बहू को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प ले ताकि उनका जीवन सुंदर व भविषय सुखद बन सके।आज हम सभी बहने अपनी अपनी षक्तियों को एक जगह संगठित करके माॅ दुर्गा की तरह समाज मे व्याप्त महिषासुरी समस्याये जैसे कन्या-भूण हत्या ,दहेज के लिए बहू की हत्या,षिक्षा के अधिकार से वंचित करना घरेलू ंिहंसा जैसी समस्या से लडने के लिए एक जूट हो जाये,अपने अधिकार के साथ अपने कर्तव्य को समझे गलत परम्पराओं का विरोध करे।

मैं अंत में अपनी बहनों से कहना चाहूगी कि ‘‘कोमल है कमजोर नही,षक्ति का नाम ही नारी है,सबको जीवन देने वाली,मौत भी तुझसे हारी है।इन्ही षुभकामनाओं के साथ,

श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

अन्न का सम्मान करे

   
                                         

             अकसर हमारे समाज में शादी हो या जन्म-दिन या अन्य कोई शुभ प्रंसग हो भोज का आयोजन किया जाता है, प्रायः देखने में आता है कि लोग खाते कम है, अन्न की बर्बादी ज्यादा करते है आजकल कई तरह के व्यंजनो के स्टाॅल लगते है जिससे सब का मन ललचा उठता है,और सभी व्यंजनो का स्वाद लेने के चक्कर मे ढेर सारा भोजन प्लेट में ले लेते है और पेटभर जाने के कारण अनावश्यक रूप से लिया गया भोजन बच जाता है जिसे कूडे- दान में फेंक दिया जाता है या नाली में बहा दिया जाता है ,लेकिन हम चाहे तो अन्न की बर्बादी को काफी हद तक रोक सकते है,यदि इस भोजन का सद्उपयोग किया जाय तो न जाने कितने भूखे-गरीबोे पेट भर सकता है। किसी संस्था की मदद से अनाथाश्रम या किसी बस्ती में पहुचाया जा सकता है या अप्रत्यक्ष रूप सं गौ-माता को इस भोजन में सम्मिलित कर अप्रत्यक्ष पुण्य का भागीदार आप बन सकते है गौ-शाला से सम्पर्क करके,फोन द्धारा सूचित करके या स्ंवय गायों तक भोजन पहुचाकर  पुण्य कमा सकते है      

                                                                                                             

        यदि व्यंजन पंसद न हो तो पहले से निकाल लेना चाहिये ,जूठा नहीं छोडना चाहिये। अन्न को देवता का दर्जा दिया गया है ,इसलिये अन्न को देवता का रूप समझकर ग्रहण करना चाहिये । मनुस्मृति में कहा गया है कि अन्न ब्रहृा है,रस विष्णु है और खाने वाला महेश्वर है। भोजन के समय प्रसन्नता पूर्वक भोजन की पं्रशसा करते हुये ,बिना झूठा छोडे हुये ग्रहण करना चाहिये । दूसरो के निवाले को हम नाली में बहा कर अन्न देवता का अपमान कर रहे है, जो रूचिकर लगे वही खाये ,पेट को कबाडखाना न बनाये । भांेजन को समय पर ग्रहण करके भोजन का सम्मान करे ,मध्य रात्री को पशु भी नहीं खाता है । प्रत्येक स्टाॅल पर विरोधी स्वभाव के भोजन को स्वविवेक के अनुसार ग्रहण करना चाहिये ।।सब का स्वाद ले लू वाली प्रव्रृति का त्याग करे ।

           गाॅॅधी जी ने कहा है कि कम खाने -वाला ज्यादा जीता है,ज्यादा खाने वाला जल्दी मरता है।  

                                           श्रीमति भुवनेश्वरी   मालोत 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

कन्या-भ्रूण हत्या को रोकने के उपाय

                                                                           
      बिना मातृत्व के एक स्त्री को अधूरी माना जाता है,जिस पूर्णता को प्राप्त होने पर जहा उसे आत्म-संतोष का आभास होता है, लेकिन जैसे ही पता पडता है, ये कन्या-भ्रूण है तो वह इसको नष्ट करने के लिए तैयार हो जाती है। कन्या-भ्रूण हत्या के लिए सभी जिम्मेदार है, सबसे पहले इसकी जिम्मेदारी माॅ और उसके परिजनो पर है, एक माॅ परिजनो के दबाब में आकर अपने ही  पेट में पल रहे कन्या-भ्रूण की हत्या करने पर उतारू हो जाती है।

    इसके लिए सामाजिक जागृति लानी होगी और माॅ व बेटियों के मन में आत्म-विश्वास जागृत करना होगा ताकि साहस पूर्वक इस घिनौने कार्य का विरोध कर सके ।  
   

डाक्टरो के लिए सख्त नियम लागू करके,दोषी डाक्टरो के विरूद्ध सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।



डाक्टर को अपने पेशे के मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए ऐसे कृत करने से मना करना हेागा 


 गांव-गंाव में लोगो को नाटको व मंचो के द्धारा कन्या के महता को समझाना होगा।

  


श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत


शनिवार, 21 जनवरी 2012

बेटी-माॅ का प्रतिबिंब है

                  बेटी किसी भी समाज व परिवार की धरोहर है ,कहा जाता है कि अगर किसी भवन की नींव मजबूत होगी तो भवन भी मजबूत होगा।माॅ बेटी का रिश्ता एक नाजुक स्नेहिल रिश्ता है। प्राचीन काल में धार्मिक मान्यताओं अनुसार बेटी के जन्म पर कहा जाता था कि लक्ष्मी घर आई है,साथ ही बेटी के जन्म को कई पूण्यों का फल माना जाता था ।
             मोरारी बापू ने अपने प्रवचन में  बेटी को माता-पिता की आत्मा और  बेटे को हृदय की संज्ञा दी हेै। हृदय की धडकन तो कभी भी बंद हो सकती है लेकिन बेटी व आत्मा का संबध जन्मजंमातर का रहता है वह कभी  अलग नहीं हो सकती है
               यद्यपि आधुनिक युग में माता-पिता के लिए बेटा-बेटी दोनो समान है,लेकिन कुछ रूढिवादी प्रथाओं,अशिक्षा,अज्ञानता व सामाजिक बुराइयों के कारण इसे अनचाही संतान माना जाने लगा है और बेटे और बेटी को समान दर्जा नही दे पाते है। कुछ लोग अपनी कुठित मानसिकता के कारण   बेटा स्वर्ग का सौपान और कन्या को नरक का द्धार मानते है   बेटी परिवार के स्नेह का केन्द्र बिन्दु और कई रिश्तो का मूल होती है।माॅ-बेटी का रिश्ता पारिवारिक रिश्तो की दुनिया मे एक महत्वपूर्ण रिश्ता है क्योंकि माॅ-बेटी का संबध दूध और रक्त दानों का होता है। माॅ ही बेटी की प्रथम गुरू होती है ।माॅ ही बचपन  मे अपनी लाड प्यार ममत्व रूपी खाद से बेटी रूपी पौधे को सींचने,तराशने व संवारने का कार्य करती है।एक माॅ का खजाना है उसकी बेटी ,एक माॅ की उम्मीद है उसकी बेटी, एक माॅ का भविष्य है उसकी बेटी, ,एक माॅ का हौसला है उसकी बेटी और  एक माॅ का अंतिम सहारा है उसकी बेटी ।                                                                                
             भाई और बहन के प्यार की गहरी जडे भी कभी दुश्मनी मे बदल सकती है,पति-पत्नि के प्यार डगमगाने लगते है,लेकिन एक माॅ का प्यार बेटी के लिए मजबूत दीवार होता है क्योंकि उसकी जडे बहुत गहरी होती है। माॅ-बेटी एक दूसरे के दिल की धडकन होती हैं।विष्वास, कार्यकुषलता, उदारता ,खुली सोच,समझदारी आदि केवल माॅ ही बेटी को उसकी सच्ची सहेली बनकर दे सकती है जो उसके भावी जीवन के लिए उत्रदायी है।

 आज बेटियो ने चारो दिषाओे  में अपनी उपस्थित दर्ज करा चुकी है इसमे एक माॅ का त्याग,समर्पण लाड दुलार व सख्ती ही जो बेटी के हौसलो को उडान मिल सकी है। एक माॅ बेटी में अपना प्रतिबिंब तलाषती है,एक माॅ चाहती है कि बेटी उसी की तरह संस्कारो व परम्पराआंे को आगे बढाने में उसकी सहयोगी, हमदर्द सखी सब कुछ बने ।एक माॅ बेटी की सच्ची सहेली की भूमिका को निभाते हुए उसके दिल की गहराई तक पहुचकर उसकी सहयोगी,विष्वासी बनकर उसका वर्तमान व भविष्य का जीवन संवारती है।माॅ अपनी बेटियो को आधुनिक व पुरातन में समन्वय रखते हुये खुला आकाष देती है ताकि वह अपने पंखो को फैलाकर सफलता की नयी उॅचाईयों को छू सके ।बेटी में कार्यकुश्षलता का बीजारोपण एक माॅ अच्छी तरह कर सकती है।वह उसे स्ंवय की,घर की स्वच्छता ,घर की सजावट,रसोई व खानपान की जानकारी परिवार की  परम्पराओ व रीति रिवाजो पारिवारिक रिश्ष्तो की   अहमियत ,आचरण व षालीनता आदि का ज्ञान देती है।
       माॅ बेटी को भावी जीवन में आने वाली समस्याओं के बारे में बताती है सुसराल वालो व पति के साथ अपने दायित्वों को निभाने हुये परिवार मे समन्वय स्थापित करने के लिए प्रेरित करती है।
       इसी तरह बचपन में एक बेटी अपनी मम्मी की तरह ही दिखना चाहती है उसकी मम्मी की तरह साडी पहनती है माॅ की आदतो की नकल करती है। लेेकिन जैसे-जैसे बडी  होती है उसे लगने लगता है माॅ उसकी भावनाऔ को नही समझ रही है।लेकिन एक माॅ अपनी बडी होती बेटी के रक्षात्मक रवैया अपनाती है क्योंकि लेखिका सलुजा ने कहा है कि चिडियो  और लडकियो की प्रकृति बडी सौम्य,सरल और निष्छल प्राणी की होती है ये अपनी सरलता व भोलेपन के कारण ही प्रायः अन्याय और षोषण का षिकार  हो जाती है। इसलिये बेटी को भी हमेषा अपनी माॅ से खुले रूप से बात करनी चाहिये अपनी पढाई अपने दोस्तो के बारे में ताकि एक माॅ समय के अनुसार बदलकर बेटी को आजादी दे सके,उस पर विष्वास कर सके ।


                     श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत    
 

सोमवार, 16 जनवरी 2012

दांपत्य में अल्पविराम के बाद...


                                                                
                                                        

          हिन्दुओ में विवाह को एक ऐसा संस्कार माना गया है जिससे कई महत्वपूर्ण संस्कार छुपे हुए
है यह जन्म जन्मान्तर का अथार्त सात जन्मों का नाता है। विवाह से पहले प्यार प्रथम होता है ,विवाह के बाद प्राथमिकताए बदल जाती है। पति-पत्नि मन-प्राण से दूध में पानी की तरह घुल जाते है। धीरे -धीरे इस संबधो में परिपक्वता आ जाती है। पति-पत्नि नौकरी पेशा है तो दोनों इतने व्यस्त हो जाते है कि उन्हें अपने वैवाहिक संबधों कंे बारे में सोचने का समय ही नहीं मिलता ,लेकिन इन संबधो को मजबूत बनाने के लिए निरतंर कोशिश करने की आवश्यकता है।
विवाह के बाद जिंदगी में जब अल्पविराम आ जाये तो  इन नुस्खो को अपनाकर दांपत्य जीवन में इन्द्रधनुषी रंग भर सकते है।


ऽ आपसी विश्वास ही विवाह की सफलता  की कुंजी है,इस रिश्ते में गर्माहट आपसी समझदारी व विश्वास के बल पर आ सकती है।

ऽ दोनो एक दूसरे  को उसके नजरिये से समझे इससे टकराव व विरोध की स्थिति पैदा नही होगी ।


ऽ एक दूसरे की भावनाओं को समझने में दांपत्य की सफलता छिपी है ,एक दूसरे की खुशी को अहमियत दे,एक दूसरे को दुख न पहुचे ,छोटी -छोटी बातो को तुल न दे वरन दोस्त बनकर एक दूसरे का सहयोग करे ।


ऽ एक दूसरे के व्यक्तित्व को उसकी खुबियो व खामियो के साथ स्वीकार करे ,सराहना व सम्मान करे क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता है ।


ऽ शिकायतो से दांपत्य जीवन में कडवाहट घुलती है ,इसलिए हमेशा जीवन साथी की प्रंशसा के अवसर तलाशिये ।

ऽ दोनो एक दूसरे के परिवार को अपना समझकर अपनत्व व सम्मान दे ।

ऽ जीवन साथी के आत्म-सम्मान को बढाने की कोशिश करे, न की ठेस पहुचाने की ।

ऽ दोनो एक दूसरे की रूचियों को समान महत्व देते हुए उसे प्रोत्साहित करे ।

ऽ यदि नौकरी पेशा दंपती है तो घरेलु व अन्य कार्यो में एक दूसरे का सहयोग करे ।

ऽ दोनो परिवार की समस्या को आपसी विचार विर्मश के द्धारा समाधान करने की कोशिश करे ।

ऽ भावुकता में बहकर भूलकर भी अपने शादी के पूर्व संबधों की चर्चा न करे ।कभी -कभी ईमानदारी से सब कुछ बता देने का परिणाम बहुत बुरा हो सकता है।

ऽ नौकरी पैशा दंपती अपने पुरूष या महिला कर्मियो से अपने जीवन साथी से शालीनता पूर्वक मिलाए व संबधो में मर्यादा बनाए रखे।

ऽ तृप्त यौन कुदरत की सर्वाधिक आंनदायी क्रिया व सुखी दांपत्य की कुंजी है, इसे नजरअंदाज करना दांपत्य संबधो को कमजोर करने जैसा है। दांपत्य को पुरा समय दे ताकि एक दूसरे प्रति विवाह के बाद भी शारीरिक आकर्षण बना रहे ।

ऽ झगडे या बहस की स्थिति मे गलती का अहसास होने पर साॅरी प्यार की अभिव्यक्ति के साथ कहिये ।

ऽ दांपत्य की सफलता के लिए हर पल इस रिश्ते को नवीनता के साथ जीये और अपने साथी को सरप्राइज दे। जैसे खान-पान ,पहनावा ,सौदर्य, घर की सजावट, घूमने का कार्यक्रम बनाके,बचत करक, उपहार देके ।

ऽ एक दूसरे को जन्मदिन,शादि की वर्षगांठ या अन्य सफलता के अवसर पर तोहफा या प्यार भरी बधाई देने में कंजूसी न दिखाये ।

ऽ संवादहीनता दांपत्य जीवन को नीरस बना देती है इसलिए दोनो उन सार्थक मुद्दों घर,समाज राजनीति पर जिनसे आप जुडे है विचार विर्मश करे ।


ऽ शक्की मिजाज दांपत्य में दरार पैदा कर सकता है,इसलिए छोटी-छोटी बातो में शक को बीच में न आने दे ।

ऽ बहुत ज्यादा नजदीकी दूरी पैदा कर सकती है,इसलिए दांपत्य को आंनद-दायक व सुखी बनाने के लिए समय समय पर कुछ दिनों के लिए एक दूसरे से दूर रहे ,लेकिन दूरी इतनी लम्बी न करे की वियोग का मारा साथी आपको छोड कही और भटक जाय।

ऽ दांपत्य में लज्जा अथवा संकोच ,दुराव को कोई स्थान नहीं होना चाहियं।

           प्यार के धरातल से विवाह की सीढीया चढने में वक्त लग सकता है,लेकिन वैवाहिक बंधन की पवित्र उॅचाई से तलाक की गहरी खाई मे कूदने में जराभी वक्त नहीें लगता है, इसलिए रिश्ते में हम दो होते हुए भी हम एक है,इस बात को हमेशा दिमाग में रखनी चाहिए क्योंकि दांपत्य का रिश्ता सृष्टि का संुदरतम् रिश्ता है ,छोट-मोटी  समस्या तो हर वैवाहिक जीवन में आती है इन समस्याओं से निकलना ही जिंदगी है, हमेशा इस रिश्ते में प्यार, सम्मान, गरिमा व भरोसे की मजबूत दीवार को कायम रखे ।










    श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत