कहा जाता है कि हमारा मन एक आईना है सबसे पहले हमे इसमें देखना चाहिये ,लेकिन इंसान की फितरत होती है कि कभी वह अपने दिल में झाक कर नही देखता है ।हमेषा दूसरो के दिलो में झाकने की कोषिष करता है जो असंभव है।
हमें दूसरों के अवगुणो को देखने के बजाय उसके गुणोे को अपना कर व अपने गुणो की खोज में लग जाना चाहिये ताकि स्ंवय में उन गुणो को बढाकर अपने विरोधी को परास्त कर सके।कबीरदास जी कहते हैकि:- बुरा देखन मैं चल्या बुरा न मिल्या कोई,जो दिल खोज्या आपणा मुझसा बुरा न कोई।
भैंस व गाय पक्की सहेलीयॉ थी लेकिन भैंस
काली थी और गाय सफेद ,सिर्फ उसकी पूॅछ का हिस्सा
काले रंग का था ।एक दिन भैंस ने गाय से कहा सखी बुरा मत मानना तुम में सभी प्रकार के गुण है किन्तु एक दोष है। बहन तुम्हारी पॅूछ काली है। गाय ने निडर होकर मुस्कराहट के साथ कहा श्देखो सखी तुम सही कहती हो मेरी तो पॅूछ ही काली है लेकिन तुम तो सारी की सारी काली हो
सभी मनुष्यो में कुछ न कुछ कमियॉ रहती ही है ।हम में भी कई दोष व अवगुण भरे हुए है लेकिन अपने दोषों की और ऑखे मॅूद लेते है और हमेषा दूसरो के अवगुणों एव दोषों को ढूढते रहते है।
श्रीमति भुनेष्वरी मालोत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें