कल मै अपनी सहेली से मिलने उसके घर गई, हम लम्बे समय के बाद मिले थे, आपस में गपषप में मषगूल हो गए, पास में ही उसके बेटे के दो प्यारे-प्यारे बच्चे खेल रहे थे कि अचानक दोनों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया इतने में मेरी सहेली की बहू आयी और बिना कारण जाने दोनों बच्चों को एक-एक चांटा मारा और डाँटकर अपने कमरे में जाकर पढ़ने को कहा दोनों बच्चे रूआसे होकर चले गए लेकिन मेरे समक्ष एक प्रषन छोड़ गये क्या मारने-पिटने से बच्चे सुधर जायेंगे। नहीं, यह हम सभी जानते हैं कि मारने से बच्चे सुधरते नहीं और ज्यादा बिगड़ जाते हैं। बच्चा षब्द दिमाग में आते ही एक भोला भाला जिद करता हुआ मासूम-सा चेहरा आंखों के सामने घूम जाता हैं, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिस संस्कार रूपी ढाँचे में डालेंगे वैसे ही बन कर निकलेंगे। बच्चों का भविष्य परिवार के वातावरण व माता-पिता के संस्कारों पर निर्भर करता हैं, वे काँच की तरह होते हैं, उन्हे तोड़ने के बाद जोड़ना बड़ा मुष्किल होता हैं। अगर माँ-बाप उनके साथ कठोर व्यवहार करते हैं तो वे भय के कारण झूठ बोलने लगेंगे। अपनी समस्या को माँ-बाप के साथ ष्षेयर नहीं कर पायेंगे जिससे वे अन्दर ही अन्दर घुटने लगेंगे। बाल्यावस्था बहुत ही नाजुक होती हैं इसमें कई ष्षारीरिक व मानसिक परिवर्तन होते हैं। ऐसे समय में बच्चों को कठोरता के साथ वात्सल्य व प्यार की भी जरूरत होती हैं। इसलिए बच्चों के साथ संतुलित व्यवहार करना जरूरी हैं।
आज बच्चों का बचपन तो विज्ञापनों के रंग-बिरंगे मोहजाल में जकड़ चुका हैं। वह टी.वी व पिक्चरों के पात्रों की तरह व्यवहार करते हैं जो हिंसक व अष्लील होते हैं इसका प्रभाव उनके मस्तिष्क पर उतना पड़ता हैं कि वे समय से पहले व्यस्क हो जाते हैं और सब कुछ जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। इस उम्र में बच्चे रेत की तरह होते हैं जितना कसकर पकड़ने की कोषिष करंेगे उतना हाथ से फिसल जायेंगे।
आज हम बच्चों केा क्या सीखा रहे हैं, आप स्वंय जानते है, बच्चों को कहते हैं बेटा मार खा कर मत आना, जो तेरे साथ जैसा व्यवहार करता हैं उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना। आज हम जब कोई घर में या स्कूल में बच्चे की भलाई के लिए डाँटते हैं या मारते हैं तो हम बच्चे का पक्ष लेते हैं और उनसे कहते हैं बच्चे को हाथ लगाने की जरूरत नहीं हैं, साथ ही आधुनिकता का सहारा लेकर माता-पिता बच्चों को आवष्यकता से अधिक लाड-प्यार दिखाकर जिद पूरी करके उनकी गलत आदतों को प्रोत्साहन देते हैं उनकी भूलों पर परदा डालने का कार्य करके उनके षुभ चितंक बनने के बजाय उनके षत्रु बन जाते हैं यहीं बच्चे जब बड़े होकर माता-पिता को पलटवार जवाब देते हैं। कहना नहीं मानते, गलत कार्य करते हैं, तब माता-पिता को होष आता हैं लेकिन अब पछताने में क्या फायदा बहुत देर हो चुकी होती हैं।
जैसे महावत हाथी के पैर में रस्सी ड़ालता हैं एवम् उसके छोटे बच्चे के पैर में भी जंजीर डालता हैं ताकि उसकी आदत में आ जाए। माता-पिता को भी बच्चों की वृद्धि को ध्यान रखते हुए व्यवहार करना चाहिए। बच्चों को चिंतित व व्यथित चिल्लाने वाली माँ नहीं चाहिये, उन्हे मनस्वी व प्रभावी माँ चाहिये जो उसके साथ संवाद बनाये रखे। कहा जाता है कि जो माँ दक्षता के साथ बच्चों के पेट में घुसना जानती हैं उसके बच्चे कभी गलत राह पर नहीं जा सकते हैं। माता-पिता को हमेषा अपना तीसरा नैत्र जागृत रखना चाहिए।
कहा गया हैं कि पूत कपूत तो क्यो धन संचय, पूत सपूत तो क्यो धन संचय। इसलिए आपका असली धन तो बच्चे हैं इसलिए बच्चों को अपने व्यस्त जीवन का कुछ समय अवष्य दे ताकि उन्हे अच्छे संस्कारों की वसीयत मिल सकें।
प्रेषक -
श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत
महादेव कालोनी
बाँसवाड़ा (राज.)
मो. 9414101780
great article but avoid this highlighting , it creats problem in reading
जवाब देंहटाएंपूत कपूत तो क्यो धन संचय, पूत सपूत तो क्यो धन संचय
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
बधाई स्वीकारें ||