रविवार, 6 अक्तूबर 2013

नवरात्री पर्व पर आओ हम संकल्प ले बेटा नहीं, बेटी चाहिये







नवरात्री पर्व पर आओ हम संकल्प ले बेटा नहीं, बेटी चाहिये


                                                               
नवरात्री में नौ दिन मातृ षक्ति की पूजा की जाती है और देवी षक्ति के रूप में उसकी उपासना की जाती है। नारी जिसे करूणा की प्रतिमूर्ति मातृत्व की साकार प्रतिमा सृजन व धेर्य की देवी माना जाता है, वहाँ इसी नारी षक्ति की भू्रण में ही हत्या की जा रही है। दरिन्दगी का यह खेल सदियों से चला आ रहा है। पहले नवजात कन्या को नमक चटाकर या घर के पिछवाडे छोड़कर मौत के मुंह में सुला दिया जाता था। अब यह खेल कन्या भू्रण हत्या के रूप में जारी है। ऐसा करके हम पाप व अधर्म कर रहे है। कोई भी धर्म चाहे हिन्दु हो या मुस्लिम हो या सिख-इसाई हो कन्या की हत्या की इजाजत नहीं देता है। यदि हम कन्या भू्रण हत्या करते रहे तो नवरात्री में पूजन के लिये कन्या कहाँ से लायेंगे, यह एक विचारणीय पहलू है।
बेटे के जन्म पर खुषियाँ मनाई जाती है क्योंकि बेटा ही बुढ़ापे का सहारा बनेगा। बेटा ही हमारे वंष को आगे बढ़ायेगा, लेकिन वे भूल जाते है कि अगर बेटिया ही नहीं होगी तो हमारा वंष आगे कैसे बडेगा। हमारे मन में बेटी के जन्म लेते ही यह भाव गहरे बैठ जाता है कि बेटी तो पराई होती है उसको पढ़ाओं गृहस्थी के गुर सिखाओं, दहेज देकर सुसराल भेज दो ,इसलिए एक गरीब पिता के पैरो में दामाद ढूढ़ते ढूढ़ते छाले पड़ जाते है इसलिये उन्हे बेटी बोझ समान लगती है।
बेटा तो बाप का नाम रोषन करेगा, ऐसी कुठित मानसिकता ने कन्या भू्रण हत्या जैसा जघन्य अपराध करने की मजबूर किया है। जबकि आज हम यह जानते हुए भी कि बेटे से अधिक सेवा बेटिया ही माता पिता की करती है और आज बेटिया स्वयं अपनी प्रतिभा व मेहनत के बल पर चारो दिषाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज कर रही है। फिर भी हम कन्या पैदा नहीं करना चाहते, हम झूठा आवरण ओढे़ हुए है भीतर कुछ, बाहर कुछ।
यह भी एक विचारणीय पहलू है कि यदि हम कन्या भू्रण की हत्या कर देगे तो इस समाज का, परिवार का, देष का रूप कैसा होगा ? जब इस पृथ्वी पर बेटिया ही नहीं रहेगी तो कहाँ से आयेगी आपके बेटे के लिये सुन्दर सुषील बहू। यदि आपके मन में बेटे की कामना है तो बहू की कामना भी होगी इसके लिये बेटियों को भ्रूण में ही बचाना होगा। उसको अच्छे संस्कार व षिक्षा देकर हमारे देष, समाज व परिवार के सुन्दर भविषय की आधारश्षीला तैयार करनी होगी। ‘‘दूधो नहाओं, पूतो फलो’’ के आषीर्वाद को बदलना होगा यदि पूत ही पैदा होगे तो उसके लिये सुन्दर सुषील बहू कहाँ से आयेगी ? कल्पना करे जिस समाज में पुरूष की पुरूष होगे वह समाज कैसा होगा। धर्म, दया, प्रेम ममता सहयोग की भावनाऐं नारी के कारण ही है। इस समाज में जीवित है नारी नहीं तो कुछ नहीं ............
आओं हम सब बहने इस नवरात्री में कन्याओं का पूजन करके एक संकल्प ले कि हम कन्या भू्रण हत्या या कन्या हत्या न करेंगे न ही करने देंगे, न ही इसमें भागीदार बनेगे। आपके द्वारा किया गया एक छोटा सा प्रयास आपके जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार करेगा और आपके घर-परिवार की बगिया खुषियों के फूलों से महकती रहेगी।
                                               
                                       प्रेषक -
                                      भुवनेष्वरी मालोत
       त्रयम्बकेष्वर महादेव
                                       काॅलोनी बांसवाड़ा
                                        (राज.)          


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें