शनिवार, 29 दिसंबर 2012

हवन

                                             हवन

 पंतजलि महिला योग समिति ष्बाॅसवाडा द्धारा बलात्कार से पीडित छात्रा की आत्मा की त्रिभुवन में चिरषांति के लिए दयानंद आश्रम में हवन किया गया।ओम् षांति ,ओम् षांति।

मेरे खून से धरती को न करो लाल
रक्त की हर बॅूद बनेगी तुम्हारा काल,
खुदा नंे दी जिंदगी रहम करो ,
बेटियों के साथ दुराचार करने वालो
ष्षरम करो।
यंे धरती तुम्हें धिक्कार रही है...............
ष्षरम करो दंुराचारियो ं , षरम करो दंुराचारियो , षरम करो दंुराचारियो
                                 भुवनेष्वरी मालोत
                                  जिला संयोजिका
                                  पंतजलि महिला योग समिति            
                                  बाॅसवाडा राज.

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

लक्ष्य पर नजर रखे

एक कहानी आपने सुनी होगी ,मेंढको मे उॅचे पहाड पर चढने के लिए एक दौड प्रतियोगिता रखी गयी ,जिसमें सभी मेंढक दौंडने लगे,चारों और से निराषा व हताषा भरी आवाजे आने लगी कि इन नन्हें मेढको ंके लिए इतनी उॅची चढाई चढना मुष्किल है,असंभव है,ये चढ ही नहीे सकते है,इन्हें दौडना नहीं चाहिये आदि।ऐसी निराषा भरी आवाज से कई मेढक बहोष होकर गिरने लगे,कई मेढको ने बीच में ही दौड रोक दी।लेकिन एक मेढक अपनी धुन में दौडे जा रहा था और उसने पहाड पर चढने में सफलता प्राप्त कर ली। सबको आष्चर्य हुआ यह कैसे संभव हुआ ।जब मेढक से उसकी सफलता का रहस्य पूछा तो मालूम पडा कि वह तो बहरा है उसने तो  निराषा भरी आवाजे सुनी ही नहीं ।वह तो अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर आगे चढता गया,बढता गया और सफलता हासिल कर ली।इसलिये जीवन में हमेषा नकारात्मकता और हताष करने वाली बातों से दूर रहना चाहिये ,ये हमारे लक्ष्य में बाधा उत्पन्न करती है।इसलिए हमेषा अपने लक्ष्य पर ध्यान देते हुए अपना कार्य करते रहना चाहिये।कोई आलोचना करे तो उससे डरे नहीं ,न ही कोई प्रतिक्रिया करे ।प्रतिक्रिया दूसरो के लिये  छोड दे ।आलोचना करने वाला व्यक्ति आलोचना करते करते हुए स्ंवय अपने लक्ष्य को भूल जायेगा और उसका जीवन उदेष्यहीन हो जायेगा।आप अपने लक्ष्य पर दृषिट गढाये रखे ,आपको इसमे सफलता अवष्य मिलेगी।

  भुवनेष्वरी मालोत
 महादेव काॅलोनी
  बाॅसवाडा राज.      

रविवार, 18 नवंबर 2012

गोद भराई..................

हमारे जीवन में संस्कारो का व रीति रिवाजो परम्पराओं का बहुत महत्व हैं।गोद भराई वैवाहिक औरत के जीवन की महत्वपूर्ण घटना है,जो औरतो के द्धारा किया गया गर्भवती औरत के लिए एक बडा उत्सव है।गोद भराई एक हिन्दू संस्कार हैजो देष के अधिकांष भागों मे किया जाता है।बंगाल में यह षाद के रूप में जाना जाता है,केरल में सीमानंधन कहा जाता है,तमिलनाडू में अंसंांचचन हवकीइींतंप कहा जाता है इससे गर्भवती महिला को सांतवे व नंवमे महिने में जब बच्चा सुरक्षित अवस्था में माना जाता है तब भारतीय परम्परा के अनुसार नवजात के आगमन की खुषी में महिला की गोद भराई उपहारो फल,मिठाई,कपडे जैवर से भरी जाती है और आने वाले षिषु व मां की सुरक्षा का आर्षीवाद देते है।


समय और परिस्थितियों के अनुसार यह परम्पराए अच्छी थी।लेकिन आज समय बदल गया है और समय के साथ हमें भी बदलना होगा।कई परम्पराए हमारे विकास के मार्ग रोडा बनती है,समय व पैसो का अपव्यय होता है इसलिए संस्कार को संस्कार रहने देने में ही हमारी भलाई है।रूढि.वादी परम्पराओं का आज की जागरूक महिलाओं को विरोध करना चाहियंे।पेट फुलाकर बैंड-बाजे बजवाना लम्बे चैडे भोज का आयोजन कर कहाॅ की बुद्धिमता है,इन परम्पराओं को बोझ न बनने दे सादगी से निभाये,क्योंकि इन परम्पराओं को निभाने के चक्कर में कर्जा तक लेना पडता है,समाज क्या कहेगा के डर से सुसराल वाले परम्परा निभाकर कर्ज में डूब जाते है।परिवार में तनाव बढता है और व्यक्ति मन ही मन अपने आप को कोसता है।

आइये हम इस गोद भराई की रस्म में जननी स्वस्थ्य रहे व स्वस्थ्य संतान को जन्म दे सके एसे आर्षीवाद से गोद भरे इससे प्रसव के दोैरान न तो खून की कमी होगी और नहीं अन्य जटिलताओं का सामना जननी को व आने वाले बच्चे को करना पडेगा अन्यथा अस्वस्थ्य बच्चा परिवार के लिए हमेषा मुष्किले पैदा करता रहेगा।इसलिए गोद भराई रस्म में प्राथमिकता केवल माॅ व बच्चे के स्वास्थ्य की होनी चाहिये इसकी गोद भराई संस्कार आयरन एवम् फोलिक एसिड की गोलियों से करे,परिजन और रिष्तेदार फल एवम् प्रोटिनयुक्त खाद्य-पदार्थो को भेंट करे यही संस्कार असली गोद भराई संस्कार है जिससे जननी केा सभी तरह की विटामिन आयरन की समुचित मात्रा मिल सके ।हमारे देष की अधिकांष महिलाओ में रक्त की अल्पता है तथा हिमोग्लोबिन का स्तर 7से8 ग्राम ज्यादातर महिलाओं में पाया जाता है।जिसके फलस्वरूप जच्चा बच्चा दोनों का जीवन संकटमय हो सकता है।महिलाओं में प्रसवो उपरांत अत्यधिक खून बह जात है,कई बार हैमरेज से मौत हो जाती है।बच्चों मे गर्भावस्था के दौरान आयरन की कमी से अल्पमंदबुद्धि वाले षिषु का जन्म तथा फाॅलिक एसिड की कमी से न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट वाले षिषु का प्रसव होसकता है।ऐसे में गोद भराई संस्कार एक जननी एवम् षिषु सुरक्षा अभियान बने अतः सभी महिलाए आगे आकर इस संस्कार को सादगी से आगे बढाये।



भुवनेष्वरी मालोत

बाॅसवाडा राज.

सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

झूठी शान शौकत से दूर रहे

मैं अपनी सहेली के वहाॅं उसके पोते की जन्म-दिन पार्टी पर गई थी ।वह बडे उत्साह के साथ अपनी शान-शौकत का बखान कर रही थी और कह रही थी कि मेरा बेटा शासकिय सेवा में होने के कारण उपर की आमदनी अच्छी होती है,इसलिए मेरे बेटे ने बच्चों को सब सुख-सुविधा दे रखी है।मैं यह सोचने पर मजबूर हुई कि अनैतिक तरीके से अर्जित की गई कमाई से क्या बच्चों को अधिक से अधिेक सुविधा उपलब्ध करना अनिवार्य है।


ऐसे बच्चे अपने जीवन की विकट परिस्थितियों का सामना अच्छी तरह से नहीं कर पायगें और अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए भष्ट्र्र्र्र्र तरिको को अपनाने से भी नहीं चुकेगे।हर माता-पिता का कर्तव्य है कि बच्चों को जितनी आवश्यकता है उतनी सुविधा प्रदान कर।ताकि बच्चे हर परिस्थिति में अपने आपको संतुलित रख कर कार्यकर सके ।

श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत

महादेव काॅलोनी

बाॅसवाडा









 

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

ओम् में आलौकिक षक्ति छुपी है


ओम् षब्द सम्पूर्ण ब्राहाण्ड का प्रतीक है,यह मात्र षब्द नहीं है वरन् इसमें सम्पूर्ण ब्राहाण्ड की आलौकिक षक्ति ें छिपी है।इसका संबध किसी जाति धर्म से नहीं है यह अक्षर 3 ध्वनियों अ,उ और अनुस्वार म से बना है इसे लघुतम् मंत्र भी माना जाता है यह ध्वनि स्ंवय में अस्तित्व पूर्ण बहुत्व को मिलाती है व व्यक्ति सता को परम् सता से मिलाती है ।ओम् के उच्चारण से ष्वसन क्रिया व ष्षरीर संचालन में समन्वय आता है।इससे तन व मन के विकार दूर होते है।़ इसकें नियमित उच्चारण से तनाव व डिप्ररेषन से छुटकारा मिलता है मन व मस्तिष्क एकदम ष्षांत होे जाता है। इससे मानव के आभामंडल में वृद्धि होती है।इससे एकाग्रता बढती है।
                                                                                        



                                                                                     


विधि व समयः-ओम् का जाप आॅखे बंदकर के किसी भी एंकात स्थान पर बैठकर सुबह और सांय किसी भी समय आसन पर बैठकर कर सकते है।3से5 सैकण्ड में साॅस को लय के साथ अंदर भरना है ,साॅस को जितना लंबा खींच सके ,खींचे और पवित्र ओम् का विधि पूर्वक उच्चारण तेज आवाज में करतें हुए 5से20 सेकेण्ड में साॅस को बाहर छोडना है।पुनः साॅस भरकर यह क्र्रिया 2से 3मिनट में 5से 7 बार करनी है।असाध्य रोगी व ध्यान की गहराईयो में उतरने के इच्छुक साधक 5से 10 मिनट तक यह प्राएाायाम कर सकते है ,इससे किसी भी प्रकार की हानी की संभावना नहीं है।ष्इसके बाद थोडी देर प्रणव ध्यान करें। ष्

भुवनेष्वरी मालोत

जिला संयोजिका

पंतजलि महिला योग समिति

बाॅसवाडा राज. ष्

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

आगे बढते रहे..........

 निराशा सडक के रोडे की तरह होती है,ये अपनी रफतार थोडी कम जरूर करती है ,पर उसके बाद साफ रास्ता आपको खुषीयों से भर देता है।आप इन रोडों के डर से रूके नहीं ,आगे बढे।

