मंगलवार, 14 जुलाई 2020
वीरा
सोमवार, 13 जुलाई 2020
शंख उद्घोष भी प्राणायाम है|
शंख में हमें प्रकृति से मिला एक अनमोल उपहार है यह समुंद्र से प्राप्त होता है शंख की आकृति व पृथ्वी के संरचना समान है इसका महत्व प्राचीन काल से धार्मिक कार्यों में पूजा में ज्योतिष में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को दूर करने में वास्तु में होता है इससे सुंदर सुंदर उपयोगी व कलात्मक चीजें बनाई जाती है |नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार शंख बजाने से खगोलीयऊर्जा का उत्सर्जन होता है जो जीवाणुओं कानाशकर लोगों में ऊर्जा व शक्ति का संचार करता है शंख प्रमुखतया तीन प्रकार के होते हैं वामा वृत्तिदक्षिणावर्ती व् मध्यवर्ती|
धार्मिक कार्यों को करने से पहले शंख ध्वनि
उत्पन्न करना हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण विशेषता है कहा जाता है कि इससे वातावरण की अशुद्धियां दूर होती है नकारात्मक ऊर्जा खत्म
होती है वातावरण में चेतन्यता
आती है और पूजा सार्थक होती है रज तत्व तम तत्व
खत्म कर सत तत्व का प्रवाह होता है विष्णु पुराण के अनुसार शंख लक्ष्मी का सहोदर होता है समुंद्र मंथन पर 14 रत्ना प्राप्त हुए
थे |आठवें स्थान पर शंखमिला था कहा जाता है कि जिस घर में शंख होता है वहा महालक्ष्मी
का वास होता है सुबह शाम शंख की ध्वनि करने से वास्तु दोष दूर होता
है घर में नकारात्मकता दूर होकर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है| तानसेन ने शंख बजाकर गायन की शक्ति प्राप्त की थी| आधुनिक युग में जीवन
की आपाधापी व भागदौड़ वाली जिंदगी में मनुष्य कई बीमारियों से ग्रसित हो गया है स्वस्थ होने के
लिए उसे डॉक्टरों दवाइयों की शरण में आना पड़ता है यदि व्यक्ति स्वयं स्वस्थय रहना चाहता है तो शंखनाद, शंख ध्वनि करना, शंख बजाना ऐसी क्रियाएं जिससे अनेक प्रकार की बीमारियों बचा जा सकता है| वैज्ञानिकों के
अनुसार शंखनाद मैं प्रदूषण को दूर करने की अद्भुत क्षमता है| शंख की आवाज जहां तक
जाती है वहां तक कई रोगों के किठाणु या तो खत्म हो जाते हैं या निष्क्रिय
हो जाते हैं| शंख बजाना भी एक प्राणायाम है क्योंकि से बजाने से योग की कई
क्रियाएं एक साथ हो जाती है
कुंभक रेचक ध्यान उज्जाई प्राणायाम| फेफड़ों को पूरी तरह
से श्वास से भरकर व बिना सांस लिए गर्दन को उपर करके के शंख बजाना चाहिए| नेत्र बंद, ध्यानावस्था व ईश्वर
भक्ति में निमग्न होकर शंख
बजाने से हमारी सुषुम्ना नाड़ी जागृत होती है
हमें ईश्वर शक्ति का अप्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है शरीर में शाश्वत ऊर्जा का
संचार होता है|
शंख बजाने से कई चमत्कारिक स्वास्थ्य लाभ होते हैं अनेक रोगों से निवृत्ति होती है|
1. फेफड़ों का अच्छा व्यायाम है उसे बजाने से हमारे फेफड़े पुष्ट होते हैं अस्थमा दमा और एलर्ज छुटकारा मिलता है | श्वास संबंधी बीमारियों से बच सकते हे
2. शंख ध्वनि हमारे दिमाग व स्नायु तंत्र को सक्रिय करते हैं|
3. मनोरोगी के लिए शंख बजाना एक चमत्कारिक उपाय है क्योंकि इससे उत्तेजना कम होती है और मन और मस्तिष्क एकदम सहज व शांत हो जाता है
4. ह्दय रोगों में लाभकारी हे इससे ह्दय की मांसपेशियां मजबूत
होती है|
5. ब्लड प्रेशर का रामबाण इलाज है|
6. शंखनाद से स्मरण शक्ति बढ़ती है|
7. Vocal code सही होती है और thyroid
से
छुटकारा मिलता है|
8. बच्चों का तुतलानाना शंख बजाने से दूर हो जाता है |इससे बच्चों को
अनेको फायदे हैं
शंख
बजाने से चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती| प्राकृतिक आभा स्वत दिखाइए
देती है|
सावधानियां :-
गर्भवती व् स्तनपान कराने वाली माताओं को शंख नहीं बजाना चाहिए शंख बजाने से नाभि पर प्रेशर आने से गर्भ गिरने
की संभावना रहती है| इससे दूध की मात्रा पर प्रभाव पड़ता हे| आइए शंख वादन को
दिनचर्या में शामिल कर जीवन को स्वस्थ व स्फुर्तिवान बनाएं
भुवनेश्वरी मालोत
बांसवाडा(राज.)
गुरुवार, 2 जुलाई 2020
शनिवार, 9 मार्च 2019
बुधवार, 9 अगस्त 2017
शनिवार, 17 जून 2017
आज गर्भ में पल रही बेटियों की पहचान करके उस कोख को ही उजाड दिया जा रहा है और डाॅंक्टर दौलत का जुगाड बिठा रहे है और इस पाप में हम सभी शामिल हो रहे है।आज संसार के संचार का आधार बेटिया ही है।इनका जन्म दुर्गा सरस्वती के रूप में हुआ है ।जिन्होने पिछले जन्म में नेक कार्य किये हो वही इस जन्म में बेटियो का उपहार पाते है आज बेटिया हर रिश्ते डोर है घर और बाहर दोनो जगह अपना राॅल अच्छी तरह निभा रही है जब कभी घर,परिवार और देश पर संकट के बादल छाते है तो बेटिया माॅ दुर्गा का रूप धारण कर उसका डट कर मुकाबला करती है फिर क्यों रोज-रोज बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता है यह हम सब के लिए विचारणीय पहलू है।आप बेटियों को कोख में ही मार कर एक हिंसक अपराधी की श्रेणी में अपना नाम दर्ज न करे ।
बेटी है तो कल है,
बेटी है तो जीवन में मुस्कान है,
बेटी है तो आशाओं का संसार है।
भुवनेशवरी मालोत
शनिवार, 3 जून 2017
*प्रारंभ* : तीन बार ओ३म् लंबा उच्चारण करें।
*गायत्री - महामंत्र* : ओ३म् भूर्भुव: स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।।
*महामृत्युंजय - मंत्र* : ओ३म् त्र्यंबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम। उर्वारुकमिव बंधनामृत्योर्मुक्षिय माऽमृतात्।।
*संकल्प - मंत्र* : ओ३म् सह नवावतु। सह नोै भुनक्तु। सह वीर्य करवावहै।तेजस्विनावधीतमस्तु।मा विद्विषावहै।।
*प्रार्थना - मन्त्र* ओ३म् ॐ असतो मा सद् गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्माऽमृतं गमय। ओ३म् शान्ति: शान्ति: शान्ति:।।
*सहज - व्यायाम : यौगिक जौगिंग*
(समय- लगभग 5 मिनट) तीन प्रकार की दौड़, तीन तरह की बैठक, चार साइड में झुकना, दो तरह से उछलना, कुल 12 अभ्यास।
सूर्य - नमस्कार 3 से 5 अभ्यास (समय- 1से 2 मिनट) 12 स्टेप( 1 प्रणाम आसन, 2 ऊर्ध्व हस्तासन, 3 पादहस्तासन, 4 दाएं पैर पर अश्वसंचालन, 5 पर्वतासन, 6 साष्टांग प्रणाम आसन, 7 भुजंगासन, 8 पर्वतासन, 9 बाएं पैर पर अश्वसंचालन, 10 पादहस्तासन, 11 ऊर्ध्वहस्तासनसन, 12 प्रणाम आसन।
*भारतीय - व्यायाम* : मिश्रदण्ड अथवा युवाओं के लिए बारह प्रकार की दण्ड व आठ प्रकार की बैठकों का पूर्ण अभ्यास (समय- लगभग 5 मिनट) 1 साधारण दंड, 2 राममूर्ति दंड, 3 वक्ष विकासक दंड, 4 हनुमान दंड, 5 वृश्चिक दंड भाग 1, 6 वृश्चिक दंड भाग 2, 7 पार्श्व दंड, आठ चक्र दंड, 9 पलट दंड, 10 शेर दंड, 11 सर्पदंड, 12 मिश्र दंड। बैठक 1 अर्ध बैठक, 2 पूर्ण बैठक, तीन राममूर्ति बैठक, चार पहलवानी बैठक भाग 1, 5 पहलवानी बैठक भाग 2, 6 हनुमान बैठक भाग 1, 7 हनुमान बैठक भाग 2, 8 हनुमान बैठक भाग 3।
*मुख्य आसन*:
*बैठ कर करने वाले आसन*: मंडूकासन (भाग 1 व 2) शशकासन, गोमुखासन,वक्रासन।
*पेट के बल लेट कर करने वाले आसन*: मकरासन भुजंगासन (भाग 1 2 व 3) शलभासन ( भाग 1 व 2) *पीठ के बल लेटकर करने वाले आसन*: मर्कटासन (1, 2, 3), पवनमुक्तासन (भाग 1 व 2) अर्ध्द हलासन, पादवृतासन, द्वि- चक्रिकासन (भाग 1 व 2) व *शवासन (योगनिंद्रा)*। समय 10 से 15 मिनट, प्रत्येक आसन की आवर्ती- 3 से 5 अभ्यास)
*सूक्ष्म - व्यायाम* : हाथों, पैरों, कोहनी, कलाई, कंधों के सूक्ष्म व्यायाम व बटरफ्लाई इत्यादि लगभग 12 प्रकार के सूक्ष्म व्यायाम, प्राणायाम के पहले अथवा बीच में भी किए जा सकते हैं। प्रत्येक अभ्यास की आवृत्ति 5 - 10 बार (समय लगभग 5 मिनट)।
*मुख्य प्राणायाम एवं सहयोगी क्रिया*
*2. कपालभाति - प्राणायाम* : 1 सेकंड में एक बार झटके के साथ श्वास छोड़ना कुल समय 15 मिनिट ।
*3. बाह्य - प्राणायाम* : त्रिबन्ध के साथ श्वास को यथा शक्ति बाहर निकाल कर रोक कर रखना 3 से 5 अभ्यास।
*(अग्निसार - क्रिया)* : मूल- बन्ध के साथ पेट को अंदर की ओर खींचना व ढीला छोडना़ 3 से 5 अभ्यास।
*4. उज्जायी - प्राणायाम* : गले का आकुञचन करते हुए श्वास लेना यथाशक्ति रोकना व बाईं नासिका से छोड़ना 3 से 5 अभ्यास।
*5. अनुलोम - विलोम प्रणायाम*: दाईं नासिका बंद करके बाईं से श्वास लेना व बाईं को बंद करके दाईं से श्वास छोड़ना वापिस दाईं से श्वास भरना वह बाईं से छोड़ने का क्रम करना, एक क्रम का समय 10 से 12 सेकण्ड - अभ्यास समय 15 मिनट।
*6. भ्रामरी प्रणायाम* : आंखों व कानों बंद करके नासिका से भ्रमर की तरह गुंजन करना - 5 से 7 बार।
*7. उद् गीथ - प्राणायाम* दीर्घ स्वर में ओ३म् का उच्चारण 5 से 7 अभ्यास।
*8. प्रणव - प्राणायाम (ध्यान)* : आंखें बंद करके श्वसों पर या चक्रों में ॐ का ध्यान मुद्रा में ध्यान करना - समय कितना उपलब्ध हो।
*देशभक्ति - गीत* : समय लगभग 2-3 मिनट।
स्वाध्याय - चिन्तन : जीवन दर्शन, स्वाभिमान संकल्प - पत्र, ग्राम निर्माण से राष्ट्र निर्माण व संगठन के अन्य प्रसांगिक साहित्य का क्रमबद्ध वाचन समय लगभग 5 मिनट।
*एक्यूप्रेशर* : समय की उपलब्धता अनुसार।
*समापन* : सिंहासन, हास्यासन, 3-3 अभ्यास (समय - 2 मिनट)
*शान्ति - पाठ* : ओ३म् द्यौ: शान्ति रान्तरिक्ष शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरारोषधयःशान्तिः। वनस्पतयः शान्ति र्विश्वे देवाः शान्तिब्रर्ह्म शान्तिः सर्वगृवम शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ।। ओ३म् शान्तिःशान्तिःशान्तिः।।
*विशेष*: योगाभ्यास के क्रम में व्यायाम, सूक्ष्म - व्यायाम व आसनों को पहले या बाद में भी किया जा सकता है। शीतकाल में व्यायाम व आसन पहले तथा प्राणायाम बाद में एवं ग्रीष्म काल में प्रणायाम पहले करवाकर व्यायाम व आसन बाद में कर सकते हैं। भुवनेश्वरी मालोत जिला संयोजित महिला पतंजलि योग समिति बांसवाडा