बुधवार, 20 जुलाई 2011

बढते बच्चे और आप

                     
   आज में अचानक ही मेरी सहेली से मिलने उसके घर गयी, हम गपशप कर ही रहे थे कि हमारे पास बैठा उसका 14 साल का बेटा अजीब से सवाल पूछ रहा था। जिसका जवाब मेरी सहेली ठीक से नहीं दे पा रही थी और वह सोच रही थी कि ये अपने दोस्तों की संगत में बुरी बाते सीख रहा है लेकिन मैने कहा कि तुम गलत हो, तुम्हारा बेटा उम्र के उस मोड पर खडा है जिसमें उसमें शारीरिक परिवर्तन होना संभावित है इसकी जानकारी तुम्हे स्वंय अपने बेटे को देनी चाहिए।
बढ़ते बच्चों को समझे:-

 बढ़ती उम्र में बच्चों के लिए दोस्त ही सब कुछ होते है और वे सैक्स के बारे में अधपका ज्ञान एक दूसरे से शेयर करते है। ऐसे समय में माता-पिता ही बच्चों को बता सकते है कि क्या गलत है क्या सही है। जब इस उम्र में बच्चा स्कूल से घर आता है तो घर में किसी बडे का होना जरूरी है। उससे स्कूल की बाते शेयर करे, अच्छे कार्य के लिए प्रोत्साहित करें और गलत चीज का एकदम विरोध न कर,ें न ही डाटे, धीरे धीरे अपने विश्वास में लेेकर उन्हे ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए, इसके बारे में समझाये।
रिश्तों की सीमा व अहमियत के बारे में बताऐ:-

 बढ़ती उम्र में बच्चों का वास्ता स्कूल, परिवार, दोस्त, ट्यूशन के साथी, टीचर और खेल के मैदान के साथी आदि कई लोगों से पड़ता है। आप उन्हे सही व गलत रिश्ते की पहचान बताऐ और समझाये कि आधुनिक युग में रिश्ते व दोस्ती की परिभाषा ही बदल गयी है। जिंदगी के सफर में नये रिश्ते बनते जायेगे, पुराने छुटते जायेंगे, किसी से स्थाई संबंध बनाने के लिए बहुत समझदारी से प्रयास करना पड़ता है।
अच्छे बुरे अनुभव बच्चों के साथ शेयर करें:-
 माता-पिता को अपनी जिंदगी के अच्छे बुरे अनुभव बच्चों के साथ बांटने चाहिए जिससे बच्चों को कुछ सीखने की प्रेरणा मिलेगी साथ ही माता-पिता अपनी लाडली बिटिया व लाडले बेटे से स्कूल व दोस्तों के साथ घटित खास अनुभव के बारे में पूछ सकते है। इससे आपको उनके मन में क्या चल रहा है और साथ ही किस तरह के दोस्त है इसकी जानकारी मिल सकती है।
प्यार के सही मायने बताऐ:-


आजकल बच्चों पर टीवी व फिल्मो का गहरा प्रभाव होता है उनको इस बात का अहसास दिलाना होगा कि प्यार विपरित लिंग के अलावा मॉ-बाप, भाई-बहिन से भी होता है। उनको प्यार से समझाना होगा कि बढ़ती उम्र में तुम जो प्यार का मतलब निकाल रहे हो वो सिर्फ शारीरिक आर्कषण है, स्थाई प्यार नहीं ।यही से दोनों बीच टकराव शुरू
हो जाता है। बच्चे अपनी मरजी से जीना चाहते है और वे मॉ-बाप के नियन्त्रण को बर्दाश नहीं कर पाते है।

अपने लाड़ले व लाड़ली से दोस्ताना व्यवहार रखे:-  
 अगर माता-पिता अपने बच्चों के साथ एक दोस्त की तरह व्यवहार करेंगे तो वे आपको अपनी ज्यादातर बाते बतायेंगे यदि आप उसे डाटेंगे या उसकी बात का विरोध करेंगे तो वे आप से अपनी बाते शेयर नहीं करेंगे। उन्हे समझाये कि हर चीज की एक उम्र होती है, पाश्चात्य संस्कृती की नकल में कही गलत व्यक्ति के चक्कर में पड़ कर अपनी जिंदगी बर्बाद कर सकते है। इस उम्र के लव अफेयर केवल शारीरिक आर्कषण ही होता है। 
बिटिया और आप:- 



 

 आपको पता ही नही चला कि जो कल तक आपकी नन्ही लाडली आपके आंचल का सहारा लेकर चलती थी न जाने कब बड़ी हो गयी । मां की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मां का कृर्तव्य है कि वह अपनी बेटी को उम्र के अलग- अलग मोड पर किस तरह से व्यवहार करना है सिखाए। सही व गलत व्यक्ति की पहचान बताऐ। कॉलेज व स्कूल में अपने साथीयों व अध्यापको से, प्रोफेसर से, ऑफिस में बोस से, साथ ही कर्मचारीयों से सुसराल में पति, देवर, जेठ से किस मर्यादा में रहकर व्यवहार करना है इसका ज्ञान दे, जिंदगी की किताब का यह पाठ  एक मां ही अपनी बढ़ती उम्र की बेटी को बेहतर ढग से  पढ़ा सकती

सैक्स ज्ञान व आपका बच्चा:-
 यदि आपका बच्चा 14 साल से ऊपर की उम्र का है तो उसे बातों ही बातों में शारीरिक बदलाव के बारे में जानकारी देते हुऐ समझा सकते है कि सैक्स की एक उम्र होती है अभी इन चीजों से दूर रहकर अपना ध्यान पढ़ाई व अपने केरियर पर रखना है। यही से बच्चे के जीवन का प्रवेश द्वार शुरू होता है। बच्चों को सैक्स से संबन्धित होने वाले रोग जैसे एड्स आदि की जानकारी दे सकते है और उन्हे अच्छा साहित्य पढ़ने को दे सकते है जिससे उन्हे सही जानकारी मिल सके।
 आधुनिक बनना जरूरी है, स्वतन्त्रता भी जरूरी है। पुरानी मान्यताओं व रूढियों का विरोध करना भी जरूरी है लेकिन यह सब एक सीमा में रह कर करना होगा। वेलेन्टाइन डे 31 दिसम्बर आदि का सहारा लेकर हमारे लाडले, लाडली आनन्द उत्सव मनाने के लिए जो महफिले सजाते है उसमें न जाने कितनी लाडलियां अपनी अस्मत खो देती है और कितने लड़के नशे में एक्सीडेन्ट करते है।
बढ़ती उम्र के बच्चों को सही मार्ग दर्शन व प्यार जरूरी है जो उन्हे मां बाप ही दे सकते है।

 

 नोट‘ः-  लेखिका -श्रीमति भुनेष्वरी मालोत    यह आर्टिकल  नई दुनिया -नायिका  में 23 फरवरी 2011 को छप चुका है।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें