बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

अन्न का सम्मान करे

   
                                         

             अकसर हमारे समाज में शादी हो या जन्म-दिन या अन्य कोई शुभ प्रंसग हो भोज का आयोजन किया जाता है, प्रायः देखने में आता है कि लोग खाते कम है, अन्न की बर्बादी ज्यादा करते है आजकल कई तरह के व्यंजनो के स्टाॅल लगते है जिससे सब का मन ललचा उठता है,और सभी व्यंजनो का स्वाद लेने के चक्कर मे ढेर सारा भोजन प्लेट में ले लेते है और पेटभर जाने के कारण अनावश्यक रूप से लिया गया भोजन बच जाता है जिसे कूडे- दान में फेंक दिया जाता है या नाली में बहा दिया जाता है ,लेकिन हम चाहे तो अन्न की बर्बादी को काफी हद तक रोक सकते है,यदि इस भोजन का सद्उपयोग किया जाय तो न जाने कितने भूखे-गरीबोे पेट भर सकता है। किसी संस्था की मदद से अनाथाश्रम या किसी बस्ती में पहुचाया जा सकता है या अप्रत्यक्ष रूप सं गौ-माता को इस भोजन में सम्मिलित कर अप्रत्यक्ष पुण्य का भागीदार आप बन सकते है गौ-शाला से सम्पर्क करके,फोन द्धारा सूचित करके या स्ंवय गायों तक भोजन पहुचाकर  पुण्य कमा सकते है      

                                                                                                             

        यदि व्यंजन पंसद न हो तो पहले से निकाल लेना चाहिये ,जूठा नहीं छोडना चाहिये। अन्न को देवता का दर्जा दिया गया है ,इसलिये अन्न को देवता का रूप समझकर ग्रहण करना चाहिये । मनुस्मृति में कहा गया है कि अन्न ब्रहृा है,रस विष्णु है और खाने वाला महेश्वर है। भोजन के समय प्रसन्नता पूर्वक भोजन की पं्रशसा करते हुये ,बिना झूठा छोडे हुये ग्रहण करना चाहिये । दूसरो के निवाले को हम नाली में बहा कर अन्न देवता का अपमान कर रहे है, जो रूचिकर लगे वही खाये ,पेट को कबाडखाना न बनाये । भांेजन को समय पर ग्रहण करके भोजन का सम्मान करे ,मध्य रात्री को पशु भी नहीं खाता है । प्रत्येक स्टाॅल पर विरोधी स्वभाव के भोजन को स्वविवेक के अनुसार ग्रहण करना चाहिये ।।सब का स्वाद ले लू वाली प्रव्रृति का त्याग करे ।

           गाॅॅधी जी ने कहा है कि कम खाने -वाला ज्यादा जीता है,ज्यादा खाने वाला जल्दी मरता है।  

                                           श्रीमति भुवनेश्वरी   मालोत 

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

कन्या-भ्रूण हत्या को रोकने के उपाय

                                                                           
      बिना मातृत्व के एक स्त्री को अधूरी माना जाता है,जिस पूर्णता को प्राप्त होने पर जहा उसे आत्म-संतोष का आभास होता है, लेकिन जैसे ही पता पडता है, ये कन्या-भ्रूण है तो वह इसको नष्ट करने के लिए तैयार हो जाती है। कन्या-भ्रूण हत्या के लिए सभी जिम्मेदार है, सबसे पहले इसकी जिम्मेदारी माॅ और उसके परिजनो पर है, एक माॅ परिजनो के दबाब में आकर अपने ही  पेट में पल रहे कन्या-भ्रूण की हत्या करने पर उतारू हो जाती है।

    इसके लिए सामाजिक जागृति लानी होगी और माॅ व बेटियों के मन में आत्म-विश्वास जागृत करना होगा ताकि साहस पूर्वक इस घिनौने कार्य का विरोध कर सके ।  
   

डाक्टरो के लिए सख्त नियम लागू करके,दोषी डाक्टरो के विरूद्ध सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।



डाक्टर को अपने पेशे के मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए ऐसे कृत करने से मना करना हेागा 


 गांव-गंाव में लोगो को नाटको व मंचो के द्धारा कन्या के महता को समझाना होगा।

  


श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत


शनिवार, 21 जनवरी 2012

बेटी-माॅ का प्रतिबिंब है

                  बेटी किसी भी समाज व परिवार की धरोहर है ,कहा जाता है कि अगर किसी भवन की नींव मजबूत होगी तो भवन भी मजबूत होगा।माॅ बेटी का रिश्ता एक नाजुक स्नेहिल रिश्ता है। प्राचीन काल में धार्मिक मान्यताओं अनुसार बेटी के जन्म पर कहा जाता था कि लक्ष्मी घर आई है,साथ ही बेटी के जन्म को कई पूण्यों का फल माना जाता था ।
             मोरारी बापू ने अपने प्रवचन में  बेटी को माता-पिता की आत्मा और  बेटे को हृदय की संज्ञा दी हेै। हृदय की धडकन तो कभी भी बंद हो सकती है लेकिन बेटी व आत्मा का संबध जन्मजंमातर का रहता है वह कभी  अलग नहीं हो सकती है
               यद्यपि आधुनिक युग में माता-पिता के लिए बेटा-बेटी दोनो समान है,लेकिन कुछ रूढिवादी प्रथाओं,अशिक्षा,अज्ञानता व सामाजिक बुराइयों के कारण इसे अनचाही संतान माना जाने लगा है और बेटे और बेटी को समान दर्जा नही दे पाते है। कुछ लोग अपनी कुठित मानसिकता के कारण   बेटा स्वर्ग का सौपान और कन्या को नरक का द्धार मानते है   बेटी परिवार के स्नेह का केन्द्र बिन्दु और कई रिश्तो का मूल होती है।माॅ-बेटी का रिश्ता पारिवारिक रिश्तो की दुनिया मे एक महत्वपूर्ण रिश्ता है क्योंकि माॅ-बेटी का संबध दूध और रक्त दानों का होता है। माॅ ही बेटी की प्रथम गुरू होती है ।माॅ ही बचपन  मे अपनी लाड प्यार ममत्व रूपी खाद से बेटी रूपी पौधे को सींचने,तराशने व संवारने का कार्य करती है।एक माॅ का खजाना है उसकी बेटी ,एक माॅ की उम्मीद है उसकी बेटी, एक माॅ का भविष्य है उसकी बेटी, ,एक माॅ का हौसला है उसकी बेटी और  एक माॅ का अंतिम सहारा है उसकी बेटी ।                                                                                
             भाई और बहन के प्यार की गहरी जडे भी कभी दुश्मनी मे बदल सकती है,पति-पत्नि के प्यार डगमगाने लगते है,लेकिन एक माॅ का प्यार बेटी के लिए मजबूत दीवार होता है क्योंकि उसकी जडे बहुत गहरी होती है। माॅ-बेटी एक दूसरे के दिल की धडकन होती हैं।विष्वास, कार्यकुषलता, उदारता ,खुली सोच,समझदारी आदि केवल माॅ ही बेटी को उसकी सच्ची सहेली बनकर दे सकती है जो उसके भावी जीवन के लिए उत्रदायी है।

 आज बेटियो ने चारो दिषाओे  में अपनी उपस्थित दर्ज करा चुकी है इसमे एक माॅ का त्याग,समर्पण लाड दुलार व सख्ती ही जो बेटी के हौसलो को उडान मिल सकी है। एक माॅ बेटी में अपना प्रतिबिंब तलाषती है,एक माॅ चाहती है कि बेटी उसी की तरह संस्कारो व परम्पराआंे को आगे बढाने में उसकी सहयोगी, हमदर्द सखी सब कुछ बने ।एक माॅ बेटी की सच्ची सहेली की भूमिका को निभाते हुए उसके दिल की गहराई तक पहुचकर उसकी सहयोगी,विष्वासी बनकर उसका वर्तमान व भविष्य का जीवन संवारती है।माॅ अपनी बेटियो को आधुनिक व पुरातन में समन्वय रखते हुये खुला आकाष देती है ताकि वह अपने पंखो को फैलाकर सफलता की नयी उॅचाईयों को छू सके ।बेटी में कार्यकुश्षलता का बीजारोपण एक माॅ अच्छी तरह कर सकती है।वह उसे स्ंवय की,घर की स्वच्छता ,घर की सजावट,रसोई व खानपान की जानकारी परिवार की  परम्पराओ व रीति रिवाजो पारिवारिक रिश्ष्तो की   अहमियत ,आचरण व षालीनता आदि का ज्ञान देती है।
       माॅ बेटी को भावी जीवन में आने वाली समस्याओं के बारे में बताती है सुसराल वालो व पति के साथ अपने दायित्वों को निभाने हुये परिवार मे समन्वय स्थापित करने के लिए प्रेरित करती है।
       इसी तरह बचपन में एक बेटी अपनी मम्मी की तरह ही दिखना चाहती है उसकी मम्मी की तरह साडी पहनती है माॅ की आदतो की नकल करती है। लेेकिन जैसे-जैसे बडी  होती है उसे लगने लगता है माॅ उसकी भावनाऔ को नही समझ रही है।लेकिन एक माॅ अपनी बडी होती बेटी के रक्षात्मक रवैया अपनाती है क्योंकि लेखिका सलुजा ने कहा है कि चिडियो  और लडकियो की प्रकृति बडी सौम्य,सरल और निष्छल प्राणी की होती है ये अपनी सरलता व भोलेपन के कारण ही प्रायः अन्याय और षोषण का षिकार  हो जाती है। इसलिये बेटी को भी हमेषा अपनी माॅ से खुले रूप से बात करनी चाहिये अपनी पढाई अपने दोस्तो के बारे में ताकि एक माॅ समय के अनुसार बदलकर बेटी को आजादी दे सके,उस पर विष्वास कर सके ।


                     श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत    
 

सोमवार, 16 जनवरी 2012

दांपत्य में अल्पविराम के बाद...


                                                                
                                                        

          हिन्दुओ में विवाह को एक ऐसा संस्कार माना गया है जिससे कई महत्वपूर्ण संस्कार छुपे हुए
है यह जन्म जन्मान्तर का अथार्त सात जन्मों का नाता है। विवाह से पहले प्यार प्रथम होता है ,विवाह के बाद प्राथमिकताए बदल जाती है। पति-पत्नि मन-प्राण से दूध में पानी की तरह घुल जाते है। धीरे -धीरे इस संबधो में परिपक्वता आ जाती है। पति-पत्नि नौकरी पेशा है तो दोनों इतने व्यस्त हो जाते है कि उन्हें अपने वैवाहिक संबधों कंे बारे में सोचने का समय ही नहीं मिलता ,लेकिन इन संबधो को मजबूत बनाने के लिए निरतंर कोशिश करने की आवश्यकता है।
विवाह के बाद जिंदगी में जब अल्पविराम आ जाये तो  इन नुस्खो को अपनाकर दांपत्य जीवन में इन्द्रधनुषी रंग भर सकते है।


ऽ आपसी विश्वास ही विवाह की सफलता  की कुंजी है,इस रिश्ते में गर्माहट आपसी समझदारी व विश्वास के बल पर आ सकती है।

ऽ दोनो एक दूसरे  को उसके नजरिये से समझे इससे टकराव व विरोध की स्थिति पैदा नही होगी ।


ऽ एक दूसरे की भावनाओं को समझने में दांपत्य की सफलता छिपी है ,एक दूसरे की खुशी को अहमियत दे,एक दूसरे को दुख न पहुचे ,छोटी -छोटी बातो को तुल न दे वरन दोस्त बनकर एक दूसरे का सहयोग करे ।


ऽ एक दूसरे के व्यक्तित्व को उसकी खुबियो व खामियो के साथ स्वीकार करे ,सराहना व सम्मान करे क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता है ।


ऽ शिकायतो से दांपत्य जीवन में कडवाहट घुलती है ,इसलिए हमेशा जीवन साथी की प्रंशसा के अवसर तलाशिये ।

ऽ दोनो एक दूसरे के परिवार को अपना समझकर अपनत्व व सम्मान दे ।

ऽ जीवन साथी के आत्म-सम्मान को बढाने की कोशिश करे, न की ठेस पहुचाने की ।

ऽ दोनो एक दूसरे की रूचियों को समान महत्व देते हुए उसे प्रोत्साहित करे ।

ऽ यदि नौकरी पेशा दंपती है तो घरेलु व अन्य कार्यो में एक दूसरे का सहयोग करे ।

ऽ दोनो परिवार की समस्या को आपसी विचार विर्मश के द्धारा समाधान करने की कोशिश करे ।

ऽ भावुकता में बहकर भूलकर भी अपने शादी के पूर्व संबधों की चर्चा न करे ।कभी -कभी ईमानदारी से सब कुछ बता देने का परिणाम बहुत बुरा हो सकता है।

ऽ नौकरी पैशा दंपती अपने पुरूष या महिला कर्मियो से अपने जीवन साथी से शालीनता पूर्वक मिलाए व संबधो में मर्यादा बनाए रखे।

ऽ तृप्त यौन कुदरत की सर्वाधिक आंनदायी क्रिया व सुखी दांपत्य की कुंजी है, इसे नजरअंदाज करना दांपत्य संबधो को कमजोर करने जैसा है। दांपत्य को पुरा समय दे ताकि एक दूसरे प्रति विवाह के बाद भी शारीरिक आकर्षण बना रहे ।

ऽ झगडे या बहस की स्थिति मे गलती का अहसास होने पर साॅरी प्यार की अभिव्यक्ति के साथ कहिये ।

ऽ दांपत्य की सफलता के लिए हर पल इस रिश्ते को नवीनता के साथ जीये और अपने साथी को सरप्राइज दे। जैसे खान-पान ,पहनावा ,सौदर्य, घर की सजावट, घूमने का कार्यक्रम बनाके,बचत करक, उपहार देके ।

ऽ एक दूसरे को जन्मदिन,शादि की वर्षगांठ या अन्य सफलता के अवसर पर तोहफा या प्यार भरी बधाई देने में कंजूसी न दिखाये ।

ऽ संवादहीनता दांपत्य जीवन को नीरस बना देती है इसलिए दोनो उन सार्थक मुद्दों घर,समाज राजनीति पर जिनसे आप जुडे है विचार विर्मश करे ।


ऽ शक्की मिजाज दांपत्य में दरार पैदा कर सकता है,इसलिए छोटी-छोटी बातो में शक को बीच में न आने दे ।

ऽ बहुत ज्यादा नजदीकी दूरी पैदा कर सकती है,इसलिए दांपत्य को आंनद-दायक व सुखी बनाने के लिए समय समय पर कुछ दिनों के लिए एक दूसरे से दूर रहे ,लेकिन दूरी इतनी लम्बी न करे की वियोग का मारा साथी आपको छोड कही और भटक जाय।

ऽ दांपत्य में लज्जा अथवा संकोच ,दुराव को कोई स्थान नहीं होना चाहियं।

           प्यार के धरातल से विवाह की सीढीया चढने में वक्त लग सकता है,लेकिन वैवाहिक बंधन की पवित्र उॅचाई से तलाक की गहरी खाई मे कूदने में जराभी वक्त नहीें लगता है, इसलिए रिश्ते में हम दो होते हुए भी हम एक है,इस बात को हमेशा दिमाग में रखनी चाहिए क्योंकि दांपत्य का रिश्ता सृष्टि का संुदरतम् रिश्ता है ,छोट-मोटी  समस्या तो हर वैवाहिक जीवन में आती है इन समस्याओं से निकलना ही जिंदगी है, हमेशा इस रिश्ते में प्यार, सम्मान, गरिमा व भरोसे की मजबूत दीवार को कायम रखे ।










    श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत

                        








 

शनिवार, 31 दिसंबर 2011

महिलाए ही नसबंदी क्यो कराये ,पुरूष क्यों नहीं

     टीक टीक चलती जनसंख्या की घडी हमें रोज इस बात के लिए आगाह करती है कि बेतहाषा बढती जनसंख्या विस्फोटक की गति को रोक लगाने के लिए राष्ट्ीय परिवार कल्याण कार्यक्रम द्धारा जगह-जगह नियमित नसबंदी f’kविर लगाये जाते है।पुरूष और महिला नसबंदी ही एक मात्र परिवार नियोजन का स्थाई समाधान है।
      जहां एक और महिलाओं के षरीर की रचना जटिल होती है।अधिकाष महिलाए जनन मू़त्र संस्थान के संक्रमण, ल्युकोरिया, एनिमिया और आॅस्टियोपोरोसिस से ग्रसित होती है।ऐसी स्थिति में उनको उनका बच्चा जनने का दायित्व बताकर नसबंदी कराइ्र्र जाती है।पुरूष प्रधान समाज में महिलाए आम तौर पर चुुपचाप यह स्वीकार कर आॅपरेषन करा लेती है क्योंकि नसबंदी न कराने पर गर्भवती होने का व प्रसव पीडा पुनः भोगने का डर उसे हमेषा बना रहता है।महिला न कराती है तो उसे गृह कलह का भी सामना करना पडता है। ऐसी विडम्बना में नारी के पास एक ही उपाय है कि वह सर्मपण कर दे और अपनी नसबंदी करा दे।
      जबकि इसके विपरित पुरूष अपनी नसबंदी नही करवाकर अपनी स्वेच्छा से सभी आनन्द लेना चाहता,उसको यह मिथ्या गुमान रहता है कि बच्चे पैदा करने का काम महिलाओं का ही है जब की वह पूर्ण रूप से बीजारोपण का जिम्मेदार  वह स्वयं है, अतः दोनो की समान भागीदारी आन पडती है ऐसे में इस तरह के कुठित विचारो से समाज मे इस कार्यक्रम के प्रति अलग ही नजरिया बन गया है ।कई पुरूष यह सोचते है कि नसबंदी कराने से उनकी मर्दानगी चली जायेगी और यौन क्षमता क्षीण हो जायेगी, जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से पुरूष नसबंदी कुछ ही मिनटो का आउटडोर प्रोसिजर है।आजकल बीना टीका लगाये पुरूष नसबंदी होने का प्रचलन बन गया है। जो कोई भी पुरूष चलते फिरते कभी भी करा सकता है। इसे चिकित्सक लंच ब्रेक आपरेषन भी कहते है।
 परिवार की खुषहाली  के लिए पति-पत्नि दोनों का समान अधिकार है तथा वे दोनो ही संयुक्त रूप से जिम्मेदार है।पुरूष नसबंदी बहुत ही सरल,सुलभ और व्यवहारिक आॅपरेषन है,ऐसे में महिलाओं को आगे नसबंदी कराने धकेल देना कहा तक न्याय संगत है।
 प्रषेकः-
श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
  महादेव कालोनी
 बाॅसवाडा राज
      हमारे देष में छोटे परिवार की अवधारणा पर जोर लगाना होगा।  ग्रामीण और अनपढ महिलाये नौ महिनों की गर्भावस्था और प्रसव वेदना के बाद षिषु पालन का बोझ जिन्दगी भर उठाती रहती है।अधिकाष करीबन 99प्रतिषत मामलों में महिलाऐ ही नसबंदी ट्यूवेक्टामीद्ध कराती है
पुरूष  नसबंदी वेसेक्टोमीद्ध करीब करीब कम ही देखी जाती है।       अस्पताल में डिलेवरी के बाद चिकित्सक मरिज की रजाबंददी से नसबंदी करते है,जो एक अच्छी बात है, जबकि पुरूष कभी भी नसबंदी के लिए राजी नही होते है,वे महिलाओं को आगे धकेल देते है कि बच्चा पैदा करना पत्नि का काम है अतः बच्चे पैदा करने वाली फैक्ट्ी पर नसबंदी रूपी ताला लगा दिया जाना ही परिवार नियोजन है और यह काम पत्नि का है।

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

महिलाए ही नसबंदी क्यो कराये ,पुरूष क्यों नहीं

            टीक टीक चलती जनसंख्या की घडी हमें रोज इस बात के लिए आगाह करती है कि बेतहाशा  बढती जनसंख्या विस्फोटक की गति को रोक लगाने के लिए राष्ट्ीय परिवार कल्याण कार्यक्रम द्धारा जगह-जगह नियमित नसबंदी f’kfoj  लगाये जाते है।पुरूष और महिला नसबंदी ही एक मात्र परिवार नियोजन का स्थाई समाधान है।

      हमारे देश में छोटे परिवार की अवधारणा पर जोर लगाना होगा।  ग्रामीण और अनपढ महिलाये नौ महिनों की गर्भावस्था और प्रसव वेदना के बाद f’k’kq  पालन का बोझ जिन्दगी भर उठाती है।अधिका’k   करीबन 99प्रतिषत मामलों में महिलाऐ ही नसबंदी ;ट्यूवेक्टामी  कराती है,पुरूष  नसबंदी ;वेसेक्टोमी करीब करीब कम ही देखी जाती है।

       अस्पताल में डिलेवरी के बाद चिकित्सक मरिज की रजाबंददी से नसबंदी करते है,जो एक अच्छी बात है, जबकि पुरूष कभी भी नसबंदी के लिए राजी नही होते है,वे महिलाओं को आगे धकेल देते है कि बच्चा पैदा करना पत्नि का काम है अतः बच्चे पैदा करने वाली फैक्ट्ी पर नसबंदी रूपी ताला लगा दिया जाना ही परिवार नियोजन है और यह काम पत्नि का है।

      जहां एक और महिलाओं के ’kरीर की रचना जटिल होी है।अधिका’k महिलाए जनन मू़त्र संस्थान के संक्रमण, ल्युकोरिया, एनिमिया और आॅस्टियोपोरोसिस से ग्रसित होती है।ऐसी स्थिति में उनको उनका बच्चा जनने का दायित्व बताकर नसबंदी कराइ्र्र जाती है।पुरूष प्रधान समाज में महिलाए आम तौर पर चुुपचाप यह स्वीकार कर आॅपरे’kन करा लेती है क्योंकि नसबंदी न कराने पर गर्भवती होने का व प्रसव पीडा पुनः भोगने का डर उसे हमे’k  बना रहता है।महिला न कराती है तो उसे गृह कलह का भी सामना करना पडता है। ऐसी विडम्बना में नारी के पास एक ही उपाय है कि वह सर्मपण कर दे और अपनी नसबंदी करा दे।

      जबकि इसके विपरित पुरूष अपनी नसबंदी नही करवाकर अपनी स्वेच्छा से सभी आनन्द लेना चाहता,उसको यह मिथ्या गुमान रहता है कि बच्चे पैदा करने का काम महिलाओं का ही है जब की वह पूर्ण रूप से बीजारोपण का जिम्मेदार  वह स्वयं है, अतः दोनो की समान भागीदारी आन पडती है ऐसे में इस तरह के कुठित विचारो से समाज मे इस कार्यक्रम के प्रति अलग ही नजरिया बन गया है ।कई पुरूष यह सोचते है कि नसबंदी कराने से उनकी मर्दानगी चली जायेगी और यौन क्षमता क्षीण हो जायेगी, जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से पुरूष नसबंदी कुछ ही मिनटो का आउटडोर प्रोसिजर है।आजकल बीना टीका लगाये पुरूष नसबंदी होने का प्रचलन बन गया है। जो कोई भी पुरूष चलते फिरते कभी भी करा सकता है। इसे चिकित्सक लंच ब्रेक आपरे’kन भी कहते है।

परिवार की खु’kहाली  के लिए पति-पत्नि दोनों का समान अधिकार है तथा वे दोनो ही संयुक्त रूप से जिम्मेदार है।पुरूष नसबंदी बहुत ही सरल,सुलभ और व्यवहारिक आॅपरेषन है,ऐसे में महिलाओं को आगे नसबंदी कराने धकेल देना कहा तक न्याय संगत है।

  प्रषेकः-
  श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
 महादेव     काॅलोनी
                                            बाॅसवाडा राज

रविवार, 27 नवंबर 2011

नई दुल्हन -मैं, माॅव मायके से बचे


                                                             

                       विवाह के बाद इस गाने के साथ ’बाबुल की दुआॅए लेती जा:ःःःःःःःमायके की कभी याद न आये,दुल्हन की विदाई होती है।दुल्हन भी दिल में कई सपने संजोये व हसरत लिए सुसराल में कदम रखती है,लेकिन सुसराल में अपने पिया की प्रिया बनने के साथ सास-ससुर की दुलारी बहु, देवर व नंनद की प्यारी मां स्वरूपा भाभी भी बनना हैै।नई दुल्हन सुसराल वालो के लिए आकर्षण का केन्द्र बिन्दु होती है,समस्त परिवार की निगाहें उसके चाल,व्यवहार ,हॅसने व उठने -बैठने  पर होती है, ऐसे समय में नई दुल्हन को कुछ बातों को भुलना होगा कुछ को अपनाना होगा।
 सर्वप्रथम नई दुल्हन को अपने अहम् को त्यागकर ‘मै’ के स्थान पर हम को अपनाना होगा।

  माॅ का स्थान सुसराल में सासुमां को देना होगा।

 मीठी वाणी से सबके दिलो पर राज करना होगा।
 बात-बात मेें मायके के गुणगान न करके सुसराल को प्राथमिकता देनी चाहिये।
 नई दुल्हन को सुसराल के तौर-तरिको पर टीका-टिप्पणी न करके धीरे-धीरे इसे समझने ,अपनाने व जानने की कोशिश करनी चाहिए, नापंसद होने पर समय व माहौल के साथ बदलने की कोशिश करनी चाहिए।
 नई दुल्हन को अपनी चाल व आवाज को संयमित रखकर चलना और बोलना, न की हाथों को हिलाते हुए तेज-तेज स्वर में बोलना चाहिए।
 मर्यादित व शिष्टतापूर्ण व्यवहार से सुसराल वालो को अपना बनाना चाहिए।
 नई दुल्हन सुसराल में सिर पर पल्लू  लेना न भूले, इसे अपनी पहचान और सुसराल की शान समझे ।
 नई दुल्हन सुसराल में प्यार के बदले प्यार बाॅटे ,न की सुसराल वालो के प्यार का अनुचित फायदा उठाकर,गलत व्यवहार करे।
 पति की बाॅस बनने की कोशिश न करे, बल्कि अपने प्यार व व्यवहार से धीरे-धीरे उनका विश्वास व दिल जीते ।

 सुसराल में नौकरो के साथ भी नम्रता पूर्ण व्यवहार रखे।
 नई दुल्हन को सुसराल में छोटे-बडे रिश्तो की अहमियत को समझते हुए,उनके अनुसार आदर ,प्यार दुलार और सम्मान देना चाहिए।


 
 सुसराल वालोे से लेना ही नहीं ,देना भी सीखे ।

 सुसराल में खुशनुमा माहौल के लिए त्याग करना पडे तो करे और हमेशा सहयोग के लिए तैयार रहे

 नई दुल्हन हमेशा इस बात को समझे कि आपका पति पहले किसी का बेटा   और भाई है,इस पर हक जताकर माॅ व बहन के प्यार को ठेस न पहुचाए।
 सास-सुसर को दिल से माता-पिता समझे और माता-पिता की तरह सम्मान  और प्यार दें।
इन बातों का ध्यान रखकर नई दुल्हन सुसराल में अपना स्थान बनाकर सबकी दुलारी बहु ,भाभी व प्रिया का खिताब जीत सकती है।
            


              प्रेषकः-
              श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
              अस्पताल चैराहा
              महादेव कॅंालोनी
     बाॅसवाडा राज