भुवनेष्वरी मालोत


महादेव काॅलोनी

बाॅसवाडा

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

ये दिल,तू जी जमाने के लिए -----


 मार्टिन लूथर किंग कहते हैकि ‘‘अकसर हम उन आसन लेकिन अविष्वसनीय उपहारों को भूल जाते है जो हमें जीवन में मिले है।‘‘
हर व्यक्ति महान हो सकता है क्योकि हर व्यक्ति सेवा कर सकता । सेवा करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि आपके पास कालेज की डिग्री हो या व्याकरण का ज्ञान हो ।सेवा के लिए  आपको सिर्फ दया से भरे दिल की जरूरत है,प्रेम से परिपूर्ण आत्मा की जरूरत है। षरीर से काम कर देने तथा वस्तु का दान दे देने का नाम ही सेवा नही है,सेवा तो हृदय का भाव है जो हर परिस्थितियों में मानव भली प्रकार कर सकता है।सेवा का मूल मंत्र यह है कि जो हमको मिला है वह मेरा नहीं है और मेरे लिए भी नहीं है यहां से सेवा का आंरभ होता है।अपनेे को जो मिला है उसको पर सेवा मे लगा देना सेवा है। सबसे बडी सेवा  है अपने को सदाचारी और संयमी बना लेना है अर्थात किसी का बुरा नही चाहना है अर्थात सुखी को देखकर प्रसन्न व दुखी को देखकर दुखी होना ही सच्ची सेवा है।दूसरे लोगो के होठों पर खुषी लाना ही  सच्ची सेवा है।
सेवा व्यक्तित्व का सच्चा श्रृंगार है,इससे अंतकरण षुद्ध होता है।स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था कि‘‘ देष का प्रत्येक प्राणी  मेरे लिए भगवान है ,व्यक्तित्व  की सेवा साक्षात नारायण की सेवा है।जरूरतमंद की मदद को प्राथमिकता दे सच्चे मन से सेवा का फल सदैव श्रेषठ होता है।विद्यार्थी जीवन से इस गुण क विकास के लिए प्रयास करने चाहिये।‘‘सेवा का भाव जिसके जीवन में प्रवेष कर जाता है,वह स्ंवय की चिन्ता करना छोड देता हेेें। मदर टेरेसा का उदाहरण हमारे सामने है जिसके लिए कोई अपना पराया नहीं रहता ,किसी से कुछ अपेक्षा भी नहीं  रहती है बस देना ही देना है, लेना कुछ नही।।
अपने लिये जीये तो क्या जिए जीना उसी का जो ओरो के लिए जिए फिल्मी गाने की ये पंक्तिया या बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड खजूर का पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।इस दोहे में कोई गूढ रहस्य छिपा है जो हमें परोपकार करने की प्ररेणा देता है।जीवन का आदर्ष बना ले परोपकार किसी फल के लिए नहीं बल्कि आंतरिक खुषी के लिए करेगे।
आजकल आपने यह कहते हुए सुना होगा कि भलाई -वलाई का जमाना नहीं रहा एक तो अपना समय, पैसा और दिमाग खर्च करो और सामने वाला भी इसकी कीमत न समझे ऐसी भलाई संेे क्या फायदा। आजकल लोग  सिर्फ अपने बारे मे ही सोचते है।
what goes around comes around( जैसा तुम देते हो वैसा ही तुम्हें वापिस मिलता हSthll dgk djrs Fks fd’’Happy are those who long to be just &good,for they shall be completely satisfied……don’tell your left hand what your right hand is doing and your father who know all secrets will reward you.’’खुषनसीब है वो लोग,जो न्यायप्रिय और भले रहते है क्योंकि उन्हें पूरी तरह संन्तुषट किया जायगा जब  तुम किसी पर उपकार करो छुप कर करो ।बाॅए  हाथ को भी पता न लगने दो कि दाॅये हाथ ने क्या पुण्य कमाया है।जब तुम्हारा पिता जो सब राजों का राजदार है। तुम्हें अपनी और से दिव्य उपहार देगा।प्रकृति भी आपके हाथ खाली नही रखेगी आपकी अच्छाई लौटकर आपके पास जरूर वापिस आएगी।जैसा तुम देते हो वैसा ही तुम्हें वापिस मिलता है चाहे थोडा वक्त जरूर लगता  है,पर प्रकृति अपने पास कुछ नहीें रखती ब्याज समेत हमें लौटाती है।एक कहानी हमें इस बात की प्रेरणा देती है।
    फंलेमिग नाम का एक किसान स्कांटलैड में अपने खेत में काम कर रहा था कि अचानक उसने सहायता के लिए पुकारती एक आवाज सुनी, उसने पास जाकर देखा तो एक छोटा बच्चा गहरे कीचड मे फॅसा हुआ है उसने बडी मेहनत करके,उसे निकाला और फिर अपने काम में जुट गया। दूसरे दिन उसने देखा एक अमीर आदमी  उसकी झोंपडी में आया ओैर बोला तुमने मेरे बेटे की जान बचायी है मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हुं । किसान ने इनाम लेने से इंनकार कर दिया और कहा की यह तो मेरा कर्तव्य है। उसने किसान के पास खडे उसके  फटेहाल बच्चे को देखा और कहा इसकी शिक्षा जिम्मेदारी में उठाता हुं ,तुम उसे मुझे सौंप दो ।कई वर्षो बाद वही बालक अलेग्जैन्डर फंलेमिंग प्रसिद्व वैज्ञानिक पैनिसिलीन का अविष्कारक बना। कुछ समय बाद उसका बेटा निमोनिया का शिकार हो गया,जिसकी जान पैैनिसिलीन की  वजह से बची। उस आदमी का नाम लार्ड रैन्डोल्फ था और उसके बेटे का नाम सर विन्सटन चर्चिल।
आओ दुआ करे और इसे हम जीवन का आर्दश बना ले कि नेकी किसी फल के लिए नही बल्कि आंतरिक खुशी के लिए करेगें और भूल जायेगे । तभी तो आज की युवा पीढ़ी भी परोपकार की कई जिम्मेदारी को उठाये हुए है लेकिन भलाई स्वकेन्द्रित नहीं यानि दूसरो पर केन्द्रित होनी चाहिये ।यदि परोपकार में लेने का भाव होगा तो वह एक सौदा होगा।इसलिए कहा गया है नैकी कर कुॅए में डाल अर्थात भलाई करके भूल जाओ  कोई उम्मीद मत रखो।
                                                      प्रषेकः-
                                        श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत
                                         महादेव काॅलोनी
                                      बाॅसवाडा