शनिवार, 24 मार्च 2012
बुधवार, 21 मार्च 2012
‘सिंहासन से चेहरा निखारे’
योग जीवन जीने की कला है।योग च्रित की वृतियों का निरोध है।योगासन के द्धारा भी स्त्री सुलभ चेहरे के सौदर्य को बरकरार रखा जा सकता है।सुन्दर व्यक्तित्व के लिए सुन्दर चेहरा महत्वपूर्ण मानदंड है।चेहरा मन का दर्पण होता है चेहरे के हाव भाव से ही व्यक्ति की मानसिक स्थिति का पता चल जाता हैे।आमधारणा है कि सुन्दर चेहरा पैदा नहीं होता है बल्कि बनाया जाता है। हमारे चेहरे पर 72 माॅसपेषिया होती है।चेहरे की पेषिया बहुत जटिल होती है और बहुत ही भिन्न -भिन्न दिषाओं की जाती है।चेहरे को निखारने के लिए रोज चेहरे की कसरत जरूरी है।
ष्योगासन मे ंिसंहासन भी एक ऐसा आसान है जिससे चेहरे की सुन्दरता में चार चाॅद लगाये जा सकते है। इसमें संभव हो तो सूर्याभिमुख करके व्रजासन में बैठकर,दोनो पैरो के घुटने बीच थोडा फासला रखकर दांेनो हाथो के पंजो को पीछे की ओर कर के हाथों को सीधा रखे व एक साथ साॅस भरकर ,जीभ को अधिक से अधिक बाहर की ओर निकालते हूए भूमध्य मेें देखते हुएष्ष्वास को बाहर निकालते हुए जोर से सिंह की तरह गर्जना करनी है ऐसा करते समय कमर सीधी हो ।यह क्रिया तीन बार दोहराये ,ऐसा करने के बाद गले की दोनों हाथों से मालिष करे और लार को अन्दर निगल ले। इससे गले की खराष की समस्या से भी निजात पा सकते है।
इस आसन से चेहरे की माॅसपेषिया सक्रिय हो जाती है।इस आसन से चेहरे व सिर के भाग की माॅसपेषिया का रक्त संचार बढता हैैे।उदर भाग की माॅसपेषिया का अधिक प्रयोग होने से फेफडो और गले के भाग का अधिक व्यायाम होता है।चेहरे पर चमक आती है व झुरियो से भी बचाव हो सकता है इससे तनाव दूर होता है चेहरा प्रफुल्लित लगने लगता है।साथ ही इस आसन से टाॅसिल,थायरायड,अस्पष्ट उच्चारण कान के रोग,साथ ही जो बच्चे तुतलाकर बोलते है,उनके लिए भी महत्वपूर्ण है।
महषि पंतजलि ‘नियमित रूप से योगासन कर अप्सराए और गंधर्व कन्याए अपना त्रिभुवन मोहक रूप यौवन बनाये रखती है।’ इसमें सिंहासन का भी प्रमुख स्थान है।क्योंकि स्त्री के लिए सिंहासन एक वरदान है इसको नियमित रूप से करने से चेहरे पर अर्पूव सौंदर्य लाया जा सकता है।
श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत
जिला संयोजिका
पंतजलि महिला योग समिति
बाॅसवाडा राज0
शुक्रवार, 16 मार्च 2012
ऐलोवेरा स्वास्थ्य व सौदर्य का रक्षक है
aloe vera |
घी के समान तापच्छिल पीत मज्जा होने से इसे घृत कुमारी अथवा घीकुंआर कहा जाता है।एलोवेरा भारत में ग्वारपाटा या धृतकुमारी हरी सब्जी के नाम से जाना जाने वाला काॅटेदार पतियों वाला पौधा,जिसमें कई रोगों के निवारण के गुण कूट-कूट कर भरे हुए है।आयुर्वेद में इसे महाराजा और संजीवनी की संज्ञा दी गयी है।इसमें 18 धातु,15 एमीनो एसीड और 12 विटामिन होते है।यह खून की कमी को दूर करता है,षरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है,इसे त्वचा पर भी लगाना भी लाभदायक है ।इसे 3से4 चम्मच रस सुबह खाली पेट लेने से दिनभर षरीर में ष्षक्ति व चुस्ती-स्फूति बनी रहती है साथ ही यह जोडो की सूजन में व माॅस पेषियों को सक्रिय बनाये रखने के लिए सहायक है।
जलने पर,अंग के कही से कटने पर,अदरूनी चोटो पर इसे लगाने से घाव जल्दी भर जाता है क्योंकि इसमें एंटी बैक्टेरिया और एंटी फॅगल के गुण होते है।मधुमेह आदि के इलाज में भी इसकी उपयोगिता साबित हो चुकी है क्योंकि एलोवेरा रक्त मे ष्षर्करा की मात्रा को भी नियत्रिंत करता है।बवासीर ,,गर्भाषय के रोग, पेट की खराबी,जोडो का दर्द, त्वचा का रूखापन,मुहाॅसे,धूप से झूलसी त्वचा,झुरियों चेहरे के दाग धब्बों,आॅखों के नीचे के काले घेरो, फटी एडियो के लिए लाभप्रद है। इसका गुदा या जैल बालों की जडो में लगाने से बाल काले घने लंबे एंव मजबूत होगेे।एलोवेरा के कण-कण मे सुंदर एंव स्वस्थ्य होने के राज छुपे है।इसे कम से कम जगह मे छोटे-छोटे गमलों में आसानी से उगाया जा सकता है।
स्वास्थ्य का महत्व हमें उसी समय ज्ञात होता है जब हम बीमार होते है इसलिए क्यों न हम एलोवेरा को दैनिक जीवन का अंग बना ले। यह संपूर्ण ष्षरीर का काया कल्प करता है बस जरूरत है सभी को अपनी रोजमर्रा की व्यस्तम् जिंदगी से थोडा सा समय अपने लिए चुराकर इसे अपनाने की।
प्रेषकः-
भुवनेष्वरी मालोत
जिला संयोजिका
महिला पंतजलि योग समिति
बाॅसवाडा राज
गुरुवार, 8 मार्च 2012
महिला दिवस पर सभी मातृ षक्ति को नमन्
सदियो से पुरूष प्रधान समाज में नारी को पुरूषों के स्वामित्व में रहना पड रहा है।भारत में एक लडकी को युवास्था में पिता पर निर्भर रहती है,षादि के बाद पति पर और बूढी होने पर बेटे पर । डर षब्द तो नारी के साथ जन्म से मृत्यु तक साथ रहता है पैदा होने से पहले ही गर्भ में मार देने का डर बचपन मे षिक्षा से वंचित होने का डर ,बाल विवाह का डर ,जवान होने पर गिद्ध की तरह घूरती हुई नजरो का डर, षादि पर दहेज का ,दहेज न देने पर जलाकर मारदेने का डर, लेकिन फिर भी पाष्चात्य संस्कृति के प्रभाव व षिक्षा के कारण आज की नारी उन्मुक्त आसमान में मुक्त साॅस लेने के लिए लालायित है। नारी के बारे समय-समय विभिन्न दृषिटकोण विद्धवानों द्धारा रखे गये है । कहा गया हैकि नारी
‘‘ कार्येषु मंत्री, करमेषु दासी भोज्येषु माता षयेनषु रम्भा ।
धर्मानुकूल क्षमया धरित्री वाड्गुणयुक्ता सुलभा च नारी।‘‘
एक तरफ जयषंकरप्रसाद कहते है‘‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो,विष्वास रजत नभ तल मे ,पीयुष स्त्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में ।
आर्किमिडीज के अनुसार‘‘नारी बादाम का मासुम फूल है,खजूर का कच्चा फल है,चेरी की रंगत है, गुलाब का नषा है, उसे जिसने समझा वही ठगा गया। लेकिन वास्तव में नारी किसी भी घर की,परिवार की, समाज की धूरी होती है ऐसे में उसका सषक्त होना जरूरी है।नारी के जितने नाम है उतने ही रूप है,एक पुरूष को कदम-कदम पर माॅ ,बहन,प्रेयसी,पत्नि व सहचरी के रूप में स्नेह,प्यार,ममत्व देने वाली नारी ही तो हैै।आज कई क्षेत्रो में नारी ने अपने हौसलों के बल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है आज कई राज्यों में महिला मुख्य मंत्री है,महिला राषट््पति है।आज वह चूल्हे चैके से बाहर निकलकर चंदा तक पहुॅच चुकी है,वह घर-गृहस्थी के साथ आॅफीस की भी दोहरी जिम्मेदारी को बखूबी से निभा रही है,साथ ही वह अपने व बच्चों के भविषय के लिए एक सजग प्रहरी की तरह हमेषा तैयार रहती है।आज की नारी हर क्षैत्र में स्मार्ट बनकर जीना चाहती है क्योंकि वह इस सच्चाई को समझ गयी है कि आज का पुरूष स्र्माट वाइफ चाहता है,बेटा स्र्माट माॅम चाहता है,साॅस स्र्माट बहू चाहती है।इसलिए आज की नारी पुरूष के समकक्ष है और पुरूष के नजरिये में भी परिवर्तन आया है,वह भी सहयोग के लिए तत्पर नजर आता है,आज साॅस-बहू के संबधो मे भी अच्छा साॅमजस्य देखने मिलता है। नारी नारी की दुष्मन न बने बल्कि उसकी सहयोगी बने।नारी समय के विकास के साथ कदमताल अवष्य करे किंतु अपने भीतर की नारी को,अपने भीतर की माॅ को, अपनी भारतीय संस्कृति को हमेषा जागृत रखे। साथ ही समाज को भी नारी के प्रति अपने नजरिये में परिवर्तन लाना होगा। इस दिवस की सार्थकता तभी होगी,जब हम अपनी बेटी,बहन बहू को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प ले ताकि उनका जीवन सुंदर व भविषय सुखद बन सके।आज हम सभी बहने अपनी अपनी षक्तियों को एक जगह संगठित करके माॅ दुर्गा की तरह समाज मे व्याप्त महिषासुरी समस्याये जैसे कन्या-भूण हत्या ,दहेज के लिए बहू की हत्या,षिक्षा के अधिकार से वंचित करना घरेलू ंिहंसा जैसी समस्या से लडने के लिए एक जूट हो जाये,अपने अधिकार के साथ अपने कर्तव्य को समझे गलत परम्पराओं का विरोध करे।
मैं अंत में अपनी बहनों से कहना चाहूगी कि ‘‘कोमल है कमजोर नही,षक्ति का नाम ही नारी है,सबको जीवन देने वाली,मौत भी तुझसे हारी है।इन्ही षुभकामनाओं के साथ,
श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत
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